उपभोक्ताओं की अपेक्षाओं की सार्थकता कितनी अहम | श्रम-रोजगार | | महेश व्यास / May 20, 2022 | | | | |
वित्तीय बाजार अपेक्षाओं को बहुत अहमियत देते हैं। कंपनी प्रबंधन मार्गदर्शन देते हैं और इसके बदले में बाजार उनके मुनाफे को लेकर उम्मीदें बनाते हैं। पेशेवर अर्थशास्त्री आमतौर पर विकास, मुद्रास्फीति और अर्थव्यवस्था की सेहत से जुड़े समान संकेतकों से जुड़ी अपेक्षाएं तैयार करने के लिए व्यापक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों के साथ समान रूप से जूझते हैं।
निर्णय लेने में उम्मीदें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उदाहरण के लिए उद्योग और वित्तीय बाजार पूंजी का आवंटन करते हैं जो उनकी अपेक्षाओं को दर्शाते हैं। उपभोक्ताओं को भी अर्थव्यवस्था के बारे में उम्मीदें होती हैं। ये उनकी निर्णय लेने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाते हैं। उपभोक्ता जटिल गणितीय मॉडल नहीं तैयार करते हैं या सरकार और निजी एजेंसियां द्वारा प्रसारित कारोबारी और आर्थिक खबरों पर उतना गौर नहीं करते हैं लेकिन फिर भी वे अर्थव्यवस्था के बारे में उम्मीदें बनाते हैं।
अमूमन उपभोक्ता अपने लिए नौकरी पाने या आमदनी के स्रोत को बनाए रखने की संभावनाओं को लेकर एक दृष्टिकोण बनाते हैं और इसीलिए यह उनकी भविष्य की संभावित आय से भी जुड़ा हुआ है। वे आर्थिक और व्यावसायिक गतिविधियों पर अपना एक नजरिया रखते हुए अर्थव्यवस्था की स्थिति पर एक दृष्टिकोण बनाते हैं। उपभोक्ताओं की अपेक्षाएं अक्सर उन लोगों के अनुभव पर आधारित होती हैं जो समान तरह की आर्थिक स्थितियों, समान खतरों और अवसरों का सामना करते हैं।
वे पर्यावरण की निगरानी से भी जानकारी हासिल करते हैं। कभी-कभी, इस तरह के तंत्र से मिलने वाले संकेत बड़े समूहों में अपेक्षाओं में एक साथ परिवर्तन के लिए समन्वय बनाते हैं। यह तब होता है जब वे व्यापक-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करना शुरू करते हैं। खर्च करने, बचत करने या ऋ ण लेने से जुड़े पारिवारिक फैसले महंगाई, ब्याज दरों और वेतन से जुड़ी उनकी उम्मीदों पर निर्भर करता है।
हाल के दिनों में भारत में महंगाई और ब्याज दरें बढ़ रही हैं और वास्तविक वेतन में कमी आ रही है। ये संकेतक अप्रैल 2022 में विशेष रूप से प्रतिकूल हो गए थे। महंगाई दर बढ़कर 7.8 फीसदी हो गई। यह पिछले आठ वर्षों में भारत में दर्ज की गई सबसे अधिक महंगाई दर है। यह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 6 प्रतिशत की तय उच्चतम सीमा से भी काफी ऊपर है। उपभोक्ताओं की महंगाई की उम्मीदें बढ़ गई हैं।
आरबीआई के सर्वेक्षणों के अनुसार, जुलाई 2021 से जनवरी 2022 के दौरान सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले लगभग 63 प्रतिशत लोगों का मानना था कि महंगाई मौजूदा स्तर की तुलना में अगले तीन महीनों में अधिक होगी और लगभग 68 प्रतिशत लोगों का मानना था कि यह अगले 12 महीनों में और अधिक होगा। हाल के वर्षों में महंगाई से जुड़ी अपेक्षाएं लगातार खराब हो रही हैं। ऊपर दिए गए अनुपात 2013 के बाद से सबसे अधिक हैं।
