यूक्रेन पर आक्रमण के अप्रत्याशित और अवांछनीय नुकसान | नीति नियम | | मिहिर शर्मा / May 25, 2022 | | | | |
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने महामारी से उबरने के वैश्विक रुझान को ही पलट दिया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक सहित कई संगठनों ने आने वाले वर्ष में वैश्विक उत्पादन वृद्धि के अनुमानों को लगभग एक प्रतिशत अंक तक कम कर दिया है। आईएमएफ ने चेतावनी दी है कि अगर वित्तीय बाजार में उथल-पुथल बनी रहती है और ऊर्जा उत्पादों की कीमतें उच्च स्तर पर बनी रहती हैं तब आगे दो प्रतिशत अंकों की गिरावट हो सकती है।
चीन में कोविड-19 के फिर से उभार की वजह से बने डर और लॉकडाउन की आशंका से इसका प्रभाव और तेज हो सकता है। अगर देश में सबकुछ फिर से खुल भी जाता है लेकिन जब तक यह अपनी 'शून्य कोविड' नीति नहीं छोड़ता है तब तक आगे संक्रमण के किसी भी तरह के प्रसार की स्थिति में लॉकडाउन जैसी सख्ती अपनाए जाने की आशंका बनी रह सकती है।
रूस के आक्रमण और इसकी वजह से उस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति शृंखला और व्यापक अर्थव्यवस्था से जुड़ी अस्थिरता की स्थिति का प्रभाव सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं में समान नहीं है। उभरते देशों की अर्थव्यवस्था की स्थिति स्पष्ट रूप से इन प्रभावों के संदर्भ में कमजोर नजर आती है।
यह बात ऊर्जा और खाद्य उत्पादों के आयातकों के लिए विशेष रूप से सच है। रूस, ऊर्जा, उर्वरक और धातुओं की आपूर्ति के लिहाज से एक प्रमुख खिलाड़ी है और रूस तथा यूक्रेन दोनों ही खाद्यान्न और खाद्य तेल सहित खाद्य पदार्थों के प्रमुख निर्यातक देश हैं। उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर महंगाई में सामान्य वृद्धि से लेकर डॉलर के बढ़ते सापेक्ष मूल्य और पूंजी निकासी का का खतरा मंडराता रहता है। भारत इस सामान्य नियम का अपवाद नहीं है। इस तरह के युद्ध वास्तव में अनिश्चितता से भरी सुधार की प्रक्रिया के लिए अप्रत्याशित और अवांछनीय नुकसान को ही दर्शाते हैं। हालांकि युद्ध के नकारात्मक असर को कम करने के तरीकों के साथ कुछ लोग इसमें उम्मीदें भी देख रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, शुरुआती दिनों में ऐसी उम्मीदें थीं कि वैश्विक खाद्यान्न की कीमतों में बढ़ोतरी से भारत को भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में संग्रह किए गए अनाज के कुछ हिस्से निकालने में मदद मिल सकती है। प्रधानमंत्री ने भी इसका इस्तेमाल 'दुनिया के पोषण' के लिए करने का वादा किया था। हालांकि उस आश्वासन के कुछ ही समय बाद सरकार ने अचानक गेहूं निर्यात बंद करने का फैसला कर लिया।
भारत के लिए अन्य संभावित सकारात्मक लाभ की संभावनाओं में रियायती दरों पर रूसी तेल तक पहुंच बनाना था। दरअसल यूराल क्षेत्र का कच्चा तेल 30 डॉलर या उससे अधिक की प्रति बैरल छूट पर उपलब्ध हो सकता है। ब्रेंट क्रूड इन दिनों 110 डॉलर प्रति बैरल की दर से ऊपर व्यापार कर सकता है और इसका मतलब यह है कि प्रतिबंधों के बाद भी यूराल क्रूड अब भी 70 और 85 डॉलर प्रति बैरल की रियायती दर पर उपलब्ध हो सकता है जो दर 2021 में अधिकांश अवधि तक बनी रही। हालांकि रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की वजह से इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बनी 'लाभ' की स्थिति के रूप में देखना मुश्किल है क्योंकि भारत के लिए रूस से तेल पाने की राह में कई लॉजिस्टिक कठिनाइयां हैं जो अब समुद्री क्षेत्र के लिए बीमा की अनुपलब्धता और प्रतिबंधों के खतरे के कारण टैंकरों की उपलब्धता न होने से कई गुना काफी बढ़ गई हैं।
