सेबी के नियमों से बढ़ रही उलझन | देवाशिष बसु / May 28, 2022 | | | | |
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने बाजार में मध्यस्थों के नियमन के लिए दर्जनों परिपत्र एवं दिशानिर्देश जारी किए हैं। शेयर ब्रोकर, पोर्टफोलियो मैनेजर, निवेश सलाहकार (आईए) एवं शोध विश्लेषक (आरए) आदि बाजार में मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं। खुदरा निवेशक इन्हीं के माध्यम और सलाह से बाजार में निवेश करते हैं। मगर पूरा ध्यान अनुपालन, खुलासा एवं रिपोर्टिंग पर ही केंद्रित रहने से ये दिशानिर्देश ग्राहकों के वास्तविक हितों की रक्षा नहीं कर पाते हैं। मैं केवल एक विषय पर ध्यान केंद्रित करता हूं और वह है कि निवेशकों को कौन खरीदारी या बिक्री की सलाह दे सकता है?
सेबी का नियामकीय ढांचा कुछ इस तरह का है कि इसमें गतिविधियों के आधार पर नियामकीय इकाइयों की अलग श्रेणियां परिभाषित करने का उपयुक्त प्रयास किया गया है। उदाहरण के लिए केवल म्युचुअल फंड और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेस (पीएमएस) रकम लेकर ग्राहक की तरफ से निवेश कर सकते हैं। इसी तरह पिछले कई दशकों से केवल शेयर ब्रोकर निवेशकों को शेयर खरीदने या बेचने की सलाह दे रहे हैं। सेबी ने 2013 में पहली बार निवेश सलाहकार के नाम से एक विनियमित इकाइयों के एक समूह की स्थापना की। इसके बाद 2014 में आरए का गठन किया गया। ये तीनों ही शेयरों की खरीदारी या बिकवाली की सलाह दे सकते हैं। खुदरा निवेशकों को शेयरों की खरीदारी या बिकवाली में सलाह की अधिक जरूरत होती है।
अफसोस कि यह स्पष्ट नहीं है कि इन तीनों इकाइयों को एक ही तरह के कार्य करने की अनुमति क्यों दी गई है। निवेशकों के दृष्टिकोण से यह भी स्पष्ट नहीं है कि कौन सी ऐसी बातें हैं जो इन्हें एक दूसरे से अलग करती हैं और सलाहकार स्वयं भी असमंजस में रहते हैं। आईए और आरए से संबंधित दिशानिर्देश आने के लगभग नौ वर्ष बाद भी ज्यादातर निवेशक एवं सलाहकार इस बात से अवगत नहीं है कि आरए खास प्रतिभूतियों पर बिकवाली/खरीदारी का सुझाव तो दे सकते हैं मगर प्रतिभूतियों का एक मॉडल पोर्टफोलियो तैयार नहीं कर सकते। आरए नियमों के तहत मॉडल
पोर्टफोलियो के जरिये सलाह देने पर स्पष्ट रूप से कभी रोक नहीं लगाई गई। इस वजह से 'मॉडल पोर्टफोलियो' की पेशकश करने वाले आरए की बाढ़ आ गई।
निवेशक समुदाय को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब 6 मई को सेबी ने एक आरए इकाई के साथ निपटान आदेश प्रकाशित किया। इस आरए इकाई को मॉडल पोर्टफोलियो की पेशकश करने के लिए फटकार लगाई गई थी और बाद में उसे ऐसा करने से रोक दिया गया। सेबी के कानूनी विभाग के प्रमुख और पूर्व कार्यकारी निदेशक ने ट्विटर पर एक के बाद एक कई पोस्ट में लिखा कि सेबी का आदेश गलत था। सेबी में भी इस बात को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है कि आरए मॉडल पोर्टफोलियो की पेशकश कर सकते हैं या नहीं। जिस विश्लेषक पर प्रतिबंध लगाया गया था उसने कहा कि खर्चीले एवं लंबे मुकदमे के झंझट से बचने के लिए उन्होंने भुगतान किया। वह अगर ऐसा नहीं करता तो इससे उसके कारोबार को कहीं अधिक नुकसान पहुंचता है।
अब शेयर ब्रोकरों को निवेश सलाहकार मानकर उनकी भूमिका पर विचार करते हैं। वर्ष 2016 से सेबी ने शेयर ब्रोकरों को अनधिकृत लेनदेन करने से रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं। हालांकि इसके बाद भी ऐसे कई मामले आए हैं जिनमें ब्रोकरों की वजह से निवेशकों को खासा नुकसान होता है। कई मामले तो तकनीकी अनुपालन में त्रुटियों का नतीजा होते हैं। कई बड़ी सूचीबद्ध ब्रोकिंग कंपनियां अपने अनुचित कारोबारी व्यवहार के लिए निशाने पर आई हैं। हालांकि इनकी करतूत निवेशकों से इसलिए छुपी हैं क्योंकि मध्यस्थता एवं शिकायत निवारण प्रक्रिया के बाद आए आदेश को 'गोपनीय' रखा गया है। बड़े आरए और आईए भी ऐसे गंभीर अपराध नहीं कर सकते क्योंकि बोकरों की तरह ग्राहकों के खाते तक उनकी पहुंच नहीं होती है। ब्रोकिंग कंपनियों के कर्मचारी डेरिवेटिव विशेषज्ञ बनकर जोखिम वाले कई कारोबार करते हैं और वरिष्ठ नागरिक या तकनीक की कम समझ रखने वाले लोग ग्राहक उनके झांसे में आ जाते हैं।
