बाजारों में दिख रहा है ढांचागत मुद्रास्फीति का असर | पुनीत वाधवा / June 13, 2022 | | | | |
पिछले कुछ महीनों के दौरान वैश्विक बाजारों ने केंद्रीय बैंकों की पहलों के अनुरूप प्रदर्शन किया है। बीएनपी पारिबा में एशिया पैसिफिक इक्विटी रणनीतिकार मनीषी रॉयचौधरी ने पुनीत वाधवा के साथ साक्षात्कार में कहा कि उनका मानना है कि एशियाई और भारतीय इक्विटी में मौजूदा उतार-चढ़ाव निकट भविष्य में जारी रहेगा। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
क्या आप मानते हैं कि बाजारों के लिए जोखिम बढ़ रहे हैं?
एशियाई और भारतीय इक्विटी में मौजूदा उतार-चढ़ाव निकट भविष्य में बने रहने की संभावना है। वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रित नीति में सख्ती और अमेरिकी फेड द्वारा हाल में शुरू की गई क्वांटीटेटिव टाइटनिंग (क्यूटी) से उभरते बाजारों से पूंजी निकासी का सिलसिला बरकरार रह सकता है। ईंधन कीमतों में तेजी, भूराजनीतिक तनाव बरकरार रहने से भारत पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है और व्यापार घाटा बढ़ सकता है तथा अल्पावधि में मुद्रा में कमजोरी आ सकती है। हमें 2022 की आखिरी तिमाही में बाजारों में कुछ हद तक मजबूती की उम्मीद थी। लेकिन अमेरिकी फेड द्वारा दर वृद्धि पीछे छूट चुकी है और इसलिए अब क्यूटी का शुरुआती झटका लग सकता है।
क्या बाजारों में केंद्रीय बैंक के कदम पर ज्यादा असर दिखा है?
बीएनपी पारिबा के अर्थशास्त्रियों को जून और सितंबर के बीच फेड द्वारा तीन बार 50 आधार अंक की वृद्धि का अनुमान है। बाजार में धीरे धीरे ढांचागत मुद्रास्फीति का असर दिख रहा है। हालांकि क्यूटी से वित्तीय परिसंपत्तियां और ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं।
क्या आप मानते हैं कि एफआईआई ने वाकई भारत में ज्यादा बिकवाली की है?
अक्टूबर 2021 से, एफआईआई ने भारत में 28 अरब डॉलर की इक्विटी बेची, जो भारत के बाजार पूंजीकरण का करीब 0.8 प्रतिशत है। यह एफआईआई द्वारा पिछले भारी बिकवाली (बाजार पूंजीकरण के 0.4-0.5 प्रतिशत) के मुकाबले ज्यादा है और वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान हुई बिक्री की तरह अधिक है। वैश्विक उभरते बाजार (जीईएम) निवेशक एमएससीआई ईएम बेंचमार्क के मुकाबले भारत पर अंडरवेट हैं।
एफआईआई द्वारा लगातार बिकवाली की स्थिति में घरेलू और खुदरा निवेशक कब तक बाजार का समर्थन करते रहेंगे?
खुदरा निवेशक ताजा उत्साह के बावजूद इक्विटी में कम निवेश कर रहे हैं। दीर्घावधि के दौरान, भारतीय इक्विटी में डीआईआई और रिटेल भागीदारी मजबूत बनी रह सकती है। इसके अलावा बढ़ती ब्याज दरें निर्धारित आय निवेश को अल्पावधि में आकर्षक बना सकती हैं।
क्या आप मानते हैं कि भारतीय सरकार वृहद चुनौतियों से मुकाबले में पूरी तरह सक्षम नहीं है?
पिछले दो-तीन साल के दौरान, सरकार ने घरेलू निर्माण बढ़ाने और पूंजीगत खर्च के लिए रणनीति पर काम किया है। इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश योजना - संयुक्त केंद्र सरकार खर्च, राज्य सरकार खर्च और पीपीपी इस रणनीति का हिस्सा है। निवेशक इस निवेश की निरंतता चाहते हैं। प्रमुख वृहद समस्याएं मुद्रास्फीति, और आरबीआई की ताजा मौद्रिक नीति से मुद्रास्फीतिकारी दबाव नियंत्रित करने का रुख स्पष्ट हुआ है। हालांकि मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के लिए राजकोषीय नीति को मौद्रिक नीति के अनुरूप बदलने की जरूरत हो सकती है, लेकिन हम सरकार की पूंजीगत खर्च योजना में कमी की उम्मीद नहीं कर सकते।
आपकी निवेश रणनीति क्या रही है?
बढ़ती ब्याज दरें बैंकों के ब्याज मार्जिन के लिए सामान्य तौर परअच्छी हैं और हम निजी क्षेत्र के बैंकों के जरिये इस थीम पर ध्यान दे रहे हैं। रुपये में गिरावट आईटी सेवा कंपनियों के लिए अनुकूल है और प्रमुख आईटी कंपनियां शानदार सौदा प्रवाह हासिल कर रही हैं। अपने एशियन मॉडल पोर्टफोलियो में, हमारे पास चुनिंदा कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी कंपनियां भी हैं, मुख्य तौर पर बाजार उधारी वाहन कंपनियां, और ऊर्जा कंपनियां, क्योंकि ईंधन कीमतों में तेजी लंबे समय तक बनी रह सकती है। हम फिलहाल भारत पर सकारात्मक बने हुए हैं।
मौजूदा समय में आप किस तरह के पोर्टफोलियो की सलाह देना चाहेंगे?
हमने हाल में वित्तीय परिसंपत्तियों - निर्धारित आय और इक्विटी- में समन्वित गिरावट दर्ज की है। जिंसों को छोड़कर, सभी परिसंपत्ति वर्गों ने कमजोर प्रदर्शन किया है। ताजा कमजोर प्रदर्शन के बावजूद दीर्घावधि के दौरान, इक्विटी श्रेष्ठ मुद्रास्फीति से बचाव में मददगार है और इसे निवेशकों के वित्तीय पोर्टफोलियो का मुख्य हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
क्या अन्य बाजारों में विविधता पर जोर देना सही है?
खासकर मौजूदा ऊंचे उतार-चढ़ाव के समय में भौगोलिक विविधता एक उचित जोखिम निवारण रणनीति है। एशियाई मुद्राएं अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिर रही हैं और विकसित बाजारों में निवेशक मौजूदा हालात में एक सही विविधता रणनीति हो सकती है।
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