टोक्यो से संदेश | संपादकीय / May 25, 2022 | | | | |
क्वाड समूह के नेताओं के 3,000 से भी अधिक शब्दों वाले संयुक्त वक्तव्य में चीन का सीधा जिक्र नहीं किया गया लेकिन उस दस्तावेज को गौर से पढऩे पर और बैठक के दौरान घटी घटनाओं से यही संकेत मिलता है कि भले ही समूह के दायरे का विस्तार करने की बात कही गई हो लेकिन उसके सुरों में और सख्ती आई है। यह बात टोक्यो में क्वाड के संकल्प और इससे संबद्ध अन्य घटनाक्रम में महसूस की गई। इसका तात्कालिक असर उस संयुक्त वक्तव्य में उल्लिखित उस प्रतिबद्धता के रूप में सामने आया जिसमें कहा गया कि क्वाड के साझेदार अगले पांच वर्षों के दौरान हिंद प्रशांत क्षेत्र में 50 अरब डॉलर से अधिक राशि की बुनियादी सहायता प्रदान करेंगे तथा निवेश करेंगे। यह चीन की विशालकाय बेल्ट और रोड पहल (बीआरआई) को सीधी चुनौती है। इस घोषणा के समय को भी उचित माना जा सकता है क्योंकि हाल में चीन के बीआरआई के क्रियान्वयन के तौर तरीकों को लेकर गंभीर सवाल उत्पन्न हुए हैं। समूह ने कर्ज के मसलों को हल करने की भी प्रतिबद्धता जताई है। गौरतलब है कि दुनिया के कई देशों में कर्ज की समस्या ने गंभीर रूप धारण कर लिया है।
सोमवार की एक अन्य घोषणा भी सही समय पर आई। यह थी क्वाड से इतर 13 देशों के हिंद प्रशांत आर्थिक मंच (आईपीईएफ) के गठन की घोषणा। यह आर्थिक साझेदारी सुरक्षा पर केंद्रित क्वाड समूह से परे होगी और आईपीईएफ को एक चतुराई भरा कूटनीतिक कदम माना जा सकता है जिसमें छोटे एशियाई देशों की भी भागीदारी होगी। ये वे देश हैं जिनके मन में चीन की क्षेत्रीय विस्तारवाद की प्रवृत्ति को लेकर आशंकाएं हैं। यह सही है कि अभी आईपीईएफ का एजेंडा पूरी तरह सामने आना शेष है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक मानक और प्रक्रिया तय करने वाल गठबंधन होगा, न कि कारोबार आधारित गठबंधन। चीन ने इस संदेश को अच्छी तरह ग्रहण किया है और इसे 'आर्थिक नाटो' करार दिया है। संयुक्त वक्तव्य में एक विशिष्ट संदर्भ 'समुद्री नियम आधारित व्यवस्था जिसमें पूर्वी और दक्षिण चीन सागर शामिल हैं', का भी दिया गया। अगर इस वक्तव्य को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की घोषणा के साथ पढ़ा जाए तो यह चीन के खिलाफ काफी प्रभावशाली नजर आता है। बाइडन ने कहा था कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिकी सेना उसकी रक्षा करेगी। भारत के लिए टोक्यो से मिलेजुले नतीजे निकले। यह सही है कि क्वाड के सदस्य देशों ने एक तरह से इस बात को स्वीकार किया है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को लेकर भारत की स्थिति कुछ खास ढंग से बाधित है लेकिन कई अन्य बिंदु ऐसे हैं जो व्यापक नीतिगत प्रस्थान को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए वर्तमान डेटा लोकेशन संबंधी विवाद क्वाड की सामूहिक साइबर सुरक्षा की प्रतिबद्धता के उलट हैं और कोयले पर भारत की बढ़ती निर्भरता भी समूह की जलवायु परिवर्तन से निपटने और उत्सर्जन कम करने की योजना के साथ मेल नहीं खाती।
जापान में प्रधानमंत्री एक व्यस्त कार्यक्रम में जापानी कारोबारियों और निवेश समुदाय से मिले। यह एक अवसर था जहां सरकार ने अपने भारी भरकम बुनियादी और परिसंपत्ति मुद्रीकरण कार्यक्रम को सामने रखा। जापान के सहयोग से चल रही बुलेट ट्रेन जैसी परियोजनाओं की प्रगति के आकलन के लिए भी यह उपयुक्त अवसर रहा। भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) जैसे विशिष्ट व्यापार समझौतों से बाहर है, ऐसे में आईपीईएफ को लेकर उसकी प्रतिबद्धता तर्क का विषय हो सकती है। यह सही है कि आईपीईएफ शायद मानक, व्यापार सुविधा और अन्य बेहतर व्यापार व्यवहार आदि पर केंद्रित रहे लेकिन आरसेप के कई सदस्य देशों ने भी आईपीईएफ पर हस्ताक्षर किए हैं जिससे संकेत मिलता है कि भारत शायद दुनिया के सर्वाधिक जीवंत व्यापारिक नेटवर्क में से एक में स्वयं को ज्यादा अलग-थलग पाए।
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