अप्रैल में बाउंस दर फिर नरम | सुब्रत पांडा / मुंबई May 27, 2022 | | | | |
कोविड की तीसरी लहर का असर दरकिनार होने के बाद मार्च में बाउंस दरों में मामूली बढ़ोतरी हुई, वहीं अप्रैल में इसमें एक बार फिर कमी आई है। यह महंगाई के दबाव के बावजूद कोविड के पहले के औसत के बहुत नीचे बना हुआ है।
नैशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (एननएसीएच) के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में मूल्य के आधार पर बाउंस दर 22.5 प्रतिशत रही है, जो मार्च से 30 आधार अंक कम है और यह जून 2019 के बाद सबसे कम है। मात्रा के आधार पर देखें तो अप्रैल में बाउंस दर 29.87 प्रतिशत है। यह मार्च की तुलना में 20 आधार अंक कम है। मात्रा व मूल्य दोनों आधारों पर बाउंस दरें कोविड के पहले के औसत क्रमश: 24.5 से 25 प्रतिशत औऱ 30.5 से 31.5 प्रतिशत की तुलना में कम है।
मैक्वैरी कैपिटल के एसोसिएट डायरेक्टर सुरेश गणपति ने कहा, 'मूल्य के हिसाब से बाउंस दर 22.5 प्रतिशत रही है, जो जून, 2019 के बाद से सबसे कम है। इससे साफ तौर पर खुदरा संपत्ति गुणवत्ता के मोर्चे पर बेहतर वसूली के संकेत मिलते हैं। हम बैंकों की संपत्ति गुणवत्ता को लेकर आशावादी हैं, भले ही दरें बढ़ रही हैं, बैंकों के एनपीएल और क्रेडिट लागत में गिरावट आ सकती है।'
इक्रा में उपाध्यक्ष और फाइनैंशियल सेक्टर रेटिंग्स के सेक्टर हेड अनिल गुप्ता ने कहा, 'महंगाई का दबाव है, जिसकी वजह से ग्राहकों की खर्च करने वाली आमदनी प्रभावित हो सकती है और इसका असर बाउंस दर पर पड़ सकता है। बहरहाल यह इस अवधि के दौरान स्थिर बना रहा। रिजर्व बैंक द्वारा दरों में की गई बढ़ोतरी संभवत: बाउंस दरों पर तत्काल कोई असर नहीं डालेगा, लेकिन लगातार दरों में बढ़ोतरी से आगे चलकर समस्या हो सकती है।'
बाउंस दर की मात्रा हमेशा ही मूल्य से कम होती है, क्योंकि कम आकार के कर्ज में सामान्य रूप से बाउंस दर ज्यादा होती है। हर तिमाही के आखिर में आम तौर पर ऑटो डेबिट भुगतान ज्यादा होते हैं और शायद इसीलिए हम बाउंस दरों में मामूली बढ़ोतरी देखते हैं। एनएसीएच के माध्यम से होने वाले असफल ऑटो डेबिट भुगतान को बाउंस दर कहा जाता है।
एनएसीएच बल्क भुगतान व्यवस्था है, जिसका संचालन नैशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन आफ इंडिया (एनपीसीआई) करता है, जो एक से लेकर कई भुगतान की सुविधा मुहैया कराता है। इसमें लाभांश भुगतान, ब्याज, वेतन और पेंशन का भुगतान शामिल है। इसमें बिजली, गैस, टेलीफोन, पानी, कर्ज की किस्तों का भुगतान, म्युचुअल फंडों में निवेश और बीमा प्रीमियम का भुगतान आदि शामिल होता है।
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