भारतीय बैंकिंग उद्योग के लिए इससे बेहतर समय कभी नहीं रहा। वित्त वर्ष 2022 के दौरान सूचीबद्ध भारतीय बैंकों का समग्र शुद्ध लाभ 1.57 लाख करोड़ (ट्रिलियन) रुपये रहा। बैंकों के मुनाफे का यह ऐतिहासिक स्तर है। देसी बैंकों में 36,961 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ के साथ एचडीएफसी बैंक अव्वल रहा, वहीं 31,676 करोड़ रुपये के साथ भारतीय स्टेट बैंक दूसरे, 23,339 करोड़ रुपये के साथ आईसीआईसीआई बैंक तीसरे और 13,025 करोड़ रुपये के साथ ऐक्सिस बैंक मुनाफा कमाने के लिहाज से चौथे पायदान पर रहा। वहीं कोटक महिंद्रा बैंक (8,573 करोड़), बैंक ऑफ बड़ौदा (7,272 करोड़), केनरा बैंक (5,678 करोड़) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (5,232 करोड़) जैसे कम से कम चार ऐसे बैंक रहे, जिन्होंने 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का लाभ अर्जित किया। इस वर्ष केवल आरबीएल बैंक ही लाल निशान पर रहा, जिसे 74.74 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। बैंकिंग उद्योग के शुद्ध लाभ में 61.25 फीसद की उछाल आई और उसमें भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) का प्रदर्शन अपने निजी प्रतिस्पर्धियों से बेहतर रहा। जहां निजी क्षेत्र के बैंकों के लाभ में 38.54 प्रतिशत (वर्ष 2021 में 67,437 करोड़ रुपये की तुलना में 2022 में 93,430 करोड़ रुपये) की तेजी आई, वहीं पीएसबी के लाभ में 113 फीसदी (2021 के 29,658 करोड़ रुपये की तुलना में 2022 में 63,135 करोड़ रुपये) की जोरदार बढ़त दर्ज हुई। पिछले वित्त वर्ष में घाटा दर्ज करने वाले सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब ऐंड सिंध बैंक ने भी वित्त वर्ष 2022 में वापसी करते हुए मुनाफे की ओर कदम बढ़ाए और दोनों को एक-एक हजार करोड़ रुपये से अधिक का लाभ हुआ। ब्याज से हुई मोटी कमाई ने मुनाफा बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई, क्योंकि इस दौरान शुल्क आय एवं ट्रेजरी प्रॉफिट जैसे मोर्चों पर सुस्ती ही रही। पीएसबी के मामले में खासतौर से ऐसा देखने को मिला। फिर भी मुनाफे में सबसे अहम पहलू खराब कर्जों के मामले में प्रावधान (प्रॉविजन) में नाटकीय गिरावट रहा। यह एक शुभ संकेत है, जो दर्शाता है कि ताजा गिरावट को थाम लिया गया है और परिसंपत्तियों की गुणवत्ता बेहतर हुई है। इसके अतिरिक्त अधिकांश बैंक अपनी खराब परिसंपत्तियों के लिए पहले ही व्यापक स्तर पर बंदोबस्त कर चुके हैं। वित्त वर्ष 2022 में बैंकों की शुद्ध ब्याज आय (एनआईआई) में 10.41 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जो 2021 में 4.72 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2022 में 5.21 लाख करोड़ रुपये हो गई। एनआईआई बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज पर हुई कमाई और जमाओं पर दिए जाने वाले ब्याज भुगतान का अंतर होता है। इस दौरान जहां निजी बैंकों के औसत एनआईआई में 12.61 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई तो पीएसबी में 8.64 प्रतिशत। यानी इस मोर्चे पर निजी बैंक बाजी मार गए। निजी बैंकों में जहां आईडीएफसी फर्स्ट बैंक तो सरकारी बैंकों में बैंक ऑफ महाराष्ट्र शीर्ष पर रहे। अन्य आय के मामले में भी निजी बैंक आगे रहे। निजी बैंकों की अन्य आय में 13.5 प्रतिशत की तेजी आई तो समूचे बैंकिंग उद्योग की यह वृद्धि दर केवल 5.86 प्रतिशत ही रही, जिसके लिए पीएसबी जिम्मेदार रहे, जिनका इस मामले में प्रदर्शन लगभग स्थिर रहा। वहीं प्रावधान में 27.32 प्रतिशत की गिरावट ने बैंकों के मुनाफे को बड़ा सहारा दिया। इस मामले में