बाजार अभी सीमित दायरे में रहेंगे | चिराग मडिया / May 25, 2022 | | | | |
बीएस बातचीत
निप्पॉन इंडिया म्युचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी (इक्विटी निवेश) मनीष गुनवानी ने चिराग मडिया के साथ बातचीत में कहा कि केंद्रीय बैंकों द्वारा सख्त मौद्रिक नीति की वजह से बाजार में भारी गिरावट और व्यापक उतार-चढ़ाव के बाद मूल्यांकन में बदलाव आया है। उन्होंने भारत के लिए पूंजी आवंटन के संदर्भ में विदेशी निवेशकों की मुख्य चिंताओं के बारे में भी विस्तार से बातचीत की। मुख्य अंश:
आपके अनुसार, मौजूदा समय में उतार-चढ़ाव की मुख्य वजह क्या हैं?
पिछले दशक में ज्यादातर समय में, बाजारों को कम ब्याज दरों का लाभ मिला। ये दरें मुद्रास्फीति में नरमी पर निर्भर थीं। पिछले वर्ष में मुद्रास्फीति कई लोगों के अनुमानों से ज्यादा बढ़ी और प्रमुख केंद्रीय बैंकों को सख्त मौद्रिक नीति की दिशा में आगे बढऩे को बाध्य होना पड़ा।
क्या गिरावट के बाद बाजार में मूल्यांकन अब आकर्षक हो गए हैं?
ताजा गिरावट से बाजार मूल्यांकन में सुधार आया है, लेकिन कुल मिलाकर हमारा मानना है कि निवेशकों को अगले एक से दो साल के दौरान ऊंचे उतार-चढ़ाव के बीच मजबूत प्रतिफल की उम्मीद रख्सने की जरूरत होगी। वैश्विक तौर पर, मुद्रास्फीति मुख्य चुनौती बनी हुई है जिसकी वजह से मौद्रिक नीति को सख्त बनाने की जरूरत बढ़ी है। पिछले दो साल के दौरान मजबूत प्रतिफल को देखते हुए यह संभावना है कि बाजार कुछ समय तक सीमित दायरे में रह सकता है।
बाजार के लिए सबसे बड़ी समस्याएं क्या हैं?
वैश्विक तौर पर सबसे बड़ी समस्या पिछले कुछ वर्षों में कम निवेश की वजह से पैदा हुई ऊंची मुद्रास्फीति, भूराजनीतिक स्थिति और आपूर्ति संबंधित अवरोध हैं। इससे मौद्रिक नीति में तेज सख्ती को बढ़ावा मिला रहा है। अमेरिकी डॉलर की मजबूती का सख्त तरलता में योगदान बढ़ा है। घरेलू संदर्भ में हमें एफएमसीजी और दोपहिया जैसे व्यापक खपत आधारित
सेगमेंटों में तेजी दर्ज करने की जरूरत है। भारत के लिए, ऊर्जा कीमतों में भारी वृद्घि से भी बड़ी चुनौती पैदा हुई है।
जनवरी-मार्च तिमाही के आय सीजन से मुख्य सबक क्या हैं?
उम्मीद के अनुरूप, ऊंची जिंस कीमतों का उपभोक्ता वस्तु, दवा और वाजन जैसे सेगमेंटों की कंपनियों के मार्जिन पर दबाव पड़ा है। बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता में लगातार सुधार आया है जिससे उनके मजबूत मुनाफे को बढ़ावा मिला है। कुल मिलाकर, पिछली कुछ तिमाहियों में अच्छी आय के आंकड़े दर्ज किए गए थे, लेकिन अब इनमें कुछ हद तक नरमी आई है।
विदेशी पूंजी प्रवाह पर आपका क्या नजरिया है? क्या आप मानते हैं कि घरेलू कंपनियां वैश्विक फंडों से निकासी की लगातार भरपाई कर सकती हैं?
विदेशी निवेशकों को मौजूदा समय में भारत में पूंजी आवंटन के संदर्भ में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उभरते बाजारों में जिंस निर्यातक देशों के बुनियादी आधार में जिंस कीमतों में तेजी की वजह से सुधार आया है। इससे भारत के प्रति उनकी पसंद प्रभावित हो रही है। वहीं सख्त मौद्रिक नीति और मजबूत डॉलर से भी वैश्विक तौर पर तरलता घट रही है। एशियाई मुद्राओं में, भारतीय रुपये ने अच्छा प्रदर्शन किया है जिससे विदेशी निवेशक सतर्क हो गए हैं। साथ ही चीन के बाजार ने काफी हद तक कमजोर प्रदर्श किया है और इससे ईएम सूचकांकों का भारांक बढ़ा है।
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