बदलती विश्व व्यवस्था में भारत के लिए अवसर | राष्ट्र की बात | | शेखर गुप्ता / May 30, 2022 | | | | |
यूक्रेन पर रूसी हमला चौथे महीने में पहुंच चुका है। अब तक का घटनाक्रम व्लादीमिर पुतिन ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की अपेक्षाओं को भी धता बता चुका है। किसी ने नहीं सोचा था कि यह जंग 90 दिन से ज्यादा खिंच जाएगी।
हालांकि काफी संदेह और भ्रम बाकी हैं। इसके तमाम नैतिक, भूराजनीतिक और सामरिक पहलू हैं। शुरुआत करते हैं नैतिक पहलू से जिसे आसानी से और कठोरता से उठाया जा सकता है। इसके लिए मुझे पहले ही माफ कर दीजिए और मेरे साथ बने रहिए।
देखिए कि दुनिया के तमाम समझदार लोग इस समय यूक्रेन को क्या सलाह दे रहे हैं। 99 वर्ष के हो चुके हेनरी किसिंजर कहते हैं कि यूक्रेन को एक कड़वा घूंट पीकर समझौता कर लेना चाहिए और ताकतवर रूस को अपनी जमीन और कुछ संप्रभुता सौंप देनी चाहिए। न्यूयॉर्क टाइम्स का संपादकीय बोर्ड कहता है कि ताकतवर रूस को हराना मुश्किल है। ऐसे में अमेरिका को भी पुतिन को ताना मारना बंद करना चाहिए और यूक्रेन को अच्छी तरह मोलतोल करना चाहिए।
इसके अलावा भी शिकागो विश्वविद्यालय के जॉन मियरशीमर, नोम चोमस्की, सिंगापुर के किशोर महबूबानी तक कई विद्वान अपनी राय व्यक्त कर चुके हैं। ये सभी विश्व के जानेमाने बुद्धिजीवी हैं। यदि हम सोशल मीडिया से इतर भारत के आम लोकप्रिय विचार को जानने का प्रयास करें तो वह भी बहुत अलग नहीं है। विचार यही है कि पश्चिम ने ताने मार कर पुतिन को यूक्रेन पर आक्रमण करने पर मजबूर किया और उसे फंसा दिया। नाटो का पूर्व दिशा में विस्तार रूस को भड़काने वाला था। पश्चिमी देश अंतिम यूक्रेनवासी के रहने तक रूस से लड़ेंगे।
यह भी कहा जा रहा है कि जेलेंस्की को वही मिल रहा है जिसके वे हकदार हैं। अगर समझ हो तो उन्हें अभी भी रूस की शर्तें मान लेनी चाहिए। दोनबास क्षेत्र के अधिकांश लोग खुद को रूसी अधिक मानते हैं। अगर जेलेंस्की ऐसा नहीं करते तो अपने देश को बरबाद होते देख सकते हैं।
अब हम जरा भीतर की ओर दृष्टि करें और जंग का एक खेल खेलें। मैं साफ कर दूं कि यह खेल पूरी तरह काल्पनिक है इसलिए ज्यादा नाराज न हों।
कल्पना कीजिए कि किसी समय चीन अपनी शर्तों पर भारत के साथ सीमा विवाद निपटाने का निश्चय करता है और लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश, दोनों मोर्चों से हमला कर देता है। लड़ाई के कुछ सप्ताह गुजर चुके हों और हमारी सेना बहादुरी से लड़ रही हो, तभी पाकिस्तान चीन की मिलीभगत से कश्मीर में हमला कर दे।
चीन और पाकिस्तान के बीच फंसे भारत को अपनी अर्थव्यवस्था से छह गुना और रक्षा बजट से सात गुना अधिक शक्तिशाली हमला झेलना होगा। वह भी तब जब चीन के बजट आंकड़ों पर यकीन किया जाए।
बचाव कठिन है और लड़ाई खतरनाक, ऐसे में हमें विपरीत हालात में अपना कुछ भूभाग गंवाना पड़ता है। यकीनन क्वाड के सहयोगी दल तथा फ्रांस, इजरायल जैसे देश मदद करते हैं लेकिन हमें अपनी लड़ाई खुद लडऩी पड़ती है। ऐसे में शी चिनफिंग भारत और उसके सहयोगियों, खासकर अमेरिका को लिखकर युद्ध खत्म करने की अपनी शर्तें बताते हैं। वह यह भी कहते हैं कि पाकिस्तान की ओर से भी वही बात करेंगे।
शर्तें इस प्रकार हैं: भारत अक्साई चिन पर चीन के कब्जे को औपचारिक मान्यता दे, लद्दाख में चीन के 1959 के दावे को स्वीकार करे, अरुणाचल प्रदेश चीन को सौंप दे। या शायद चीनी अधिकारी अधिक उदार हों तो केवल तवांग जिला ही लें और सेंट्रल सेक्टर के कुछ हिस्से।
पाकिस्तान की बात करें तो भारत को कश्मीर घाटी सौंपनी होगी। सहयोग और शांति प्रक्रिया की भावना के अनुरूप पाकिस्तानी भारत से कह सकते हैं कि वह जम्मू अपने पास रखे और लद्दाख जाने का रास्ता दे। संभव है कि जब आप इन सब में उलझे हों तभी वह लिपुलेख पर नेपाल के दावे का निपटारा कर दे और भूटान से कहे कि वह चीन की मांग पूरी कर दे। इस पर भारत कह सकता है- भाड़ में जाओ।
