मेट्रो कैश ऐंड कैरी इन दिनों संभावित बिक्री और भारत से कारोबार समेटने की संभावना के कारण चर्चा में हैं। यह पहली बहुराष्ट्रीय कंपनी है जिसने न केवल भारत में संगठित थोक स्टोर स्थापित किए बल्कि वह अपनी मूल कारोबारी योजना पर भी टिकी रही। जर्मनी में मुख्यालय वाली मेट्रो एजी एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय थोक कंपनी है जो होटलों, रेस्तरां और कैटरर्स की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करती है। इसलिए जब इस कंपनी ने 2003 में भारत में अपना पहला स्टोर खोला तो उसे अपने वैश्विक कारोबारी मॉडल में बदलाव नहीं करना पड़ा। उसे स्थानीय नियामकीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी कुछ अलग नहीं करना पड़ा। इसके विपरीत अन्य विदेशी दिग्गजों मसलन वॉलमार्ट और फ्रांसीसी रिटेलर कार्फू ने भारत को खुदरा का बड़ा आकर्षक केंद्र बनाने की महत्त्वाकांक्षा के बावजूद यहां कैश ऐंड कैरी प्रारूप अपनाया। वॉलमार्ट और कार्फू ने भारत में बहु ब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की प्रतीक्षा करते हुए जिस प्रारूप को मजबूरी में अपनाया उसे मेट्रो ने स्वाभाविक रूप से चुना। इस बड़े अंतर ने मेट्रो कैश ऐंड कैरी को भारत में गैर विवादित कारोबार बनाया तथा उसे सुर्खियों से दूर रहने में मदद की। जबकि वॉलमार्ट को तब भी और अब भी एक ऐसी शक्तिशाली विदेशी ताकत के रूप में देखा जाता है जो किराना दुकानों या पास पड़ोस में स्थित दुकानों को नुकसान पहुंचा रहा है। यहां तक कि उसके कैश ऐंड कैरी मॉडल अपनाने के बाद भी इस छवि में बदलाव नहीं आया। वॉलमार्ट इंडिया के थोक कारोबार को 2018 में एक जबरदस्त सौदे में फ्लिपकार्ट ने खरीद लिया था। इसके बाद यह अमेरिकी दिग्गज ई-कॉमर्स बनाम ऑफलाइन व्यापारियों को लेकर एक अलग नियामकीय पहेली में उलझ गई। कार्फू भारत में लंबे समय तक नहीं रही और उसने 2014 में महज चार वर्ष बाद अपना कारोबार समेट लिया। भारत में कंपनी के केवल पांच स्टोर थे जिन्हें उसने बिना ज्यादा प्रतीक्षा किए बंद करना सही समझा। प्रश्न यह है कि ऐसे में मेट्रो खरीदार की प्रतीक्षा क्यों कर रही है और एक ऐसा बाजार क्यों छोड़ना चाहती है जिसके बारे में उसकी मूल कंपनी मेट्रो एजी भी मानती है कि वह दुनिया के 10 शीर्ष बाजारों में शामिल है? यह भी कहा जा सकता है कि इसमें एक खास पैटर्न है और एशिया इस समूह के लिए बहुत सकारात्मक नहीं साबित हुआ। भारत अभी भी एक अच्छा ठिकाना हो सकता है लेकिन तब नहीं जब चुनाव भारत और यूरोप के किसी देश के बीच करना हो। जर्मन समूह ने अपना पूरा ध्यान यूरोप में अपने काम पर लगा रखा है। वह भी उस समय जब एक के बाद एक कई झटके लगे जिनमें महामारी तथा रूस-यूक्रेन जंग शामिल हैं। इसके अलावा कुछ स्थानों पर स्थानीय चुनौती आड़े आई। इन तमाम बातों के बीच मूल कंपनी में नेतृत्व परिवर्तन भी हुआ और फोकस में बदलाव आया। बीते दो वर्षों में समूह के लिए एशिया से अच्छी खबरें नहीं आयीं। एशिया के कई क्षेत्रों में कंपनी या तो कारोबार से बाहर हो गई या उसने बहुलांश हिस्सेदारी बेच दी। सन 2020 में मेट्रो ने घोषणा की थी कि उसने अपने चीन कारोबार की बहुलांश हिस्सेदारी वुमेई टेक्नॉलजी समूह को करीब 1.5 अरब यूरो में बेच दिया था। सन 2021 में समूह ने जापान से कारोबार समेटते हुए सभी 10 स्टोर बंद कर दिये। जापान छोड़ते समय उसने कहा कि कारोबार का जरूरी आकार हासिल करने तथा मुनाफा कमाने के अवसर नहीं थे । उसी वर्ष मेट्रो ने म्यांमार में भी कारोबार बंद कर दिया जबकि वहां उसे कारोबार शुरू किए हुए केवल दो वर्ष हुए थे। संभव है कि वहां कंपनी ने यह निर्णय राजनीतिक वजहों से लिया हो लेकिन म्यांमार छोड़ने की आधिकारिक वजह यह बताई गई कि एक बढ़ते हुए और मुनाफे वाले थोक खाद्य कारोबार के लिए वहां अनुकूल हालात नहीं थे। जर्मनी में 1964 में स्थापित मेट्रो समूह की एशिया में अहम मौजूदगी केवल भारत में सीमित रह गयी है जहां उसके 31 स्टोर हैं लेकिन रिलायंस रिटेल, उड़ान तथा डीमार्ट जैसे घरेलू कारोबारियों के साथ प्रतिस्पर्धी माहौल में मुकाबला करने के लिए उसके पास संसाधन नहीं हैं। एशिया में मेट्रो के अन्य कारोबारों की बात करें तो पाकिस्तान में वह मैक्रो-हबीब के साथ संयुक्त उपक्रम में है। इस बीच भारत में वॉलमार्ट के कारोबार की बात करें तो यहां उसके 29 कैश ऐंड कैरी स्टोर हैं लेकिन यहां ज्यादा ध्यान फ्लिपकार्ट के ई-कॉमर्स कारोबार पर दिया जा रहा है। बल्कि फ्लिपकार्ट मार्केटप्लेस और डिजिटल लेनदेन प्लेटफॉर्म फोनपे की इन दिनों वैश्विक आय में मजबूत उपस्थिति है। वॉलमार्ट के अंतरराष्ट्रीय थोक/ कैश ऐंड कैरी बाजारों में मैक्सिको 166 स्टोरों के साथ शीर्ष पर है। अफ्रीका में उसके 90 स्टोर, चीन में 36, भारत में 29 और चिली में 11 स्टोर हैं। भारत में वॉलमार्ट के यही 29 कैश ऐंड कैरी स्टोर (फ्लिपकार्ट के कारोबार को छोड़कर) हैं। चीन में 361 खुदरा स्टोर के साथ कुल 397 स्टोर हैं। मैक्सिको में कुल 2,755 स्टोर हैं। भारत में कैश ऐंड कैरी कारोबार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की रुचि कम हो रही है ऐसे में घरेलू कारोबारियों के पास अवसर है कि वे उस क्षेत्र का लाभ उठाएं जहां कुछ समय पहले तक असंगठित कारोबारियों का दबदबा था। उद्योग जगत के अनुमानों के मुताबिक खुदरा उद्योग 2030 तक 1.5 लाख करोड़ डॉलर का हो सकता है। अभी इसका आकार 80 करोड़ डॉलर का है। जाहिर है भारत आकर्षक क्षेत्र बना रहेगा।
