प्रशांत किशोर की पदयात्रा में राजनीतिक संभावनाएं | सियासी हलचल | | आदिति फडणीस / May 10, 2022 | | | | |
इंडियन पॉलिटिकल ऐक्शन कमेटी (आई-पैक) और इसके संस्थापक प्रशांत किशोर कई लोगों को उनकी राजनीतिक लड़ाई में रणनीति तैयार करने में मदद कर चुके हैं। वह अब भी उन लोगों को अपनी सेवा देने के लिए तैयार हैं जिन्हें जरूरत है। किशोर ने 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश एवं महागठबंधन को एक पेशेवर की हैसियत से अपनी सेवा दी और चुनावी रणनीति तैयार करने में उनकी मदद की। आई-पैक ने जगन मोहन रेड्डी की भी मदद की और 2019 में उन्हें राज्य की सत्ता पर काबिज होने का रास्ता बताया। इस बीच किशोर को और भी कई सफलताएं मिलीं।
पिछले महीने किशोर ने कांग्रेस में जाने से इनकार कर दिया और इस वक्त वह तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को राज्य विधानसभा चुनाव की तैयारी करने में मदद कर रहे हैं। किशोर ने अभी यह तय नहीं किया है कि वह राजनीतिक दल गठित कर बिहार में राजनीतिक दांव खेलेंगे या एक पेशेवर की तरह आई-पैक का संचालन करते रहेंगे। मगर पिछले सप्ताह उनकी एक घोषणा ने कई संभावनाओं को जन्म दे दिया है। उन्होंने बिहार में 'पदयात्रा' करने की घोषणा की है और राजनीतिक पार्टी के गठन से भी ऌपूरी तरह इनकार नहीं किया है।
किशोर ने 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक टिप्पणी को भुनाने में नीतीश कुमार एवं उनके सहयोगी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की खूब मदद की। एक चुनाव कार्यक्रम के दौरान मोदी ने कहा था कि 'नीतीश कुमार के डीएनए में कुछ दिक्कत है'। दरअसल मोदी नीतीश के बार-बार एक दल या गठबंधन को छोड़कर दूसरे दल या गठबंधन के साथ जुडऩे की तरफ इशारा कर रहे थे। किशोर ने मोदी की इस टिप्पणी का फायदा उठाया और बिहार के लोगों के नाखून एवं बालों के गुच्छे प्रधानमंत्री कार्यालय भेज दिए गए। आई-पैक ने मोदी की इस टिप्पणी को बिहारी स्मिता पर हमला बताया। यह और अन्य रणनीतिक कदमों की मदद से नीतीश कुमार और उनके तत्कालीन सहयोगी राजद और कांग्रेस को सत्ता में आने में मदद मिली और बिहार में सरकार बनाने के भाजपा के मंसूबे पर पानी फेर दिया। बिहार में सत्ता में आने के बाद नीतीश ने किशोर को सार्वजनिक रूप से गले लगा लिया।
आखिर किशोर एवं आई-पैक को क्यों लग रहा है कि जो काम राजनीतिज्ञ कर सकते हैं उन्हें वे भी बेहतर तरीके से कर सकते हैं। किशोर के साथ काम कर चुके कुछ लोगों, जो अब आई-पैक छोड़कर जा चुके हैं, का कहना है कि पदयात्रा की घोषणा सही दिशा में नहीं है और यह भटकाव है। 2013 में 'सिटिजंस फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस' नाम से शुरू इस संस्था से लोगों के बाहर जाने की दर काफी अधिक है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस के साथ किशोर का संबंध टूटना उनके लिए एक बड़ा झटका है। किशोर कांग्रेस को संगठनात्मक स्तर पर नए सिरे से तैयार करना चाहते थे। मगर यह स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस ने किशोर को छोड़ दिया या किशोर ने कांग्रेस को। किशोर और आई-पैक सभी बातें भूलकर ऐसा संदेश देना चाहते हैं कि वे आगे आने वाली चुनौती लेने के लिए तैयार हैं। मगर बड़ा सवाल यह है कि कोई संस्था और इसके ऌऌप्रमुख जो राजनीतिज्ञों को चुनाव में दांव खेलने की सलाह देते हैं क्या वे स्वयं चुनाव जीतने का एक सफल माध्यम हो सकते हैं?
किशोर ने यह कदम उठाने से पहले जरूर सभी पहलुओं पर विचार किया होगा। बिहार की राजनीति में नए दल या गठबंधन के उभरने की गुंजाइश दिख रही है। अप्रैल 2022 में बोचहा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हार का सामना करना पड़ा। इस सीट पर एक ऐसा गठबंधन तैयार हुआ जो शायद ही कभी-कभी देखा जाता है। भाजपा को हराने के लिए अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) और निषाद (मल्लाह) समुदाय साथ आ गए। इस सीट पर राजद को सफलता मिली। लालू प्रसाद का स्वास्थ्य अब ठीक नहीं है, इस वजह से वह राज्य की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। उनकी संतान नेतृत्व संभालने की स्थिति में पूरी तरह नहीं दिख रहे हैं। बोचहा में राजद को जीत इसलिए मिली कि भाजपा को हराने के लिए जातिगत समीकरण तैयार हुआ था। इसे राजद के लिए समर्थन नहीं कहा जा सकता है। जनता दल यूनाइटेड (जदयू) फिलहाल भाजपा की सहयोगी है मगर इस पार्टी का वजूद केवल नीतीश कुमार की वजह से है। जिस दिन नीतीश कुमार जदयू की कमान छोड़ देंगे उस दिन यह पार्टी कई हिस्सों में टूट जाएगी।
फिलहाल तो यही लग रहा है कि किशोर सभी राजनीतिक धड़ों को एकजुट कर एक राजनीतिक ताकत बनने की तैयारी कर रहे हैं। मगर इसके लिए उन्हें अपने और अपनी संभावित पार्टी को लेकर बिहार में एक माहौल तैयार करना होगा। अब यह देखने वाली बात होगी कि किशोर और आई-पैक का बिहार की राजनीति पर क्या असर होगा। क्या वह भी आम आदमी पार्टी (आप) की तरह कारनामा कर पाएंगे? मगर बिहार न तो दिल्ली है और न ही पंजाब। और इन सब के बीच किशोर की अपनी जगह क्या होगी? किशोर के साथ पहले काम कर चुके लोगों का मानना है कि वह एक प्रखर राजनीतिक रणनीतिकार हैं और उनमें चुनावी आंकड़ों के साथ जूझने की बेजोड़ क्षमता है। मगर इन लोगों का यह भी कहना है कि किशोर को कई लोगों को साथ लेकर चलने के कौशल पर काम करना होगा।
मगर उनके साथ जुड़े लोग यह भी कहते हैं कि किशोर सार्वजनिक अभियान संभालने वाले व्यक्ति हैं जो यह मानते हैं कि व्यक्ति से ज्यादा संदेश अधिक मायने रखता है। संगठन तो किसी न किसी आधार पर तैयार किए जा सकते हैं। मगर यह भी सच है कि लंबे समय तक टिके रहने के लिए व्यक्ति और संगठन दोनों की जरूरत होती है।
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