मुद्रास्फीतिजनित मंदी की दास्तान | साप्ताहिक मंथन | | टी. एन. नाइनन / June 11, 2022 | | | | |
सन 1970 के दशक में विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में वृहद आर्थिक प्रबंधन के समक्ष एक नयी चुनौती आई। कारोबारी चक्र के उतार-चढ़ाव के बीच मुद्रास्फीति और बेरोजगारी विपरीत दिशाओं में बढ़ने के बजाय एक ही दिशा में बढ़ रही थीं। उच्च बेरोजगारी धीमी आर्थिक वृद्धि या ठहराव को दर्शाती थी। इस स्थिति को परिभाषित करने के लिए मुद्रास्फीतिजनित मंदी शब्द का प्रयोग किया गया। आधी सदी बाद यह शब्द एक बार फिर सुर्खियों में है क्योंकि अर्थव्यवस्थाओं का सामना लगभग शून्य वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति जैसे हालात से हो रहा है। सन 1970 के दशक में अर्थशास्त्रियों ने लोगों को मुद्रास्फीतिजनित मंदी के दौरान हो रहे एहसासों को सामने रखने के लिए एक अवधारणा विकसित की। इसे मिजरी इंडेक्स (कष्ट आधारित सूचकांक) का नाम दिया गया जो दरअसल उपभोक्ता मुद्रास्फीति और बेरोजगारी दर में इजाफा करती। आज अगर किसी को ऐसा सूचकांक बनाना हो तो वह क्या दर्शाएगा? आश्चर्य नहीं कि उन देशों में ‘कष्ट’ सबसे अधिक है जिन्हें उनके आर्थिक कुप्रबंधन के लिए तथा/अथवा बुनियादी समस्याओं के लिए जाना जाता है। ऐसे देश हैं तुर्की, अर्जेंटीना और दक्षिण अफ्रीका। इन देशों के बाद ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं वाले देश (युद्ध प्रभावित रूस और ब्राजील), पाकिस्तान और मिस्र आते हैं। इनके बाद भारत आता है। यूरोप की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं तथा अमेरिका भी बहुत पीछे नहीं हैं।
मिजरी इंडेक्स में दो संशोधन किए गए। एक तो ब्याज की प्रचलित दर को शामिल किया गया। इस बात ने तुर्की, ब्राजील, रूस और पाकिस्तान जैसे पहले से खराब स्थिति वाले देशों की हालत को और खराब कर दिया। क्योंकि उच्च मुद्रास्फीति अक्सर अपने साथ ऊंची ब्याज दरें भी लाती है। परंतु इस बात ने भारत और अमीर देशों के बीच के अंतर को और बढ़ा दिया क्योंकि अमीर देशों में ब्याज की दरें आमतौर पर कम रहती हैं जो उनकी पारंपरिक रूप से कम मुद्रास्फीति दर के अनुरूप होती है। भारत के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं है क्योंकि वह हर क्षेत्र के प्रतिनिधित्व के लिए चुनी गयी 20 अर्थव्यवस्थाओं की सूची में भी 10 के नीचे है।
दूसरा बदलाव प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर के रूप में शामिल किया गया क्योंकि इनसे आर्थिक कठिनाइयां कम होती हैं। इससे भारत को अपना प्रदर्शन सुधारने में मदद मिली लेकिन उसकी रैंकिंग में सुधार नहीं हुआ। भारत 2022 में सबसे तेज विकसित होने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था रह सकता है। बहरहाल इससे विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ समान धरातल पर आने में मदद मिल सकती है जहां वृद्धि दर आमतौर पर कम रहती है। मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, ब्याज दर और आय वृद्धि के रूप में चारों कारकों को ध्यान में रखें तो भारत 20 देशों की सूची में 12वें स्थान पर आता है। संशोधित मिजरी सूचकांक जो आमतौर पर इस बात पर ध्यान देता है कि लोग किस तरह जीवन बिता रहे हैं, उसका एक पूरक उथलपुथल वाले समय में अर्थव्यवस्था की स्थिरता का सूचकांक भी हो सकता है। मिसाल के लिए वर्तमान हालात जैसे समय में। सन 2013 में देश के दोहरे घाटे (राजकोषीय घाटा और चालू खाते का घाटा) में तेज इजाफे ने उसे ऐसे पांच देशों के समूह में शामिल करा दिया था जिनकी हालत वास्तव में बहुत नाजुक थी। आज भारत की स्थिति कैसी है?
आश्चर्य की बात है कि भारत की स्थिति अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम दोनों से बेहतर है। दूसरी ओर उसका प्रदर्शन पाकिस्तान और मिस्र को छोड़कर लगभग सभी देशों से बुरा है। युद्धग्रस्त रूस की बात करें तो अपने व्यापार अधिशेष की बदौलत उसकी स्थिति ठीक है। जर्मनी और नीदरलैंड पर भी यही बात लागू होती है। परंतु दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं मसलन चीन और जापान का क्या? उनके आंकड़ों के आधार पर बात करें तो दोनों देश आर्थिक प्रबंधन का मॉडल नजर आते हैं। मूल तथा संशोधित दोनों ही मिजरी इंडेक्स पर उनका प्रदर्शन सबसे अच्छा है। दोहरे घाटे के मामले में भी उनका प्रदर्शन काफी अच्छा है। हालांकि यह ध्यान देने वाली बात है कि चीन की वृद्धि दर 5 फीसदी के आसपास की सामान्य दर पर लौट आई है जबकि उसका राजकोषीय घाटा बढ़ा है। तनाव के संकेत नजर आने लगे हैं।
ऐसे आकलन संपूर्ण अनुभव के केवल कुछ हिस्से को ही माप पाते हैं। ऐसे में विशुद्ध आय स्तर तथा गरीबी एवं असमानता आदि का भी आकलन होना चाहिए। असमानता जितनी अधिक होगी पीढ़ीगत स्तर पर उनकी स्थिति में बदलाव की संभावना उतनी ही कम होगी। इसे एक ग्रेट गैट्सबी कर्व के जरिये मापा जाता है। यह कर्व एक पीढ़ी में संपत्ति के संघनन और अगली पीढ़ी के लोगों के अपने मातापिता की तुलना में बेहतर आर्थिक स्थिति पाने की क्षमता पर आधारित होता है। यह पैमाना बराक ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति रहते हुए उनकी टीम के एक अर्थशास्त्री ने बनाया था। भारत इन पैमानों पर बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है। आजादी की 75वीं वर्षगांठ का उत्सव मनाने की तैयारी करते देश में विचार करने को काफी कुछ है।
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