स्वनियमन समाधान नहीं | संपादकीय / May 13, 2022 | | | | |
बीते कुछ महीनों में एडटेक बाजार में तेज उछाल को लेकर जो जश्न का माहौल था, कारोबारी कदाचार की खबरें सामने आने के बाद अब उसमें खामोशी नजर आ रही है। कम से कम एक यूनिकॉर्न (एक अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली कंपनी) को एक उपभोक्ता को हर्जाना देना पड़ा क्योंकि उसने भ्रामक विज्ञापन दिए थे। सरकार ने दिसंबर में उपभोक्ताओं को एडटेक के गलत आचरण के बारे में जो मशविरे दिए थे उसके बाद इस उद्योग पर ध्यान देने वालों को लगा था कि राज्य के हस्तक्षेप से इस क्षेत्र में हो रही तेज कमाई पर लगाम लग सकती है। जनवरी में भारतीय एडटेक संघ का गठन किया गया ताकि एक साझा आचार संहिता बन सके तथा उसका पालन किया जा सके। सभी बड़े नाम इसमें शामिल हुए। संहिता में नैतिक बिक्री व्यवहार, विपणन संचार, ऋण संबंधी व्यवहार तथा रिफंड आदि बातें शामिल की गईं। एक दो स्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली भी बनायी गई।
यह एक चतुराईपूर्ण कदम था। केवल इसलिए नहीं कि एडटेक कारोबार अपनी प्रकृति में व्यापक निजी शिक्षा क्षेत्र की तुलना में बहुत अधिक वाणिज्यिकृत हो चुका था, हालांकि वह भी बहुत तेजी से बराबरी की ओर बढ़ रहा है। भारत में इसकी शुरुआत एक छोटे कारोबार के रूप में हुई थी जहां यह तकनीकी और प्रबंधन शिक्षा की मांग पूरी करता था तथा ट्यूशन सेवाओं के पूरक के रूप में काम करता था। निगरानी के दायरे के बाहर काम करने के कारण इसने उपभोक्ता विपणन के वे तमाम हथकंडे अपना लिए जिनका अकादमिक जगत से कम और छवि निर्माण से ज्यादा लेनादेना था। शिक्षकों के विज्ञापन देना और उन्हें रेटिंग देना, लोकप्रिय कार्यक्रमों का प्रायोजन करना तथा संदेहास्पद उत्पत्ति वाले रेफरल विज्ञापन देना, ऋण की व्यवस्था करना और वित्तीय सेवा उद्योग की तरह रिफंड आदि की प्रासंगिक सूचनाओं को छोटे अक्षरों में छापने जैसे काम किए जाने लगे। जब तक एडटेक उद्योग व्यापक प्रसार वाले निजी शिक्षण क्षेत्र के सामने हाशिये पर रहा तब तक इसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं गया। लेकिन महामारी के आगमन के बाद हालात बदल गए। स्कूल बंद हो गए और सरकारी स्कूलिंग व्यवस्था के ठप पडऩे के बाद ऑनलाइन शिक्षण की मांग तेजी से बढ़ी। ऐसे में उत्पन्न अंतर को पाटने का काम एडटेक क्षेत्र ने किया। महामारी के कारण दो वर्ष तक स्कूल बंद रहे और एडटेक उद्योग को होने वाली फंडिंग 2019 के 50 करोड़ डॉलर से बढ़कर 2020 में 4 अरब डॉलर और 2021 में 6 अरब डॉलर पार कर गई। इस क्षेत्र में पांच यूनिकॉर्न तैयार हो गईं। इसमें से काफी पैसा किंडरगार्टन से कक्षा 12 (के-12) तक के क्षेत्र में आया। 2018 से दुनिया भर में के-12 क्षेत्र में जितने स्टार्टअप तैयार हुए उनमें भारत की हिस्सेदारी 37 फीसदी रही। इससे हालात तेजी से बदले। अच्छी हैसियत वाले शहरी उपभोक्ताओं से बाजार ग्रामीण, अद्र्धशहरी और शहरों के अल्प आय वर्ग वाले हिस्से में स्थानांतरित हो गया। एडटेक कंपनियों ने इन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया, ऐसे में उन्होंने अपारदर्शी विपणन व्यवहार अपनाया और आखिरकार सरकार को मशविरा जारी करना पड़ा। स्वनियमन के मानक बनाने वाली संस्था का गठन सही दिशा में उठाया गया कदम है लेकिन इससे आधी समस्या का ही समाधान होगा। भारत में स्व नियमन को मिलीजुली सफलता ही मिली है। विज्ञापन जगत में यह कुछ क्षमता से काम करता दिखता है लेकिन मीडिया में यह कम प्रभावी और सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में तो यह लगभग नाकाम ही है।
अगर जुर्माना नहीं लगाया गया तो यह कहना मुश्किल है कि एडटेक संघ गड़बड़ी करने वालों पर अंकुश लगा पाएगा या नहीं। उपभोक्ता अदालतों तक भी सबकी पहुंच नहीं है। संघ ने सरकार को सूचित किया है कि उसने स्वनियमन के लिए संस्था बनायी है लेकिन शिक्षा मंत्री ने कहा है कि वह इस क्षेत्र पर नजर बनाये रखेंगे। यह अच्छा निर्णय है।
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