चौथी तिमाही में वृद्धि दर महज 4.1 फीसदी | असित रंजन मिश्र / June 01, 2022 | | | | |
ओमीक्रोन की लहर और जिंस कीमतों में लगातार तेजी का आर्थिक वृद्धि पर बहुत बुरा असर पड़ा है। इन दोनों बाधाओं की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था लगातार तीसरी तिमाही में लड़खड़ा गई और जनवरी-मार्च 2022 में वृद्धि दर केवल 4.1 फीसदी रही।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने आज सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े जारी किए और वित्त वर्ष 2021-22 के लिए वृद्धि का अनुमान घटाकर 8.7 फीसदी कर दिया। फरवरी में विभाग ने वृद्धि 8.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। हालांकि वित्त वर्ष 2022 में व्यापार, होटल और संचार सेवाओं के अलावा सभी क्षेत्र महामारी से पहले वित्त वर्ष 2020 के अपने स्तरों से ऊपर पहुंच चुके हैं। मार्च तिमाही में निजी उपभोग पर व्यय में वृद्धि उससे पिछली तिमाही के मुकाबले घटकर केवल 1.8 फीसदी रह गई, जो अर्थव्यवस्था की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई। सरकारी व्यय ने उस दौरान रफ्तार पकड़ी और 4.8 फीसदी की वृद्धि दर के साथ उसने कुल वृद्धि में खासा योगदान किया। अर्थव्यवस्था में निवेश मांग की बानगी देने वाला सकल स्थायी पूंजी निर्माण उसी अवधि में कम होकर 5.1 फीसदी ही रह गया। आपूर्ति की बात करें तो मार्च तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट के कारण 0.2 फीसदी कम हो गया। तीसरे अग्रिम अनुमान में तेज गर्मी के कारण गेहूं का उत्पादन कम होने के अनुमान के बावजूद कृषि क्षेत्र की वृद्धि 4.1 फीसदी आंकड़े के साथ अच्छी रही।
श्रम की अधिकता वाले निर्माण क्षेत्र को सरकार के पूंजीगत व्यय और केंद्रीय बैंक द्वारा नीतिगत दर इजाफे से पहले रियल एस्टेट में आई तेजी का खूब फायदा मिला और उसमें 2 फीसदी की वृद्धि हुई। मगर व्यापार, होटल, परिवहन, संचार सेवाओं के सुस्त प्रदर्शन (5.3 फीसदी) और वित्तीय, रियल एस्टेट तथा पेशेवर सेवाओं की मंद रफ्तार (4.3 फीसदी) के कारण सेवाओं में वृद्धि 5.5 फीसदी ही रह गई।
इक्रा रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि पिछली तिमाही में आपूर्ति व्यवधानों और कच्चे माल की ऊंची कीमतों से जूझते विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर कम होना चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, ‘वित्त वर्ष 2022 की आखिरी तिमाही में जीडीपी के बनिस्बत निवेश का अनुपात बढ़ा था फिर भी जीडीपी की तुलना में खपत का अनुपात घटना चिंता की बात है।’
सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों पर मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि हाल में आए उच्च आवृत्ति के संकेतक बताते हैं कि घरेलू मांग की स्थितियां मजबूत हो रही हैं और विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग बढ़ा है। इससे संकेत मिलता है कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है। उन्होंने कहा कि सामान्य मॉनसून के अनुमान और आय संभावना से 2022-23 में खरीफ की फसल का रकबा बढ़ने की उम्मीद है। ज्यादा कृषि उत्पादन, बेहतर मूल्य, अच्छे मॉनसून की उम्मीद और ग्रामीण भारत के प्रति सरकार की समर्थनकारी नीति से आने वाले महीनों में देहात क्षेत्र में मांग में सुधार आने की उम्मीद जगी है।
नायर ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे चलकर वैश्विक उतार-चढ़ाव और अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ सकता है। अदिति नायर ने कहा कि रूस-यूकेन युद्ध, वैश्विक स्तर पर जिंसों के ऊंचे दाम और दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीति में सख्ती करने के साथ साथ विश्व में आर्थिक सुस्ती का भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने की आशंका है। अर्थव्यवस्था में रोजगार की स्थितियां सुधरने से उपभोग खर्च में इजाफा हो सकता है। हालांकि ईंधन और खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतें उनके खर्च में बाधा बन सकती हैं।
कई आर्थिक विशेषज्ञों ने हाल में भारत के लिए वृद्धि अनुमानों को घटा दिया है। एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने वित्त वर्ष 2023 के लिए मई में भारत की विकास दर के अनुमान को 7.8 फीसदी से घटाकर 7.3 फीसदी कर दिया है। इसकी वजह मुद्रास्फीति का बढ़ता दबाव और रूस-यूक्रेन युद्ध का लंबा खिंचना है। मॉर्गन स्टैनली ने भी पिछले महीने वित्त वर्ष 2023 के लिए विकास दर का अनुमान 7.9 फीसदी से घटाकर 7.6 फीसदी कर दिया था। उसका कहना था कि वैश्विक वृद्धि में सुस्ती, जिंसों की ऊंची कीमतें और वैश्विक पूंजी बाजारों में जाखिम से बचाव के कारण एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में गिरावट के जोखिम हैं।
बुनियादी उद्योगों का उत्पादन बढ़ा
बुनियादी क्षेत्र के आठ उद्योगों का उत्पादन अप्रैल, 2022 में एक साल पहले के इसी महीने के मुकाबले 8.4 प्रतिशत बढ़ा। मार्च 2022 में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, स्टील, सीमेंट और बिजली क्षेत्रों के उत्पादन में 4.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। तुलनात्मक आधार कम होने के कारण अप्रैल 2021 में 62.6 प्रतिशत की उच्च वृद्धि रही थी।
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