सीडीएस की असामयिक मृत्यु से वापस बेपटरी हुई प्रक्रिया | दोधारी तलवार | | अजय शुक्ला / May 16, 2022 | | | | |
एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल विपिन रावत की मृत्यु को पांच महीने बीत चुके हैं लेकिन उनका कोई उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं हुआ है। जनवरी 2020 में रावत को तीनों सेनाओं का प्रमुख बनाये जाने के बाद उम्मीद यही थी कि इनके बीच हर प्रकार का तालमेल बढ़ेगा। सीडीएस के रूप में रावत भौगोलिक एकीकृत थिएटर कमांड बनाने के लिए भी जवाबदेह थे जिनमें से प्रत्येक में तीनों सेनाओं के तत्त्व होने थे। अब ये सारी बातें अधर में हैं।
तीनों सेनाओं के लिए एक सर्वोच्च ढांचे का प्रस्ताव सबसे पहले सन 1999 में करगिल समीक्षा समिति ने रखा था और दो वर्ष बाद मंत्री समूह की रिपोर्ट ने इसे दोहराया था। परंतु इसके बाद भाजपा नेतृत्व वाली पहली पूर्णकालिक सरकार तथा कांग्रेस की अगली दो सरकारों ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया। आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में सीडीएस का पद गठित हुआ। रावत को पहले दो अन्य सैन्य कमांडरों पर तरजीह देकर सेना प्रमुख और फिर सीडीएस बनाया गया क्योंकि वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के करीबी थे। रावत के निधन के बाद अगर यह पद रिक्त है तो इसका अर्थ यही है कि किसी अन्य अधिकारी को डोभाल की वह करीबी हासिल नहीं है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का कहना है कि सीडीएस की नियुक्ति में कोई जल्दी नहीं है क्योंकि यह कोई सैन्य परिचालन से जुड़ा पद नहीं है। सेना प्रमुख का पद परिचालन से जुड़ा है और उसे खाली नहीं छोड़ा जा सकता है। यही वजह है कि जनरल एम एम नरवणे की सेवानिवृत्ति के साथ ही जनरल मनोज पांडे को सेना प्रमुख नियुक्त कर दिया गया। डोभाल को पता है कि सीडीएस की नियुक्ति और तीनों सेनाओं की थिएटर कमांड का क्रियान्वयन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की शक्ति कम करेगा।
नये सीडीएस का नाम घोषित न होने से जुड़ी एक राजनीतिक वजह भी चर्चा में है। दरअसल व्यवस्था नौसेना या वायुसेना के सीडीएस के लिए राजी नहीं है सेना के दोनों प्रत्याशी यानी जनरल पांडे और नरवणे दोनों महाराष्ट्र से हैं और उनके संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और नितिन गडकरी से होने की बात कही जा रही है जिन्हें मोदी और अमित शाह प्रतिद्वंद्वी सत्ता केंद्र मानते हैं। इन हालात में न तो जनरल पांडे और न ही जनरल नरवणे को सीडीएस के पद के लिए उपयुक्त माना जा सकता है। इस मामले में अंतिम निर्णय मोदी और शाह को ही लेना है।
