ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत ऋण समाधान वाली सभी दिवालिया कंपनियों के बीच भूषण स्टील (बीएसएल) का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से जारी गैर-निष्पादित आस्तियों की पहली सूची में शामिल कई बड़ी कंपनियों के मामले कानूनी दांवपेज में फंसे हुए हैं लेकिन भूषण स्टील का ऋण समाधान महज एक साल में पूरा हो गया। टाटा स्टील ने भूषण स्टील की समाधान योजना को नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) द्वारा मंजूरी दिए जाने के बाद 48 से 72 घंटों के बीच तेजी से सौदा पूरा करते हुए कंपनी की कमान संभाल ली थी। टाटा स्टील के कार्यकारी निदेशक एवं मुख्य वित्तीय अधिकारी कौशिक चटर्जी ने कहा, ‘यह विस्तृत योजना, परीक्षण, परिदृश्य की जांच, निष्पादन और समय के साथ काफी सोच-समझकर तैयार किया गया मिशन था।’ इसके लिए वृहद योजना पर काम उसी दौरान शुरू हो गया था जब टाटा स्टील को सर्वाधिक बोलीदाता घोषित किया गया था। भूषण स्टील के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया 26 जुलाई 2017 को शुरू की गई थी। संभावित समाधान आवेदकों के लिए कंपनी के रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल द्वारा जारी विज्ञापन पर 22 संभावित समाधान आवेदकों के साथ शुरुआती प्रतिक्रिया काफी दमदार रही थी। संभावित आवेदकों ने ओडिशा में कंपनी के 56 लाख टन क्षमता वाले संयंत्र में काफी दिलचस्पी दिखाई थी। अंतत: भूषण स्टील को टाटा स्टील, जेएसडब्ल्यू और बीएसएल कर्मचारियों की ओर से तीन समाधान प्रस्ताव मिले। भूषण स्टील के प्रवर्तक सिंघल परिवार ने भी एक बंद लिफाफे में एक प्रस्ताव दिया था लेकिन पात्रता के आधार पर उसे कभी खोला नहीं गया। बोली जमा होने से पहले आईबीसी में संशोधन के जरिये उसमें धारा 29ए को शामिल किया गया। इसके तहत डिफॉल्ट करने वाले प्रवर्तकों को समाधान योजना जमा करने से रोक दिया गया है। इसके साथ ही सिंघल सहित तमाम प्रवर्तकों के लिए समाधान प्रक्रिया में शामिल होने का रास्ता बंद हो गया। फरवरी 2018 में भूषण स्टील के लिए बोली जमा कराई गई थी। मार्च 2018 के आरंभ में लेनदारों की समिति (सीओसी) ने टाटा स्टील की ओर से जमा कराई गई 35,200 करोड़ रुपये की समाधान योजना के पक्ष में मतदान किया। इस मामले में 53 वित्तीय लेनदारों ने कुल 56,080 करोड़ रुपये का दावा किया था। समाधान योजना के तहत भूषण स्टील के कुल ऋण में से मूलधन की वसूली हो गई। इक्रा के उपाध्यक्ष (स्ट्रक्चर्ड फाइनैंस) अभिषेक डफरिया ने कहा, ‘आईबीसी के शुरुआती दो-तीन वर्षों के दौरान इस्पात क्षेत्र में सबसे अधिक दिलचस्पी देखी गई थी क्योंकि परिसंपत्तियों का ऋण समाधान ऐसे समय में किया गया जब इस क्षेत्र में तेजी का रुझान था।’टाटा स्टील ने लेनदारों की समिति की मंजूरी मिलने के बाद से ही अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। ओडिशा में संयंत्र के समीप टीम पहले से ही मौजूद थी। नई दिल्ली में भूषण स्टील के कॉरपोरेट कार्यालय के समीप हयात रीजेंसी में एक बोर्ड बैठक आयोजित की गई जिसमें पुराने सदस्यों की जगह नए निदेशकों को शामिल करने में मुद्दे पर विचार किया गया। अंतत: संयंत्र के समीप मौजूद लोगों ने दस्तक दी। ऐसा नहीं है कि मई 2018 में लेनदेन बिना किसी मुकदमेबाजी के पूरा हो गया। सिंघल परिवार ने भूषण स्टील पर नियंत्रण के लिए टाटा स्टील की पात्रता को चुनौती देते हुए एक अपील दायर की थी। लेकिन नैशनल कंपनी लॉ अपीलीय ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने उसे खारिज कर दिया। इसके अलावा ऋण पुनर्गठन में अधिक प्राथमिकता दिए जाने के लिए लार्सन ऐंड टुब्रो की ओर से भी एक अपील दायर की गई जिसे एनसीएलटी और एनसीएलएटी ने खारिज कर दिया।