ब्याज दरें भी बढऩे लगी हैं। आरबीआई द्वारा 4 मई को घोषित रीपो दर में अचानक वृद्धि से पहले ही इसमें अच्छी बढ़ोतरी शुरू हो गई थी। 18 अप्रैल को, भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी फंडों की सीमांत लागत पर आधारित उधारी दरों (एमसीएलआर) में 10 आधार अंकों की वृद्धि की। इससे आवास ऋण, वाहन ऋण और कॉरपोरेट ऋण प्रभावित होता है। बैंक के लगभग 50 प्रतिशत ऋ ण, एमसीएलआर से जुड़े हुए हैं।
ऐक्सिस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी अप्रैल में अपनी एमसीएलआर दरें बढ़ाईं। अब आरबीआई की रीपो दर में वृद्धि के साथ, विभिन्न क्षेत्रों में कर्ज लेने की लागत बढऩे की उम्मीद है। उम्मीद यह है कि चूंकि महंगाई में वृद्धि जारी रह सकती है या रुपये में कमजोरी जारी रह सकती है, ऐसे में आरबीआई महंगाई को नियंत्रित करने या रुपये को मजबूती देने के लिए ब्याज दरों में और वृद्धि कर सकता है।
वर्ष 2021-22 की पहली छमाही के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों की मजदूरी में सालाना आधार पर वृद्धि 2-3 प्रतिशत के दायरे में थी। यह वर्ष की दूसरी छमाही के दौरान बढ़कर 4.5 प्रतिशत हो गई। लेकिन, पहली छमाही के दौरान ग्रामीण महंगाई 4-6 प्रतिशत के दायरे में थी और दूसरी छमाही में यह 4-8 प्रतिशत के दायरे में थी। वास्तविक ग्रामीण मजदूरी में मामूली गिरावट आ रही है। अप्रैल 2022 में ग्रामीण मुद्रास्फीति 8.4 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई। ऐसे में वास्तविक ग्रामीण मजदूरी बेहद मुश्किल से प्रभावित होती है।
उपभोक्ता इन आंकड़ों को न ही पढ़ते हैं और न ही इनका विश्लेषण करते हैं। वे इसे अपने अनुभवों, सामाजिक नेटवर्क और अपने माहौल पर नजर रखने के माध्यम से महसूस करते हैं। महंगाई और ब्याज दरों में वृद्धि के साथ ही मजदूरी में कमी को देखते हुए उपभोक्ताओं की अपेक्षाओं के कम होने की राय कायम करना तर्कसंगत हो सकता है।
सीएमआईई का उपभोक्ता धारणा सूचकांक उपभोक्ताओं की उम्मीदों का जायजा लेता है। उपभोक्ता धारणाओं के सूचकांक में दो उप-सूचकांक शामिल हैं, मसलन मौजूदा आर्थिक स्थितियों का सूचकांक (आईसीसी) और उपभोक्ता अपेक्षाओं का सूचकांक (आईसीई)। अप्रैल 2022 में, उपभोक्ता अपनी आर्थिक उम्मीदों को लेकर काफी सतर्क हो गए। अप्रैल 2020 के बाद पहली बार आईसीई स्तर आईसीसी से नीचे चला गया। अप्रैल 2020 में लॉकडाउन के बाद धारणाओं में बड़ी गिरावट के बाद, आईसीई हमेशा आईसीसी से आगे था। लॉकडाउन की वजह से आवाजाही पर प्रतिबंध लगने वाली अवधि के दौरान परिवारों को अपनी खराब परिस्थितियों की तुलना में भविष्य को लेकर अधिक उम्मीदें थीं।
अप्रैल 2020 और दिसंबर 2021 के बीच आईसीसी की तुलना में आईसीई हमेशा स्पष्ट रूप से अधिक था। औसतन यह आईसीसी की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक था। पिछले 21 महीनों में यह केवल 0.8 प्रतिशत अधिक था। आईसीसी की तुलना में आईसीई का स्तर जनवरी 2022 से कम होना शुरू हो गया था। आईसीसी की तुलना में आईसीई जनवरी में केवल 4.4 प्रतिशत अधिक था।
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