निजी एवं सरकारी बैंकों में औसत गिरावट का स्तर कमोबेश एक जैसा रहा। बंधन बैंक, आईडीएफसी बैंक, धनलक्ष्मी बैंक और आरबीएल बैंक जैसे चार निजी बैंकों और इंडियन बैंक जैसे सरकारी बैंक द्वारा प्रॉविजन में ऊंची कटौती के बावजूद दोनों श्रेणियों के बैंकों में यह संतुलन बना। गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की बात करें तो सूचीबद्ध बैंकों का एनपीए 7.5 लाख करोड़ रुपये से घटकर 6.73 लाख करोड़ रुपये रह गया, जिसमें 10.38 प्रतिशत की गिरावट आई। पीएसबी के सकल एनपीए में 11.34 प्रतिशत और निजी बैंकों में यह गिरावट 7.54 प्रतिशत की रही। शुद्ध एनपीए में तो और भी ज्यादा 21.15 प्रतिशत की जोरदार गिरावट आई, जो 2.35 लाख करोड़ रुपये से घटकर 1.85 लाख करोड़ रुपये रह गया। इस प्रकार देखा जाए तो सरकारी और निजी बैंकों का प्रदर्शन एक जैसा रहा। सभी पीएसबी के सकल एनपीए में कमी आई है, लेकिन पांच निजी बैंकों का एनपीए बढ़ा है। इनमें एचडीएफसी बैंक, बंधन बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक और आरबीएल बैंक शामिल हैं। वहीं प्रॉविजनिंग के बाद इंडसइंड बैंक को छोड़कर प्रत्येक बैंक ने अपने शुद्ध एनपीए को घटाया है। एचडीएफसी बैंक और कैथलिक सीरियन बैंक का सबसे कम सकल एनपीए (दोनों का 2 प्रतिशत से कम) है, जबकि आईडीबीआई बैंक का सबसे अधिक 19.14 प्रतिशत एनपीए है। पांच बैंकों का एनपीए निरंतर रूप से दो अंकों में बना हुआ है। ये हैं केनरा बैंक, येस बैंक, पंजाब ऐंड सिंध बैंक, पंजाब नैशनल बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया। जहां तक समूचे बैंकिंग उद्योग की बात है तो उसमें सकल एनपीए छह वर्षों के सबसे निचले स्तर पर है। सभी बैंकों के शुद्ध एनपीए में कमी आई है। एचडीएफसी सहित सात निजी बैंक ऐसे रहे, जिनका शुद्ध एनपीए मार्च 2022 में एक प्रतिशत से भी कम दर्ज हुआ। इस सूची में आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, इंडसइंड बैंक, ऐक्सिस बैंक, कैथलिक सीरियन बैंक और फेडरल बैंक के नाम शामिल रहे। बैंक ऑफ महाराष्ट्र इस सूची में इकलौता सरकारी बैंक रहा। वहीं स्टेट बैंक का शुद्ध एनपीए एक प्रतिशत से थोडा ऊपर 1.02 प्रतिशत था, तो 4.8 प्रतिशत शुद्ध एनपीए के साथ इस मामले में सबसे खराब हालत पंजाब नैशनल बैंक की रही, जबकि निजी बैंकों में 4.53 प्रतिशत शुद्ध एनपीए के साथ येस बैंक सबसे ऊपर था। कुल मिलाकर 2022 की कहानी शानदार रही। अधिकांश बैंकों में पर्याप्त पूंजी है, दबाव वाली परिसंपत्तियों का बोझ घटा है और खराब परिसंपत्तियों के लिए उन्होंने प्रॉविजन किए। भविष्य में भी आशंकाओं के बादल छंटते दिख रहे हैं। फिर भी बड़ा सवाल यही है कि क्या इस रुझान में निरंतरता कायम रहेगी? इसके जवाब के लिए हमें प्रतीक्षा करनी होगी। कुछ नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। ब्याज दरों में बढ़ोतरी का दौर शुरू हो गया है, जिससे बॉन्ड प्रतिफल में भी तेजी आएगी और यह बैंकों के ट्रेजरी प्रॉफिट में सेंध लगाएगी। साथ ही दरें बढ़ने से कई कर्जदारों को कर्ज चुकाने में भी मुश्किलें पेश आ सकती हैं। ऐसे में कुछ बैंक पुराने कर्जों के असर को कम करने के लिए नए कर्ज देने की सदाबहार नीति का सहारा ले सकते हैं। हालांकि यह विशेष रूप से छोटे कर्जों के मामले में ही होता है। वहीं यह अनुमान लगाना भी कठिन है कि कितने पुनर्गठित कर्ज खराब कर्जों में तब्दील होंगे। फिर भी यह वक्त ऐसा है कि हमें 2022 के शानदार प्रदर्शन का जश्न मनाना चाहिए, लेकिन संभावित खतरों के प्रति भी सावधान रहें। हम सभी जानते हैं कि खराब कर्जों के बीज अच्छे वक्त में ही बोए जाते हैं।
