इक्विटी बाजारों में भारी गिरावट का मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों पर असर पड़ा है। इनका प्रदर्शन लार्जकैप प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले ज्यादा प्रभावित हुआ है। कैलेंडर वर्ष 2022 में अब तक बीएसई पर मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांक8 प्रतिशत और 7 प्रतिशत फिसले हैं, जबकि बीएसई के सेंसेक्स में करीब 6 प्रतिशत की कमजोरी आई है। जहां निवेशकों ने पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में निवेश किया, वहीं विश्लेषकों को अभी भी उम्मीद है कि ये दो सेगमेंट मध्यावधि से दीर्घावधि नजरिये से अच्छी निवेशक दिलचस्पी आकर्षित करेंगे। इक्विनोमिक्स रिसर्च के संस्थापक एवं मुख्य निवेश अधिकारी जी चोकालिंगम का कहना है, 'ब्याज दरों में ताजा तेजी के बावजूद निर्धारित आय वाली परिसंपत्तियों से प्रतिफल कमजोर एवं एक अंक में बना हुआ है, धातुओं में कमजोरी है, सोना और चांदी भी ताजा तिमाहियों में बहुत ज्यादा प्रतिफल देने में विफल रहे हैं, क्रिप्टोकरेंसी को भी संघर्ष करना पड़ रहा है, और रियल एस्टेट की रफ्तार अनिश्चित और कम तरलीकृत है। छोटे निवेशक भयभीत नहीं होंगे और इन आशंकाओं से बाजार से दूर नहीं जाएंगे। उनके पसंदीदा सेगमेंट मिड और स्मॉलकैप बने हुए हैं। कैलेंडर वर्ष 2022 भी अल्पावधि चुनौतियों और समस्याओं के बावजूद इन दो सेगमेंटों का अच्छा प्रदर्शन दर्ज कर सकता है।' आईडीबीआई कैपिटल के शोध प्रमुख ए के प्रभाकर भी मिडकैप और स्मॉलकैप पर सकारात्मक हैं और उनका मानना है कि ये सेगमेंट खासकर कैलेंडर वर्ष 2023 में अच्छा प्रदर्शन करेंगे। हालांकि उन्होंने संपूर्ण बाजार धारणा को देखते हुए इन दो सेगमेंट में कैलेंडर वर्ष 2022 में अल्पावधि गिरावट की भी चेतावनी दी है। इन सेगमेंटों को छोटे निवेशकों से मदद मिल सकती है, जो निवेश पर बेहतर प्रतिफल की तलाश में बाजार पर दांव लगा रहे हैं। उन्होंने कहा, 'छोटे निवेशकों का आधार पिछले एक-दो साल में दोगुना हुआ है और उन्होंने मिडकैप एवं स्मॉलकैप में खरीदारी पर जोर दिया है। बाजारों के लिए अल्पावधि चुनौतियों के बावजूद मिडकैप और स्मॉलकैप में कैलेंडर वर्ष 2023 के दौरान बेहतर प्रदर्शन किए जाने की संभावना है।' कई विश्लेषक भारत समेत वैश्विक इक्विटी बाजारों के लिए अल्पावधि समस्याएं देख रहे हैं और उनका मानना है कि बढ़ती ब्याज दरों और तरलता में कमी की स्थिति सामान्य होने में समय लगेगा। जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज में मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार के अनुसार, अमेरिकी फेडरल रिजर्व के सख्त रुख, आरबीआई, बैंक ऑफ इंग्लैंड (बीओई) और रिजर्व बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया (आरबीए) द्वारा दर वृद्घि से पहले ही इक्विटी के लिए जोखिमपूर्ण परिवेश पैदा हो गया है। उनका मानना है कि निवेशकों को इस गिरावट पर आक्रामक खरीदारी की गलती नहीं करनी चाहिए और यह समझना चाहिए कि कीमतों में बड़ी गिरावट आई हो। वह कहते हैं, 'हम नहीं जानते कि गिरावट कितने समय तक बनी रहेगी। गिरावट के बाद भी निफ्टी वित्त वर्ष 2023 की आय के करीब 19 गुना पर कारोबार कर रहा है। यह 16 गुना के दीर्घावधि औसत के मुकाबले ज्यादा है और निश्चित तौर पर खरीदारी योग्य मूल्यांकन नहीं है, खासकर तब, जब वैश्विक तौर पर इक्विटी बाजारों को वृद्घि में मंदी के जोखिम, यूक्रेनन युद्घ और चीन में लॉकडाउन की वजह से पैदा हुए आपूर्ति शृंखला पर दबाव आदि से जूझना पड़ रहा है।'