एक मामले में तो एक वरिष्ठ नागरिक निवेशक ने दो महीने में ही 1.32 करोड़ रुपये के डेरिवेटिव कारोबार कर डाले मगर उनके खाते में कमाई के रूप में महज 255 रुपये आए और इतनी कम रकम मिलने की कोई वजह भी नहीं बताई गई। इस निवेशक ने इससे पहले कभी एक साल में 5 लाख रुपये से अधिक कारोबार नहीं किया था। इस मामले में ब्रोकर ने ई-मेल, एसएमएस और मार्जिन एवं लेजर स्टेटमेंट्स सहित सभी तकनीकी बातों का अनुपालन किया। वरिष्ठ निवेशक को ब्रोकर की तरफ से ऐसे लेनदेन के लिए तैयार कर लिया गया जो वह ठीक से समझ भी नहीं पाए थे।
एक दूसरे मामले में एक ब्रोकर ने एक व्यक्ति को प्रति महीने एक निश्चित कमाई करने का मौखिक आश्वासन दिया। उसने निवेशक से कहा कि इसके लिए निफ्टी पर कॉल एवं पुट ऑप्शन बेचने की कवायद करनी होगी। उस निवेशक ने करीब 1.25 करोड़ रुपये का निवेश पोर्टफोलियो उस ब्रोकर के हवाले कर दिया। पोर्टफोलियो में हिंदुस्तान यूनिलीवर, एशियन पेंट्स, पिडिलाइट और डाबर जैसे महंगे शेयर थे। इस रणनीति से शुरू में फायदा जरूर हुआ मगर उसके बाद जब बाजार फिसला तो भारी नुकसान हुआ। ब्रोकर ने नुकसान की भरपाई करने के लिए इस सेवानिवृत्त निवेशक की जीवन भर की कमाई से खरीदे गए महंगे शेयर बेच दिए।
ऐसे कई मामले सामने आए हैं मगर अफसोस की बात है कि ब्रोकरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है। बड़ा प्रश्न है कि क्या किया जा सकता है? अब हम मूल सिद्धांतों की ओर लौटते हैं। निवेशक आम तौर पर खरीद-बिक्री की सलाह की खोज में रहते हैं। ब्रोकर, आरए और आईए में सलाह देने की सबसे अच्छी स्थिति में कौन है? सेबी की स्थापना होने तक बाजार में मध्यस्थ के रूप में केवल शेयर ब्रोकर ही थे और वे कई कार्य किया करते थे। इसके बाद अलग-अलग बाजारों और मध्यस्थों की गतिविधियों के लिए अलग-अलग दिशानिर्देश आए। बैंक, डिपॉजिटरीज और संरक्षक (कस्टोडियन) लेनदेन हुईं परिसंपत्तियों को देखते हैं और पोर्टफोलियो प्रबंधक और म्युचुअल फंड निवेश प्रबंधन करते हैं। उनकी भूमिकाओं के बीच में स्पष्ट विभाजन है मगर खुदरा निवेशकों को सलाह देने के कारोबार पर दोबारा विचार करने की जरूरत है।
यह बात अपनी जगह है कि पिछले 28 वर्षों के दौरान शेयर ब्रोकिंग कारोबार के लिए कायदे-कानून काफी कड़े हो गए हैं मगर गलत सलाह, भरोसे का अभाव, अक्षमता और फर्जीवाड़े की बात आए दिन देखने को मिलती रहती है। शेयर ब्रोकरों को निवेशकों की तरफ से केवल लेनदेन का क्रियान्वयन करना चाहिए मगर इस गतिविधि पर उन्होंने अपना पूरा दबदबा बनाया लिया है। उन्हें निवेशकों को सलाह देने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि सेबी ने इसके लिए दो मध्यस्थों के प्रावधान किए हैं। इस कदम से सलाहकारों की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी। हालांकि इसके बाद भी यह उलझन दूर नहीं होती है कि खरीदारी या बिकवाली की सलाह के लिहाज से आरए और आईए की भूमिका में अंतर कैसे करें। इसका भी समाधान एक सरल सिद्धांत से पाया जा सकता है। मॉडल पोर्टफोलियो सहित खरीदारी या बिकवाली की सलाह आरए के अधिकार क्षेत्र में आनी चाहिए जबकि व्यापक वित्तीय नियोजन एवं परिसंपत्ति आवंटन की जिम्मेदारी आईए के पास रहनी चाहिए।
(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक हैं )
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