इस बीच मोदी ने अपने जनरल, एडमिरल और एयर मार्शल से मिलने में काफी समय दिया है। इन्हीं में से किसी एक को सीडीएस बनाया जाएगा। मई 2014 में सत्ता संभालने के चार महीने बाद ही उन्होंने दिल्ली में संयुक्त कमांडरों की सालाना कॉन्फ्रेंस (सीसीसी) को संबोधित किया था जहां उन्हें तीनों सेनाओं के प्रमुखों से चर्चा की। वे उनसे प्रभावित नहीं हुए। उन्होंने कहा कि दिसंबर 2015 में होने वाली अगली सीसीसी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पर हो। एक बार फिर कल्पनाहीन प्रतिक्रिया पाने के बाद उन्होंने कहा कि वे तीनों सेनाओं के प्रमुखों से संयुक्तता को लेकर वक्तव्य चाहते हैं। वह जानना चाहते थे कि 20 साल पहले तीनों सेनाएं किस स्थिति में थीं, आज कैसी हैं और अगले 20 वर्ष का उनका लक्ष्य क्या है। उन्होंने जानना चाहा कि इन सेनाओं ने आखिरी बार अपने प्रशिक्षण मानकों को कब उन्नत बनाया था? उन्होंने कहा कि दूतावासों के रक्षा सलाहकारों का चयन कैसे किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह चयन पांच वर्ष पहले से किया जाए ताकि उनके पास समय हो। हालांकि संयुक्तता को लेकर कुछ ठोस नहीं हो सका। सन 2017 में सबकुछ बदल गया जब प्रधानमंत्री कार्यालय ने सीसीसी की एक स्पष्ट थीम सामने रखी। प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि चर्चा तीनों सेनाओं की संयुक्तता और थिएटरीकरण पर केंद्रित होना चाहिए। चर्चा से प्रधानमंत्री को समझ में आ गया कि सैन्य कमांडरों में पहले से कोई तालमेल नहीं है। एक अन्य प्रतिभागी ने कहा कि मोदी सीडीएस की घोषणा का मन बनाकर आए थे लेकिन बहस के स्तर से उन्हें लगा कि सेनाएं इसके लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि तीनों सेनाओं के प्रमुख आपस में चर्चा जारी रखें और एक महीने बाद संयुक्तता को लेकर छह ऐेस बिंदु पेश करें जिन पर कदम उठाया जा सके।
एकीकृत रक्षा स्टाफ के कमांडर इन चीफ ने उन्हें बताया कि तीनों सेनाओं के प्रमुख शायद ही कभी मिलते हैं और वे कभी आपके पास विवादित मुद्दे नहीं भेजते। आपके पास एकदम न्यूनतम साझा बातें आती हैं। यह जानकर प्रधानमंत्री स्तब्ध रह गए। फिर भी महीनों तक कोई प्रगति नहीं हुई। 2019 के चुनाव करीब आए और मोदी ने सीडीएस के मुद्दे को परे कर दिया। चुनाव में भारी जीत हासिल करने के बाद उन्हें लगा कि सीडीएस की नियुक्ति की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। रावत सीडीएस बने लेकिन उनकी असामयिक मृत्यु के बाद मामला फिर वहीं पहुंच गया। थिएटरीकरण की बात करें तो एक वर्ग द्वारा हर सेवा के साथ एक और कुल तीन थिएटर कमांड की मांग की जा रही है: एक पाकिस्तान लैंड थिएटर जिसके साथ वायुसेना कमांडर हों, चीन के साथ लैंड थिएटर जहां एक सैन्य कमांडर हो और एक समुद्री थिएटर कमांड जहां नौसेना हो। जबकि सेना एक अलग उत्तरी कमांड की मांग कर रही है। रावत ने पूरे देश के हवाई क्षेत्र के लिए हवाई रक्षा थिएटर कमांड की मांग की थी जिसे वायु सेना ने यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि वह पहले ही पूरे देश की हवाई सुरक्षा की जवाबदेह है। प्रधानमंत्री को विवाद हल करना होगा तथा यह तय करना होगा कि तीनों सेना प्रमुख सीडीएस परियोजना का दायित्व संभालें। मोदी को उनसे कहना होगा कि उनमें से प्रत्येक एक थिएटर संभाले और इसे एक चार सितारा नियुक्ति बनाया जाएगा। उप प्रमुख सेवाओं का प्रबंधन जारी रखेंगे। वह कह सकते हैं कि इसका विरोध करने वाले इस्तीफा दे सकते हैं। ऐसा करने पर संयुक्त थिएटर की स्थापना आसानी से होगी।
|