मई में एफपीआई की खूब बिकवाली | संदर सेतुरामन और मयंक पटवर्द्धन / मुंबई June 01, 2022 | | | | |
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने मई में शेयर बाजार से करीब 44,000 करोड़ रुपये की निकासी की है। 1993 के बाद से यह दूसरा मौका है, जब विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से किसी महीने में इतनी भारी बिकवाली की है। सबसे ज्यादा 58,632 करोड़ रुपये की बिकवाली मार्च 2020 में की गई थी, जब कोविड महामारी से दुनिया में हाहाकार मचा था।
विदेशी निवेशकों की हालिया बिकवाली, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति में सख्ती और रूस-यूक्रेन युद्ध तथा चीन में लॉकडाउन के कारण जिंसों की कीमतों में तेजी ने चिंता बढ़ा दी है।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यूआर भट्ट ने कहा, ‘रूस-यूक्रेन युद्ध लंबा खिंचने और फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाए जाने से एफपीआई लगातार बिकवाली कर रहे हैं। मार्च 2020 की बिकवाली के बाद एफपीआई ने जमकर खरीदारी भी की थी और तगड़ा मुनाफा कमाया था। पिछले कई महीनों से मौद्रिक नीति सख्त होने और ब्याज दरें बढ़ाए जाने के संकेत मिल रहे थे। उसके बाद से ही विदेशी निवेशक बिकवाली करने में जुट गए। हालांकि देसी निवेशकों की लिवाली ने कुछ हद तक भरपाई की है।’
एफपीआई की सबसे ज्यादा बिकवाली वाले 10 महीने में से 5 पिछले आठ महीनों के दौरान आए। विदेशी निवेशकों ने महामारी के बाद प्रोत्साहन उपाय वापस लिए जाने से पहले अक्टूबर से ही बिकवाली शुरू कर दी थी। मई में एफपीआई लगातार आठवें महीने शुद्ध बिकवाल रहे और इस दौरान करीब 2 लाख करोड़ रुपये की निकासी की।
हालांकि भारत के कुल बाजार पूंजीकरण के हिसाब से हालिया बिकवाली अपेक्षाकृत कम रही, जिससे पता लगता है कि बाजार एफपीआई की बिकवाली बरदाश्त कर सकता है। उदाहरण के लिए मार्च 2020 में 8 अरब डॉलर की बिकवाली की गई थी, जो भारतीय बाजार के लिए बड़ा झटका था क्योंकि औसत बाजार पूंजीकरण केवल 125 लाख करोड़ रुपये था, जो अब बढ़कर 253 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इसी तरह जनवरी 2008 में वैश्विक वित्तीय सकट के दौरान 4.4 अरब डॉलर की निकासी की गई थी, जबकि उस समय बाजार पूंजीकरण महज 67 लाख करोड़ रुपये था। भट्ट ने कहा, ‘3 अरब डॉलर से 4 अरब डॉलर की बिकवाली की भरपाई हो सकती है, जो बाजार के परिपक्व होने का संकेत है। लेकिन ब्याज दरें बढ़ाए जाने और फेडरल रिजर्व द्वारा बैलेंस शीट का आकार घटाए जाने से आगे एफपीआई की बिकवाली बढ़ सकती है।’ पिछले साल अक्टूबर से एफपीआई की बिकवाली जारी है, जिसके कारण भारतीय बाजार में लगातार उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है और निवेेशक परेशान हैं।
अवेंडस कैपिटल अल्टरनेट स्ट्रैटजीज के मुख्य कार्याधिकारी एंड्रयू हॉलैंड ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर ब्याज दरें बढ़ रही हैं, जिससे बाजार में उतार-चढ़ाव ज्यादा है। फेडरल रिजर्व ने अभी अपनी बैलेंस शीट का आकार कम नहीं किया है। ऐसे में अगले दो महीने में और बिकवाली देखी जा सकती है। यूरोप और ब्रिटेन भी मंदी में फंस सकता है।’हाल के महीनों में भारत के बाजार में एफपीआई की बिकवाली इंडोनेशिया जैसे अन्य उभरते बाजारों की तुलना में ज्यादा है। विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च 2020 से घरेलू बाजार के शानदार प्रदर्शन और अन्य उभरते बाजारों में बेहतर मूल्यांकन के कारण विदेशी निवेशक भारत के शेयर बाजार में बिकवाली कर रहे हैं। मगर दीर्घावधि में एफपीआई भारत के बाजार में लौट सकते हैं।
हॉलैंड ने कहा, ‘फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में बढ़ोतरी रोके जाने और जोखिम-आधारित ट्रेड शुरू होने तथा सकल घरेलू उत्पाद की ऊंची वृद्धि दर को देखते हुए भारत अग्रणी देशों में रह सकता है।
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