अंतर्भारतीय विविधता बनाम बड़ी कंपनियां | अजय शाह / June 02, 2022 | | | | |
कई ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने आईटी सिस्टम की मदद से स्थापित, मानकीकृत प्रक्रिया मैनुअल की बदौलत समृद्धि हासिल की है और इन्हें पूरे भारत में अपनाकर वे कारोबार का आकार बड़ा कर रही हैं। उबर जैसी कंपनियां और अधिक महत्त्वाकांक्षी हैं जिन्होंने केवल एक उत्पाद बनाया और उसे पूरी दुनिया में कारोबार के लिए उतार दिया। परंतु कई उद्योग ऐसे भी हैं जिनमें उत्पाद के डिजाइन और प्रक्रिया को लेकर स्थानीय स्तर पर प्रतिक्रिया देनी होती है। भारत में स्थानीयता भी बहुत विविधता से भरी हुई है। भारत में पहले इस बात को लेकर काफी उत्साह देखने को मिला कि बड़ी कंपनियां तैयार की जाएं जो एक जैसे उत्पादों और प्रक्रियाओं के साथ पूरे देश में परिचालित हों। दूसरी लहर कहीं अधिक जटिल संस्थाओं की आई जिनका व्यवहार पूरे देश में अलग-अलग होता है।
पुराने समय में किसी कंपनी के वे कर्मचारी अधिकार संपन्न होते थे जिनका ग्राहकों से सीधा सामना होता था। वे उत्पादों और योजनाओं को लेकर लेनदेन के पहले विस्तृत चर्चा की स्थिति में रहते थे। यह व्यवस्था गड़बड़ थी। निर्णय लेने की क्षमता एकदम व्यक्तिगत थी और अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों के अपने एजेंडा होते थे। लेकिन इसके बदले में फर्म का कामकाज अधिक लचीला रहता था।
सन 1990 के दशक में देश में आईटी समर्थित पहला जटिल देशव्यापी निगम सामने आया। पहली बार पूरे देश में उत्पादों एवं सेवाओं का मानकीकरण हुआ। फर्म के व्यवहार के बारे में हर ब्योरा सॉफ्टवेयर में दर्ज था और अग्रिम पंक्ति के कर्मचारी इनमें कोई बदलाव नहीं कर सकते थे। प्रक्रिया मानकीकरण के बाद बड़े पैमाने पर काम करना संभव हुआ। भारतीय कंपनियां भी हजारों कार्यालय खोलने और लाखों लेनदेन करने में सक्षम हो गईं। देश में पहली बार ऐसी प्रणाली बनाने वाले लोगों को अपने काम पर उचित ही गर्व है। भारत से बाहर देखें तो गूगल मेल जैसे उत्पाद उल्लेखनीय उदाहरण हैं जहां एक उत्पाद पूरी दुनिया में काम कर रहा है।
परंतु कई उत्पादों और प्रक्रियाओं के मामले में ऐसी एकरूपता यानी पूरे देश या पूरी दुनिया के लिए एक ही उत्पाद पेश करना, कारगर नहीं साबित होता। अलग-अलग जगहों के लिए अलग-अलग प्रारूप के साथ ही फर्म का उपयुक्त डिजाइन तैयार होता है। उदाहरण के लिए कई खाद्य कंपनियां अपना ब्रांड नाम तो एक ही रखती हैं लेकिन वे हर भौगोलिक क्षेत्र में लक्षित समूह को ध्यान में रखती हैं ताकि स्थानीय स्तर पर सबको पसंद आने वाला स्वाद तैयार किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप नूडल्स के पैकेट या कैंडी बार का स्वाद, खरीद की जगह के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। फ्रांस के लोग जर्मनी के लोगों से अलग हैं और एक अच्छा संस्थान दोनों जगहों पर एक समान व्यवहार करने के बारे में नहीं सोचेगा।
