निजी नियोजन के जरिए विभिन्न इकाइयों की तरफ से जुटाई गई रकम साल 2014 के बाद के निचले स्तर पर है। साल 2022 के पहले पांच महीने में इन इकाइयों ने 1.96 लाख करोड़ रुपये जुटाए और यह जानकारी प्राइम डेटाबेस से मिली। यह रकम पिछले साल की समान अवधि में जुटाई गई रकम के मुकाबले 23.4 फीसदी कम है क्योंकि पिछले साल 2.56 करोड़ रुपये जुटाए गए थे। यह रकम साल 2014 के बाद का निचला स्तर है क्योंकि तब 1.17 लाख करोड़ रुपये जुटाए गए थे। रकम की कम जरूरत और उच्च ब्याज दर ने रकम जुटाने की गतिविधियों में कमी लाई है। मिरे एसेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स इंडिया के मुख्य निवेश अधिकारी (फिक्स्ड इनकम) महेंद्र कुमार जाजू ने कहा, कई कंपनियों के पास अतिरिक्त नकदी थी और उनकी जरूरतें सीमित थीं, जिसका मतलब यह हुआ कि मौजूदा माहौल में रकम जुटाने की कोई हड़बड़ी नहीं रही। पब्लिक सेक्टर की कंपनियां भी यहां अनुपस्थिर रहीं और कई ने सरकार से रकम मिलने के बीच कर्ज का पुनर्भुगतान किया। उन्होंने कहा, हर कोई डीलिवरेजिंग पर ध्यान केंद्रित किए रहा। इस परिदृश्य में कोई बदलाव तभी होगा जब कंपनियां पूंजीगत खर्च पर दोबारा विचार करेंगी, चाहे उन्हें नई फैक्टरी लगानी हो या फिर उत्पादन क्षमता बढ़ानी हो या फिर कार्यशील पूंजी की जरूरत हो, जो रोजाना के परिचालन में इस्तेमाल में आती है। प्राइम डेटाबेस के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा, वैश्विक बढ़त के प्रतिकूल परिदृश्य और नए निवेश की सीमित दरकार की पृष्ठभूमि में कंपनियां नई उधारी पर कम आगे बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा, पूंजीगत खर्च की आवश्यकता बहुत ज्यादा नहीं है। उन्होंने कहा, निवेशक भी उतारचढ़ाव भरे ब्याज दर के माहौल में नया निवेश नहीं कर रहे हैं। कई निवेशक स्पष्ट परिदृश्य उभरने तक इंतजार करना चाहेंगे। निजी नियोजन तब होता है जब कोई इकाई चुनिंदा व सीमित लोगों से रकम जुटाती है और वह भी इसका सावर्जनिक विज्ञापन दिए बिना। कम लागत और तेज गति से रकम जुटाने का जरिया होने के कारण पूंजी जुटाने के लिए इसे तरजीह दी जाती है। आम धातु, सिविल इंजीनियरिंग, बिजली और गैस आदि क्षेत्र की कंपनियां इस जरिये का काफी इस्तेमाल करती हैं। यह जानकारी एक अध्ययन से मिली। इस अवधि में 952 इश्यू सामने आए। यह पहले के मुताबिक ही है। इश्यू का औसत आकार 2020 के पहले पांच महीने के 468 करोड़ रुपये के मुकाबले आधा घटकर 2022 की समान अवधि में 205.9 करोड़ रुपये रह गया।
