बाजार में दिखने लगा है केंद्रीय बैंक की सख्ती का असर | पुनीत वाधवा / June 02, 2022 | | | | |
कई समस्याओं के बीच वैश्विक इक्विटी बाजारों के लिए मई का महीना अनिश्चितता भरा रहा है। क्रेडिट सुइस वेल्थ मैनेजमेंट में भारतीय इक्विटी शोध प्रमुख जितेंद्र गोहिल ने पुनीत वाधवा के साथ बातचीत में कहा कि विदेशी निवेशक भारतीय इक्विटी बाजारों की तेजी को लेकर चिंतित हैं। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश:
क्या आप मानते हैं कि ढांचागत तेजी भारतीय इक्विटी में बरकरार है? या हम मंदी के दौर की तरफ बढ़ रहे हैं?
इस गिरावट में वास्तविक कीमत से ऊपर चल रहे शेयर साफ नजर आ रह हैं। जैसे वैश्विक तौर पर बॉन्ड प्रतिफल बढऩा शुरू हुआ है, डेट का आकर्षण इक्विटी में सुधार के साथ दिखने लगा है। हम इक्विटी में बदलाव देख सकते हैं, क्योंकि वैश्विक केंद्रीय बैंकों ने दरें बढ़ाई हैं और अपनी मौद्रिक नीतियों में नरमी के रुख को समाप्त किया है। भारतीय नजरिये से, हम ढांचागत लोकप्रियता पर सकारात्मक बने हुए हैं। हमें विश्वास है कि भारत आकर्षक स्थान है जिसकी वजह शहरीकरण की बढ़ती रफ्तार, बचत के वित्तीयकरण, निर्यात और निर्माण में वृद्घि है।
क्या भारतीय इक्विटी ‘तेजी पर बेचें’ या ‘गिरावट पर खरीदें’ वाला बाजार है?
हम आक्रामक खरीदारी का सुझाव नहीं दे रहे हैं। लेकिन यदि शेयर कीमत में ज्यादा आकर्षक स्तर पर गिरावट आती है तो यह अवसर साबित हो सकता है। कूल मूल्यांकन के नजरिये से, निफ्टी सूचकांक 17.6 गुना के 12 महीने के पीई पर कारोबार कर रहा है जो कोविड-पूर्व तीन वर्षीय औसत के अनुरूप है और कोविड-पूर्व पांच वर्षीय 16.9 गुना से बहुत ज्यादा दूर नहीं है। इसलिए, माना जा रहा है कि 5-7 प्रतिशत की और गिरावट मूल्यांकन को आकर्षक बना देगी।
आप मौजूदा बाजार मूल्यांकन को लेकर कितने सहज हैं?
हमें भरोसा है कि भारत अपने स्वयं के रिकॉर्ड और प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले महंगे मूल्यांकन पर लगातार कारोबार करेगा। निश्चित तौर पर विकास संबंधित समस्याएं हैं और धारणा कमजोर है। हालांकि बाजार में केंद्रीय बैंक की सख्ती का काफी असर दिखना शुरू हो गया है। यदि केंद्रीय बैंक दूसरी छमाही में दर वृद्घि पर धीमी गति से आगे बढ़ते हैं तो हम अच्छी तेजी देख सकते हैं। फिर भी प्रतिफल को लेकर हमारी उम्मीदें कम हैं।
क्या बाजारों के लिए अन्य समस्याएं कमजोर वृहद परिदृश्य से हो सकती हैं?
हां, वृहद परिदृश्य दुनियाभर में कमजोर है और भारत इसका अपवाद नहीं है। भारत के लिए हालांकि अपने स्वयं और अन्य अर्थव्यवस्थाओं के सापेक्ष, दबाव ऊंची तेल कीमत परिवेश के बावजूद कम हे। हम भारतीय वृहद परिदृश्य को लेकर आशान्वित बने हुए हैं।
क्या अब वैश्विक समस्याएं वृहद परिदृश्य को प्रभावित करेंगी?
भारतीय वृहद परिदृश्य और ज्यादा खराब होगा या नहीं, यह यूरोप तथा एशिया में भूराजनीतिक घटनाक्रम पर निर्भर करेगा। लंबे समय तक भूराजनीतिक तनाव से दुनियाभर में ऊंची ऊर्जा और खाद्य कीमतों को बढ़ावा मिल रहा है।
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