भारत अब डिलिवरी के समय 70 डॉलर प्रति बैरल से कम की कीमतों के लिए मोल-तोल कर रहा है ताकि लॉजिस्टिक्स पर इस दबाव के प्रभाव को कम करने की कोशिश की जा सके। भारत के 10-15 प्रतिशत के आयात मिश्रण में रूस के तेल की एक सीमा तय होगी और युद्ध की वजह से ऊर्जा आयात की लागत पर पडऩे वाले प्रभाव में बहुत कुछ बदलने की संभावना नहीं है, विशेष रूप से अगर इस बात पर गौर किया जाए कि समय के साथ पाइप वाले रूसी गैस के बजाय वैश्विक एलएनजी बाजार की तरफ स्थानांतरण करने के यूरोप के फैसले का प्रभाव अभी तक भारत की प्राकृतिक गैस लागत पर नहीं दिखा है।
रिलायंस जैसी भारतीय रिफाइनरी कंपनी के मार्जिन में वृद्धि हो सकती है अगर वे रूस के दबाव में चल रहे कच्चे तेल के भंडार को खरीद कर अधिक वैश्विक मूल्य पर रिफाइंड उत्पाद बेचने में सक्षम हो जाएं। इसकी वजह यह भी है कि अप्रैल में डीजल और पेट्रोल का निर्यात क्रमश: तीन और पांच साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था।
आम भारतीयों पर असर स्पष्ट है। जनवरी 2022 में, रूस के आक्रमण से पहले पूरे महीने में खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति पहले से ही पांच प्रतिशत से अधिक थी। अप्रैल तक यह 8.4 प्रतिशत थी। खाद्य कीमतों पर ऊपरी दबाव न केवल वैश्विक खाद्य बाजारों की वजह से बल्कि रूस और बेलारूस से पोटाश की अनुपलब्धता के कारण घरेलू लागत में संभावित वृद्धि की वजह से भी हो सकता है। हालांकि केंद्रीय उर्वरक मंत्रालय को इस बात का भरोसा है कि इसने खरीफ सीजन के लिए आवश्यक सभी आयात पर समझौता कर लिया है और मंत्रिमंडल ने किसानों को बढ़ी हुई कीमतों के दबाव से सुरक्षित रखने के लिए वर्ष में उर्वरक सब्सिडी खर्च में 40,000 करोड़ रुपये की वृद्धि की है। सरकार का कहना है कि डायमोनियम फॉस्फेट पर यूनिट सब्सिडी 2020-21 के बाद से पांच गुना बढ़ गई है। आयातित यूरिया किसानों को 95 प्रतिशत की भारी छूट के साथ बेचा जाता है, और यूरिया पर खर्च, प्राकृतिक गैस के हाजिर मूल्य के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। अगर सरकार पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने में गलत साबित होती तब वादे की परवाह किए बिना कीमतें बढ़ जाएंगी। पिछले साल की दूसरी छमाही में ऐसा ही हुआ था।
यदि सरकार सही भी है तो सबसे बेहतर स्थिति में भी इसे उर्वरक सब्सिडी के तौर पर एक बड़ी राशि का भुगतान करना होगा। भारत कई अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बेहतर स्थिति में जरूर है लेकिन इसे भी युद्ध के कारण महंगाई को लक्षित करने और वृद्धि में सुधार के बीच संतुलन बनाने में मुश्किल आएगी।
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