भारत बहुत विविधताओं से भरा देश है। हम राज्यों और भाषाओं के आधार पर विविधता को परिभाषित करते हैं। लेकिन एक राज्य (केरल) में एक ही भाषा यानी मलयालम बोली जाती है लेकिन वहां भी उत्तरी केरल, मध्य केरल तथा दक्षिण केरल में अंतर है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ने भारत को 102 समान क्षेत्रों में बांटा है जिनमें से प्रत्येक सात जिलों या 1.5 करोड़ लोगों से बना है तथा जो भारत की आंतरिक विविधता को समझने की दृष्टि से उपयोगी है। इस वर्गीकरण के माध्यम से हमें विविधता को लेकर कुछ दिलचस्प बातें पता चलीं। परिवारों की आय की बात करें तो मुंबई, दिल्ली या चंडीगढ़ जैसी श्रेष्ठतम जगहों की माध्य आय खराब जगहों मसलन जौनपुर, सुल्तानपुर, फैजाबाद, आंबेडकर नगर (उप्र) आदि की तुलना में 4.3 गुना अधिक है। महिलाओं के पास मोबाइल की बात करें तो सबसे अच्छी जगहों मुंबई, चंडीगढ़, गोवा आदि में मोबाइल धारक महिलाएं झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा जालौन (उप्र) की तुलना में 17.8 गुना अधिक हैं।
जब कोई कंपनी ऐसे उत्पाद या प्रक्रिया का चयन करती है जिससे पूरा देश लाभान्वित होने वाला हो तो जाहिर है यह कुछ ही परिवारों के लिए बेहतर साबित होगा। आदर्श स्थिति में वह एकल डिजाइन अच्छी तरह तैयार किया जाएगा ताकि वह एक आदर्श बन सके जिसे अधिकतम लोगों तक पहुंचाया जाए।
वर्गीय और क्षेत्रीय विविधता के कारण यह कुल आबादी के केवल एक हिस्से से संबद्ध हो सकेगा। भारत में बड़ी कंपनियों के इस प्रकार कारोबारी दायरा बढ़ाने के क्रम में एक दो स्तरीय बाजार तैयार हो गया है जहां स्थानीय फर्म ऐसे विशिष्ट काम करती हैं जो स्थानीयता को परिलक्षित करते हैं, वहीं साथ ही ऐसी वैश्विक या राष्ट्रीय कंपनियां भी होती हैं जो स्थानीयता को तवज्जो नहीं देतीं लेकिन जो बहुत बड़े पैमाने पर काम करती हैं।
यानी हम बाजारों को तीन वर्गों में देख सकते हैं। कुछ मामलों में स्थानीयता की जीत होगी और हर समरूप क्षेत्र में केवल स्थानीय लोग होंगे। कुछ अन्य क्षेत्रों में एक सामान्य वैश्विक/राष्ट्रीय उत्पाद होगा तथा हर जगह वैश्विक/राष्ट्रीय कारोबारी होंगे। एक हिस्सा बीच का भी होगा। क्या दक्षिणी केरल में रहने वाले परिवार और झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा या जालौन में रहने वाले परिवार के स्वाद और उनके लिए खाद्य उत्पादों की कीमत एक समान होगी? क्या वैश्विक/राष्ट्रीय कंपनियां देश भर में पेशकश के जरिये अधिक सफलता पाएंगी?
भारत और यूरोपीय संघ के बीच कई प्रकार की समानताएं हैं। दोनों बहुत विशाल और विविधतापूर्ण हैं। मध्य क्षेत्र में भारत में काम कर रही कंपनियों का काम है समुचित उपराष्ट्रीय समरूपता तलाश करना। कुछ कंपनियां भारत को 10 भौगोलिक क्षेत्रों में बांट सकती हैं तो वहीं कुछ अन्य 102 समरुप क्षेत्रों का चयन कर सकती हैं। कंपनियों के प्रबंधन को हर भौगोलिक क्षेत्र की टीम को अहम लचीलापन प्रदान करना होगा ताकि वह उत्पाद और प्रक्रियाओं में संशोधन करके कारोबार का विकास कर सके।
इसके लिए प्रबंधकीय जटिलता की आवश्यकता होगी। एक साबुन का व्यापक उत्पादन करके उसे पूरे देश में बेचना कहीं अधिक आसान है जबकि किसी कंपनी के लिए यह काफी मुश्किल है कि वह 10 या 100 निर्णय लेने वाली इकाइयां स्थापित करे जो विविध रणनीतिक निर्णय लें। इस प्रक्रिया में सॉफ्टवेयर क्षेत्र की प्रगति मददगार होती है जहां राष्ट्रीय/वैश्विक स्तर पर एक ऐसी व्यवस्था बनायी जा सकती है जहां स्थानीय प्रबंधक काम संभाल सकते हों।
भारत में आज हर कंपनी आबादी के अनुसार मुनाफे या बाजार हिस्सेदारी का मानचित्र तैयार करना चाहती है जो पूरे देश में अलग-अलग है। इस पूरी प्रक्रिया में उन कंपनियों को अधिक सफलता मिलेगी जो विकेंद्रीकरण को गंभीरता से लेंगी।
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