दरों पर निर्णय नहीं ले सका मंत्रिसमूह | श्रीमी चौधरी / नई दिल्ली June 18, 2022 | | | | |
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों को वाजिब बनाने पर विचार करने के लिए जीएसटी परिषद द्वारा गठित मंत्रिसमूह इस कर की दरों और स्लैब में बदलाव पर ठोस राय नहीं बना पाया। बहरहाल छूट वाले उन उत्पादों की सूची कतरने के मसले पर परिषद को अंतरिम रिपोर्ट दे सकता है, जिन पर फिलहाल कोई शुल्क नहीं लगता है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की अगुआई वाले मंत्रिसमूह की आज वर्चुअल बैठक हुई। कहा जा रहा है कि इसमें जीएसटी छूट, दर में बदलाव और मूल्य श्रृंखला में उलटा शुल्क ढांचा ठीक करने जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई।
इस समूह के दो सदस्यों ने कहा, ‘हमने स्लैब के विलय और कुछ उत्पादों पर दर को तर्कसंगत बनाने पर अपनी राय फिर दोहराई है। लेकिन अभी अंतिम फैसला नहीं हो पाया है।’ उन्होंने कहा कि समूह निर्धारित तिथि से पहले परिषद को एक अंतरिम रिपोर्ट देने की कोशिश करेगा।
जीएसटी पर गठित मंत्रिसमूह के मुताबिक समूह की दर पुनर्गठन पर दोबारा बैठक होगी। एक सदस्य ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि स्लैब के विलय और निचली सीमा बढ़ाने पर राजस्व कितना प्रभावित होगा। ऐसा करने में बहुत से पहलुओं पर विचार करने की जरूरत है, जिसमें कुछ समय लग सकता है।’
परिषद की बैठक 28 और 29 जून को श्रीनगर में होनी है। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने 6 जून को खबर दी थी कि मंत्रिसमूह की बैठक परिषद की बैठक से पहले होगी और मंत्रिसमूह दर में बदलाव का अपना एजेंडा कुछ महीनों के लिए टाल सकता है।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘परिषद छूट प्राप्त वस्तुओं और तैयार माल की तुलना में कच्चे माल पर ज्यादा कर की विसंगतियों को दूर करने के संबंध में मंत्रिसमूह के सुझावों पर विचार कर सकती है।’ वस्तुओं की 149 और सेवाओं की 87 श्रेणियों पर जीएसटी नहीं लगता।
पहले मंत्रिसमूह को जीएसटी के तहत निचला स्लैब मौजूदा 5 फीसदी से बढ़ाकर 7 से 8 फीसदी करने और अन्य कर श्रेणियों को बदलने पर विचार करना था। इसके अलावा उसे मौजूदा चार स्लैब को मिलाकर तीन स्लैब बनाने पर भी विचार करना था। किया जाना था। इस समय जीएसटी में चार स्लैब हैं, जिन पर कर की दर 5, 12, 18 और 28 फीसदी है। स्लैब में बदलाव से औसत भारित जीएसटी दर बढ़कर 15 फीसदी से अधिक के राजस्व तटस्थ स्तर पर पहुंच जाएगी, जो इस समय 11 फीसदी है।
इससे पहले भी दो बैठकों में दर में बदलाव पर कोई नतीजा नहीं निकल पाया था। मंत्रिसमूह का मानना था कि जिंसों की ऊंची कीमतों और उनके असर को मद्देनजर रखते हुए इस मुद्दे पर और विचार-विमर्श की जरूरत है। नीति निर्माता भी मानते हैं कि इस समय के हालात में महंगाई घटने के बाद ही इस मसले पर विचार किया जाना चाहिए।
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