मार्जिन के नियमों में नरमी, ब्रोकरों को मिली राहत | समी मोडक / मुंबई May 11, 2022 | | | | |
बाजार नियामक सेबी ने ब्रोकरों की तरफ से पीक मार्जिन की गणना करने वाले नियमों में छूट दी है। एक परिपत्र में नियामक ने कारोबारी सत्र की शुरुआत में मार्जिन तय करने की इजाजत दी है और इस तरह से इंट्राडे के आधार पर बार-बार उनमें बदलाव की आवश्यकता खत्म कर दी है।
सेबी ने एक बयान में कहा, बाजार के भागीदारों और विभिन्न हितधारकों की राय के आधार पर फैसला लिया गया है कि मार्जिन की अनिवार्यता इंट्राडे के मुताबिक होना चाहिए और डेरिवेटिव सेगमेंट में (कमोडिटी डेरिवेटिव समेत) मार्जिन की गणना कारोबारी सत्र की शुरुआत में तय करने के मानकों पर आधारित होनी चाहिए। कारोबारी सत्र की शुरुआत में मार्जिन तय करने के मानकों में स्पैन मार्जिन मानक व ईएलएम की अनिवार्यता शामिल होगी।
स्पैन का मतलब जोखिम का स्टैंडर्ड पोर्टफोलियो एनालिसिस है और ईएलएम एक्सट्रीम रिस्क मार्जिन है। इन मानकों का इस्तेमाल किसी खास प्रतिभूति के निवेश पर जोखिम तय करने में होता है। पीक मार्जिन के नियम व्यवस्था में अतिरिक्त लिवरेज कम करने और डिफॉल्टरों का जोखिम रोकने के लिए होते हैं।
ब्रोकिंग समुदाय ने सेबी के कदमों का स्वागत किया है।
फायर्स के सीईओ तेजस खोडे ने कहा, पिछले साल लागू किए गए पीक मार्जिन के नियों ने इंट्राडे पोजीशन के लिए क्लाइंटों को फंड देने की ब्रोकरों की क्षमता को प्रतिबंधित कर दिया था। इसके अतिरिक्त मार्जिन की अनिवार्यता में पांच बार बदलाव किए गए। ऐसे में अगर कोई क्लाइंट 100 फीसदी अग्रिम मार्जिन का भुगतान करता है तो स्पैन की अनिवार्यता में सत्र के दौरान किए गए बदलाव के आधार पर उन्हें भारी जुर्माना देना पड़ स कता है। ट्रेडरों की यही मुख्य चिंता थी क्योंंकि इसका पता लगाने का कोई जरिया नहीं था कि ट्रेड शुरू होने के बाद स्पैन मार्जिन में कितना बदलाव हो सकता है।
पीक मार्जिन के नियम दिसंबर 2020 से चरणों में लागू हुए। दिसंबर 2020 से फरवरी 2021 तक ट्रेडरों से कम से कम 25 फीसदी पीक मार्जिन बनाए रखने की उम्मीद की जाती थी। मार्च व मई के बीच इसे बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया गया। अगस्त तक इसे बढ़ाकर 75 फीसदी किया गया और अंत में 1 सितंबर से इसे 100 फीसदी कर दिया गया।
उद्योग के प्रतिभागियों ने कहा कि इस फ्रेमवर्क के तहत अहम चुनौती यह थी कि ब्रोकरों ने इंट्राडे में हुए बदलाव के आधार पर क्लाइंटों से मार्जिन के संग्रह में मुश्किलों का सामना किया।
ब्रोकरों की निकाय एएनएमआई ने इस संबंध में नियामक के पास अपना पक्ष रखा था और क्लाइंटों से नकदी व डेरिवेटिव सेगमेंट में अग्रिम मार्जिन संग्रह की प्रक्रिया में बदलाव का अनुरोध किया था।
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