मई 2022 में देश के रोजगार के आंकड़े दर्शाते हैं कि वृहद स्तर पर स्थिरता आई है और क्षेत्रवार स्तर पर भी श्रम को लेकर सकारात्मक गति को बढ़ावा मिला है। वृहद स्तर की स्थिरता सबसे अहम श्रम बाजार संकेतक में नजर आती है जो है रोजगार की दर। अप्रैल के 37.05 फीसदी से मामूली बढ़कर यह मई में 37.07 प्रतिशत हो गई। यह सुधार श्रम भागीदारी में मामूली कमी लेकिन बेरोजगारी दर में बड़ी गिरावट की बदौलत आया। इसका अर्थ यह है कि रोजगार तलाशने वाले लोगों की तादाद में मामूली कमी आई लेकिन रोजगार तलाश रहे लोगों का बहुत छोटा हिस्सा ही बेरोजगार रहा। श्रम भागीदारी दर अप्रैल के 40.19 प्रतिशत से घटकर मई में 30.91 प्रतिशत रह गई। यह अच्छा संकेत नहीं है। लेकिन अच्छी बात यह है कि अप्रैल में रोजगार तलाश रहे लोगों में जहां केवल 7.83 प्रतिशत ही बेरोजगार रहे, वहीं मई में यह तादाद घटकर 7.12 प्रतिशत रह गई। वृहद स्तर पर देखें तो मई 2022 में श्रम के हालात अप्रैल 2022 से बहुत अलग नहीं रहे। परंतु अप्रैल और मई 2022 के बीच श्रम बाजार में अहम बदलाव दर्ज किया गया। सबसे पहले, रोजगार दर में हुई मामूली वृद्धि का वास्तविक अर्थ है करीब 10 लाख रोजगारों का बढ़ना। रोजगार का आंकड़ा अप्रैल के 40.29 करोड़ से बढ़कर मई में 40.4 करोड़ हो गया। यह लगातार दूसरा महीना है जब रोजगार बढ़ा है। अप्रैल में करीब 70 लाख रोजगार बढ़े थे। सबसे दिलचस्प है रोजगार में बड़ा बदलाव आना। बीते दो महीनों में रोजगार कृषि से सेवा और उद्योग क्षेत्र की ओर स्थानांतरित हुए हैं। अप्रैल में कृषि रोजगारों में 52 लाख की कमी आई लेकिन उद्योग जगत में 55 लाख तथा सेवा क्षेत्र में 67 लाख रोजगार बढ़े। परिणामस्वरूप अप्रैल में कुल रोजगार 70 लाख बढ़े। मई में कृषि क्षेत्र में 96 लाख रोजगार कम हुए लेकिन उद्योग जगत में एक करोड़ तथा सेवा क्षेत्र में 50 लाख रोजगार बढ़े। इस प्रकार कुल रोजगारों में 10 लाख की वृद्धि हुई। कुल मिलाकर अप्रैल और मई माह में कृषि क्षेत्र में 1.47 करोड़ रोजगार गए जबकि उद्योग जगत ने 1.56 करोड़ तथा सेवा क्षेत्र ने 72 लाख रोजगार मुहैया कराए। परिणामस्वरूप गत दो माह में 80 लाख अतिरिक्त रोजगार तैयार हुए। दिलचस्प बात है कि उद्योग और सेवा क्षेत्र में किया जाने वाला श्रम कृषि की तुलना में अधिक उत्पादक होता है और इसलिए इस हालिया बदलाव से खुश हुआ जा सकता है। इसके अलावा उद्योग जगत के भीतर भी अतिरिक्त श्रम की खपत निर्माण गतिविधियों के बजाय विनिर्माण उद्योगों के पक्ष में है। सन 2021-22 में उद्योग जगत के कुल रोजगार में विनिर्माण का योगदान 32 प्रतिशत जबकि निर्माण गतिविधियों का 65 प्रतिशत था। अप्रैल और मई में उद्योग क्षेत्र में बढ़ने वाले रोजगार में 34 प्रतिशत विनिर्माण तथा 65 प्रतिशत निर्माण में गए। विनिर्माण में अप्रैल-मई में 54 लाख नये रोजगार जुड़े। मई तक विनिर्माण का कुल रोजगार 3.4 करोड़ पहुंच गया। यह महामारी के बाद का उच्चतम स्तर है लेकिन अभी भी अक्टूबर-दिसंबर 2019 के 4 करोड़ के आंकड़े से काफी कम है। विनिर्माण के भीतर रोजगार में सबसे अधिक इजाफा धातु क्षेत्र में हुआ। महामारी के चलते लगे देशव्यापी लॉकडाउन के बाद अप्रैल 2020 की गिरावट के बाद इस उद्योग ने बहुत तेज सुधार किया है। इस क्षेत्र में रोजगार जनवरी-मार्च 2020 के 60-65 लाख से घटकर अप्रैल 2022 में 30 लाख रह गया। अक्टूबर-दिसंबर 2021 में यह वापस महामारी के पहले वाले स्तर पर पहुंच गया और औसत रोजगार 64 लाख रहा। तब से इसमें स्थिर इजाफा हो रहा है और मई 2022 में धातु क्षेत्र में रोजगार 94 लाख पहुंच गया। निर्माण गतिविधियों में अप्रैल-मई 2022 में एक करोड़ रोजगार सृजित हुए। इसमें 40 लाख अप्रैल में तथा 60 लाख मई में तैयार हुए। मई में इसमें रोजगार बढ़कर 7.2 करोड़ पहुंच गया। इस उद्योग में यह लंबे समय का सर्वोच्च स्तर है। कोविड प्रतिबंध शिथिल होने के साथ ही इसमें सुधार शुरू हो गया था। रोजगार के मामले में मई माह में सेवा क्षेत्र का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा। अप्रैल में 67 लाख की वृद्धि के बाद मई में इसमें महज पांच लाख की वृद्धि देखने को मिली। अप्रैल-मई में 72 लाख की वृद्धि के साथ सेवा क्षेत्र एक करोड़ के इजाफे वाले निर्माण क्षेत्र से पीछे रहा। सेवा क्षेत्र के भीतर देखें तो खुदरा व्यापार ने रोजगार वृद्धि के मामले में बाजी मारी। इसके परिणामस्वरूप अप्रैल 2022 में खेती से इतर खुदरा व्यापार सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता रहा और इसमें रोजगार 7.29 करोड़ के उच्चतम स्तर पर रहा। मई में अवश्य इसमें थोड़ी कमी आई और यह 7.14 करोड़ रहा। वित्तीय सेवा उद्योग के रोजगार में भी महामारी के बाद अच्छा सुधार हुआ है। 2019-20 में इस उद्योग में 61 लाख लोग रोजगारशुदा थे जो 2020-21 में बढ़कर 67 लाख तथा 2021-22 में 78.3 लाख हो गए। मई 2022 तक यह तादाद और बढ़कर 78.5 लाख हो गई। जून में जब भारत खरीफ की बुआई की ओर बढ़ रहा है, कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की मांग बढ़ने की आशा है। ऐसे में श्रम भागीदारी दर और रोजगार दर दोनों में इजाफा हो सकता है। बेरोजगारी दर बढ़ सकती है। लेकिन अगर श्रम भागीदारी दर तथा रोजगार दर में अच्छा सुधार होता है तो बेरोजगारी दर में इजाफा चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। (लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
