भारत के लिए मिलेजुले नतीजे | संपादकीय / June 20, 2022 | | | | |
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अधिकारियों तथा केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में भारतीय अधिकारियों ने उस समझौते की सराहना की है जिसने वैश्विक व्यापार के अन्यथा मृतप्राय हो चुके संचालन ढांचे में नयी जान फूंक दी है। डब्ल्यूटीओ सहमति के आधार पर काम करता है, यानी कोई भी सदस्य देश किसी सौदे को वीटो कर सकता है। सात सालों के लिए बड़े समझौतों की पहली खेप में विभिन्न देश टीकों के पेटेंट संरक्षण, मछलीपालन सब्सिडी और डिजिटल व्यापार जैसे मसलों पर सहमति पर पहुंचे। भारत को इनमें से कई मसलों पर अपनी आपत्ति को नरम करना पड़ा, हालांकि उसने बाद में हुए संवाददाता सम्मेलन में खुद को विजेता बताया।
जीत की भावना को संदर्भ सहित समझना होगा। महामारी से संबंधित चिकित्सा उपकरणों को लेकर बौद्धिक संपदा संरक्षण को कमजोर करने की भारत (और दक्षिण अफ्रीका) की एक साल पुरानी मांग के बारे में कहा जा सकता है कि यह महामारी पर नियंत्रण के नजरिये से काफी देर से सामने आई। इसके दायरे में जांच और चिकित्सा विज्ञान नहीं बल्कि संबंधित टीके थे। चूंकि अधिकतर टीका निर्माता अब यह मानते हैं कि आपूर्ति में समस्या है इसलिए लगता नहीं कि इस समझौते से कोई लाभ होगा। मछली पालन से जुड़ा समझौता तो और जटिल है। इसे डब्ल्यूटीओ के नये नेतृत्व ने एक नये समझौते के लिए सबसे संभावित क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया था जो संस्था की नये क्षेत्रों में विस्तार की दस साल की अक्षमता को दूर कर सकता था।
उम्मीद की जा रही थी कि गैर किफायती सब्सिडी जिनके चलते विभिन्न देशों के अलग आर्थिक क्षेत्रों के बाहर अतिरिक्त मछलियां मारी जा रही थीं, उसे नियंत्रित किया जा सकेगा और दुनिया भर में मछली पालन का स्थिर भंडार तैयार हो सकेगा। भारत चाहता था कि चीन समेत अमीर देशों में इन सब्सिडी को नियंत्रित किया जाए तथा गरीब देशों के लिए सब्सिडी को 25 सालों के लिए बढ़ाया जाए। आखिर में इस समझौते का लहजा बहुत सरल कर दिया गया और उन अहम अनुच्छेदों को कमजोर बना दिया गया जो ऐसी गैर किफायती सब्सिडी से संबद्ध थे। इसमें प्रमुख तौर पर अवैध मछली पालन पर सब्सिडी नियंत्रण को स्थान दिया गया। भारत अपने मछली पालन करने वाले समुदायों का समर्थन करना जारी रख सकता है। अच्छी बात यह है कि सीमा पार डिजिटल प्रवाह पर कर लगाने पर लगे स्थगन के विस्तार को समाप्त करने की भारत की धमकी को बढ़ावा नहीं दिया गया। यह साफ नहीं है कि ऐसे कर से क्या लाभ होगा या फिर घरेलू उपयोगकर्ताओं को व्यापक दुनिया से काटे बिना इसका क्रियान्वयन कैसे होगा।
यह एक अन्य अवसर है जहां भारत की डिजिटल नीति बनाने वाले भ्रमित नजर आए। उनके पास लागत और लाभ का कोई मॉडल नहीं था। सदा की तरह भारत के लिए सबसे अहम मसला था सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खाद्यान्न खरीद का संरक्षण। चूंकि सरकार ने संकेत दिया है कि वह इस व्यवस्था में सुधार करना चाहती है इसलिए यह साफ नहीं है कि बाहरी वार्ताओं में भी यही बुनियादी मामला क्यों रहता है। बहरहाल, भारत को खाद्यान्न भंडार के मामले में स्थायी या दीर्घकालिक विस्तार नहीं मिल सका, हालांकि चर्चा को टालने का निर्णय जरूर हुआ। कुल मिलाकर यह सुखद है कि डब्ल्यूटीओ उस तरह मृतप्राय नहीं है जैसा कि कुछ लोग मान रहे थे। यह अभी भी सहमति से निर्णय ले सकता है। यह बात मायने रखती है कि भारत की व्यापार वार्ता 31 दिसंबर, 2023 के पहले होने वाली आगामी मंत्रिस्तरीय बैठक में अपने हितों के साफ नजरिये के साथ आगे जा रही है। यह इसलिए कि कई अहम निर्णय टाल दिए गए। 2024 में हमारे यहां आम चुनाव भी होने हैं, ऐसे में भारत के वार्ताकारों के लिए चुनौती यह है कि वे ठोस तरीके से अपनी बात रखें।
|