डेटा से निर्धारित हो नीति | संपादकीय / May 09, 2022 | | | | |
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पांचवें दौर यानी (एनएफएचएस-5) के अलग-अलग किए हुए आंकड़े जारी कर दिए हैं। यह सर्वेक्षण 2019 में शुरू हुआ था और दो वर्षों तक चला था। 2015-16 में संपन्न हुए चौथे दौर के बाद यह पहला मौका है जब एनएफएचएस के आंकड़े जारी किए जा रहे हैं और ये देश में व्यापक कल्याण को लेकर कई संकेतकों की दिशा के बारे में उल्लेखनीय जानकारी मुहैया कराते हैं। सबसे प्रमुख आंकड़ा पहले ही चर्चा में है और वह यह है देश की कुल प्रजनन दर यानी टीएफआर एनएफएचएस-4 के 2.2 की प्रतिस्थापन दर से गिरकर 2.1 से नीचे आ गई है। टीएफआर वह अनुमानित दर है जिसमें अनुमान लगाया जाता है कि प्रजनन योग्य आयु की महिला के कितने बच्चों को जन्म देने की संभावना है। यह अनुमान से पहले घटित हुआ है। आबादी में वृद्धि पर असर दिखने में समय लगेगा लेकिन यह स्पष्ट है कि बढ़ती समृद्धि और महिला शिक्षा जैसे कारकों ने आबादी की समस्या को हल करने में भूमिका निभाई है।
चूंकि प्रजनन दर में इजाफे के मामले में भौगोलिक और सामाजिक पहलुओं पर बहुत ध्यान दिया गया है इसलिए यह ध्यान देने वाली बात है कि सभी समुदायों की प्रजनन दर कम हुई। एनएफएचएस-5 में हिंदू महिलाओं की प्रजनन दर 1.94 रही और मुस्लिम महिलाओं की 2.2 रही। इस अंतर के लिए कुछ भौगोलिक स्थिति, आय और शैक्षणिक स्तर भी जवाबदेह हैं। एनएफएचएस-4 के बाद मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर में सबसे तेज गिरावट आई है और कभी स्कूल नहीं जाने वाली मुस्लिम महिलाओं की तादाद एनएफएचएस- 4 के 31 प्रतिशत से घट एनएफएचएस- 5 में 22 प्रतिशत रह गई है। हिंदू महिलाओं में यह आंकड़ा 31.4 प्रतिशत से घटकर 28.5 प्रतिशत हुआ है। भौगोलिक दृष्टि से देखें तो शहरी इलाकों में प्रतिस्थापन दर के साथ टीएफआर 1.6 है और ग्रामीण इलाकों में यह 2.1 है।
एनएफएचएस डेटा के अन्य पहलू चिंतित करने वाले हैं। उदाहरण के लिए पांच वर्ष से कम आयु के ठिगने बच्चों की तादाद एनएफएचएस-5 में 23.4 प्रतिशत है जबकि चार वर्ष पहले यह 19.7 फीसदी था। पांच वर्ष से कम आयु के सामान्य से कम वजन वाले बच्चों का प्रतिशत भी बढ़ा है और वे 16.1 फीसदी से बढ़कर 19.1 फीसदी हो गये। बच्चों और महिलाओं में रक्ताल्पता बढ़ी है। इस बीच देश में एक तिहाई वयस्क मोटापे के शिकार हैं। स्वच्छता और पोषण के अन्य संकेतकों में सुधार हुआ है लेकिन ये संकेतक गलत दिशा में जा रहे हैं और दिखाते हैं कि युवाओं और महिलाओं में स्वास्थ्य और पोषण पर खास ध्यान देने की जरूरत है।
एनएफएचएस ने महिलाओं की जीवन गुणवत्ता को लेकर जरूरी आंकड़े पेश किए हैं। उदाहरण के लिए सरकार के निरंतर काम की बदौलत लगभग 100 प्रतिशत परिवारों में एलपीजी कनेक्शन है। परंतु देश के कई हिस्सों में एलपीजी का 60 से 70 प्रतिशत ही उपयोग हो पा रहा है। तमिलनाडु जैसे अपेक्षाकृत प्रगतिशील माने जाने वाले राज्यों समेत बड़ी तादाद में भारतीय मानते हैं कि घरों में महिलाओं के खिलाफ शारीरिक हिंसा जायज है। 18 से 49 आयु वर्ग की करीब एक तिहाई महिलाओं को शारीरिक हिंसा झेलनी पड़ी और यौन हिंसा झेलने वाली केवल 14 प्रतिशत महिलाएं उसकी औपचारिक शिकायत करती हैं। महिलाओं की शिक्षा का स्तर बढऩे के साथ ही शारीरिक हिंसा की आशंका कम होती है। इसका अर्थ यह है कि महिलाओं पर केंद्रित विधिक और प्रशासनिक संरक्षण जारी रखना जरूरी है। तभी उन्हें आर्थिक और शैक्षणिक सशक्तीकरण प्रदान किया जा सकेगा।
|