तीन परमाणु हथियार संपन्न देशों के बीच की जंग विश्व को चिंतित कर देती है। समझदार लोग भारत को समझाते हैं कि मिसाइलों की बारिश और हजारों लोगों की मौत के बीच यह जंग लडऩा निरर्थक है। क्या हिमालय का यह बेकार इलाका अपने अस्तित्व से अधिक आवश्यक है? चीन तो वही मांग रहा है जिसे वह ऐतिहासिक रूप से अपना समझता है। चीन बहुत मजबूत है उसे हराया नहीं जा सकता।
पाकिस्तान? कश्मीर पर तो हमेशा से उसका दावा रहा है। घाटी में भी बहुत बड़ा हिस्सा भारत से खुश नहीं है। उन्हें जाने दिया जाए। ऐसा करके ही आप अपने देश को बरबादी से और दुनिया को एक महायुद्ध से बचा सकते हैं तथा स्थायी शांति हासिल कर सकते हैं।
क्या मेरी बातों ने आपको उकसाया? मैं आपकी बात सुनता हूं कि ऐसी स्थिति कभी नहीं आयेगी। चीन और पाकिस्तान कभी ऐसी सैन्य हरकत नहीं करेंगे। याद रखिए कि 24 फरवरी की सुबह तक रूस और यूक्रेन के बारे में भी हम सब यही सोच रहे थे।
आगे आप कह सकते हैं कि लेकिन हमारे पास क्वाड साझेदार और परमाणु हथियार हैं। यूक्रेन के पास ज्यादा ताकतवर सहयोगी थे। और पुतिन के पास परमाणु हथियार हैं, लेकिन इन हथियारों को कोई भी पहले इस्तेमाल नहीं कर सकता। यदि भारत ने बालाकोट में पाकिस्तान की परमाणु हथियार संबंधी धौंसपट्टी को नाकाम किया था तो पुतिन के मामले में दुनिया ऐसा कई बार कर चुकी है। आधुनिक युद्ध में यदि कोई देश ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है जहां परमाणु हथियारों का इस्तेमाल अनिवार्य है तो पहले ही काफी कुछ गंवाया जा चुका होता है। आप नहीं चाहते कि आप जिनकी कद्र करते हैं उनमें से कोई उस स्थिति में पहुंचे।
मैंने बार-बार कहा है कि यह पूरी तरह काल्पनिक स्थिति है। लेकिन इससे समझा जा सकता है कि आज जब यूक्रेन के लोगों से पुतिन की मांगों को मानने और अपनी जमीन और संप्रभुता गंवा कर खुश रहने को कहा जा रहा है तो उन्हें कैसा लग रहा है। रूस ने अपनी मांगों की सूची भेज भी दी है। उसी की तुलना में मैंने चीन की सूची बनाई।
राष्ट्रवाद हर देश के नागरिकों का अधिकार है। जब तक वे अपने देश के लिए लडऩा चाहते हैं, उन्हें अधीनस्थ बन जाने की सलाह देना हास्यास्पद है, भले ही शत्रु कितना भी ताकतवर क्यों न हो। यदि हमारा काल्पनिक परिदृश्य हकीकत बना तो हमारी क्या स्थिति बनेगी?
हम सब एकजुट होंगे और अपनी जमीन और संप्रभुता के लिए जी जान से लड़ेंगे, चाहे जो कीमत चुकानी पड़े। यूक्रेन के लोग यही कर रहे हैं। जो लोग हमें हकीकत को समझने और कड़वे समझौते करने की सलाह देंगे उनसे हम क्या कहेंगे? यह सलाह भी हमें नाराज कर देगी। शायद हम उन 'शुभेच्छुओं' से ग्रेटा थनबर्ग की तरह कहें- आपकी हिम्मत कैसे हुई!
नैतिक पहलू के हल होने के बाद भूराजनीतिक और सामरिक पहलू तो आसान हैं। यह जंग रूस को आर्थिक और सामरिक दृष्टि से कमजोर कर देगा भले ही वह पूरे यूक्रेन पर कब्जा कर ले।
चीन अपने मजबूत मित्र के इस पराभव को देखकर दुखी होगा। कहीं न कहीं अमेरिका, यूरोप और चीन अपने रिश्तों में सुधार करेंगे क्योंकि बड़े आर्थिक हित दांव पर हैं। भारत पश्चिमी देशों के साथ रिश्तों को सुधारेगा और रूस या किसी अन्य देश पर अपनी सैन्य निर्भरता को कम करेगा। कुल मिलाकर इससे वैश्विक शक्ति संतुलन कमजोर होगा।
रणनीतिक दृष्टि से भारत के लिए यह अनूठा अवसर है जो एक पीढ़ी में शायद एक बार ही मिलता है। वैश्विक व्यवस्था बदल रही है और भारत के पास मौका है। वह किसी खेमे में नहीं है, सब उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं और इस संकट के बीच तथा इसके खात्मे के बाद उसके सामने तमाम नये अवसर आएंगे। रूस कमजोर है, चीन शांत है, पश्चिम एकजुट है और पाकिस्तान में उथलपुथल मची हुई है।
ये एकदम अनुकूल रणनीतिक हालात हैं और भारत के लिए आर्थिक, सामरिक और सैन्य मोर्चों पर अकल्पनीय अवसर पैदा करते हैं। भारत को इस ऐतिहासिक अवसर का लाभ उठाना चाहिए। यह भी संभव है कि अतीत के कुछ मौकों की तरह इस बार भी अवसर गंवा दिया जाए।
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