जीएसटी मामले में सख्त होंगे राज्य! | शाइन जैकब, ईशिता आयान दत्त और विनय उमरजी / चेन्नई/कोलकाता/अहमदाबाद May 20, 2022 | | | | |
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की सिफारिशें केंद्र व राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं होगीं, जिससे राज्यों की असहमति के स्वर तेज हो सकते हैं। साथ ही इससे परिषद के भीतर आम राय बनाने पर ज्यादा जोर देने की जरूरत पड़ेगी।
शीर्ष न्यायालय ने अपने आदेश में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ सुर मिलाया है, जो हाल के दिनों में परिषद में मामलों को प्रबंधित करने के तरीके को लेकर मुखर रूप से आलोचना कर रहे थे।
तमिलनाडु के वित्त मंत्री पीटीआर पलानीवेल त्यागराजन ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि उन्होंने इसी तरह की टिप्पणी की थी, जब वह एक साल पहले परिषद में शामिल हुए थे। उस समय उन्होंने इसे रबर स्टांप प्राधिकारी कहा था।
तमिलनाडु के वित्त मंत्री ने कहा, 'हम संवैधानिक और ऐतिहासिक विषमता की ओर हैं। एक जीएसटी प्रणाली और एक परिषद है, जो सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी बहुमत के साथ काम करती है, जिसकी भारत के संविधान में कल्पना नहीं की गई है। यह ढांचागत डिजाइन और तकनीकी प्लेटफॉर्म तक सीमित है, जो अहम कार्य से पर्याप्त दूर है।'
उन्होंने कहा, 'यह विषमता उस समय खतरनाक हो जाती है जब वास्तविक परिषद कुछ मामलों में औपचारिक मुहर, रबर स्टांप प्राधिकारी बन जाती है और वास्तविक अधिकार एडहॉक एजेंसियों जैसे टीआरयू (टैक्स रिसर्च यूनिट), सीबीआईसी, जीएसटी सचिवालय और अर्ध सरकारी जीएसटी नेटवर्क के पास चला जाता है।'
इसके पहले जीएसटी परिषद में आम सहमति न बन पाने पर पश्चिम बंगाल ने लगातार परिषद के भीतर व बाहर सवाल उठाए थे। गुरुवार के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रधान सलाहकार और राज्य के पूर्व वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा, 'फैसले की भावना सहयोगी और संघीय ढांचे के मुताबिक है, हालांकि मुझे फैसला पढऩा बाकी है।'
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ साल से जीएसटी परिषद में सहयोग की भावना कमजोर हुई है और केंद्र सरकार द्वारा बहुसंख्यवादी तरीका अपनाया गया है।
राज्य के वित्तमंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति के चेयरमैन रहे मित्रा ने कहा कि शुरुआती वर्षों में कई ऐसे मौके आए, जब परिषद में तीव्र मतभेद था।
मित्रा ने कहा कि राज्यों व केंद्र के बीच समझौते के मामले में मतभेद रहा है, जिसमें आम सहमति और संघवाद का उल्लंघन होता है और ऐसा लगता है कि फैसले में इसका शमन किया गया है। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के अलावा गुजरात के वित्त के प्रधान सचिव ने यह मसला उठाया कि जीएसटी कानून परिषद की सिफारिशों के मुताबिक नहीं बनाए गए हैं।
वित्त मामलों के प्रधान सचिव जेपी गुप्ता ने कहा, 'फैसले को इसके पूरे संदर्भ में देखना और पढऩा होगा।' बहरहाल उन्होंने कहा कि जीएसटी परिषद साफतौर पर संवैधानिक निकाय है और जीएसटी कानून में कोई भी बदलाव उसकी सिफारिशों के मुताबिक नहीं किया गया है।
ईवाई में पार्टनर विविन सप्रा ने कहा कि यह कुछ ऐसा मसला है, जिसके बारे में जीएसटी परिषद के गठन के समय सबको पता था। उन्होंने कहा, 'अनुच्छेद 246 ए में राज्य व केंद्र को वस्तुओं व सेवाओं पर कर लगाने का अधिकार दिया गया है। उसके बाद अनुच्छेद 279 ए है, जिससे जीएसटी परिषद को अधिकार मिला हुआ है। जीएसटी परिषद में राज्यों का अधिकार कमतर नहीं है।'
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