बिजली कटौती से धीमा पड़ रहा सूरत का कपड़ा उद्योग | विनय उमरजी / सूरत May 09, 2022 | | | | |
उत्तर प्रदेश के उन्नाव के निवासी और सूरत के पांडेसरा औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले 52 साल के मुलायम सिंह इस बात से दुखी हैं कि उनके उत्तर प्रदेश के दोस्त एवं सहकर्मी त्योहारों के लिए घर चले गए हैं, लेकिन वह अपनी कम बचत की वजह से घर नहीं जा पाए।
सिंह ने अफसोस जताते हुए कहा, 'साप्ताहिक बिजली कटौती से स्थितियां और बिगड़ रही हैं। इसका मतलब है कि मुझे एक दिन रोजगार नहीं मिल पाता, जबकि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले ज्यादा कमाने और घर लौटने के लिए ज्यादा पैसा बचा पाते हैं।'
पिछले महीने सरकार द्वारा परिचालित गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएनएल) ने उच्च और निम्न बिजली उपयोगकर्ता उद्योगों में गैर-निरंतर प्रक्रियाओं वाले उद्योगों के लिए साप्ताहिक चरणबद्ध अवकाश का आदेश दिया था। अप्रैल के अंत तक राज्य में बिजली की अधिकतम मांग 21,000 मेगावाट को पार कर गई थी, जिसमें से ज्यादातर औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्र से आई। गुजरात की बिजली उत्पादन क्षमता करीब 37,000 मेगावाट है।
हालांकि जीयूवीएनएल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उद्योग के लिए क्रमिक अवकाश अनिवार्य नहीं था। अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'गुजरात में बिजली की स्थिति बेहतर है और भविष्य में बिजली की मांग में बढ़ोतरी की पूर्ति के तरीके खोजे जा रहे हैं।'
भले ही गुजरात और खास तौर पर सूरत में बिजली का संकट उतना नहीं रहा, जितना इसने उत्तर भारत के अन्य राज्यों को प्रभावित किया है। लेकिन अगर सूरत कपड़ा उद्योग में उत्पादन मामूली भी घटता है तो इसका कामगारों, विशेष रूप से पावरलूम क्षेत्र के कामगारों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसकी वजह यह है कि पावरलूम कामगारों को प्रति मीटर कपड़ा बुनाई के आधार पर भुगतान किया जाता है। क्रमिक अवकाश और पारियों की कम संख्या का मतलब है कि वे कम उत्पादन कर सकते हैं और इसलिए उनकी कम कमाई होती है।
सूरत में प्रवासी कामगारों की आबादी 12 से 15 लाख है, जिनमें से ज्यादातर कपड़ा उद्योग में कार्यरत हैं। इसके बाद निर्माण और हीरा उद्योग में सबसे ज्यादा कामगार लगे हैं। इन प्रवासी कामगारों में से ज्यादातर ओडिशा, बिहार और उत्तर प्रदेश के हैं। सामान्य समय में सूरत के कपड़ा उद्योग के कामगार अन्य उद्योगों के कामगारों से बेहतर स्थिति में होते हैं क्योंकि उन्हें प्रति नग के आधार पर कमाई होती है। उन्हें ग्रे कपड़ा या फैब्रिक बनाने पर 3 रुपये से 5 रुपये प्रति मीटर मिलते हैं। इस तरह उनका मासिक वेतन 20,000 रुपये से 25,000 रुपये होता है।
मुलायम सिंह को नौकरी देने वाली जय माता दी टेक्सटाइल सूरत में सबसे बड़ी पावर लूम एवं कपड़ा क्लस्टरों में से एक पांडेसरा में है। उसके मालिक विपुल बेकावाला ने कहा कि उद्योग के करीब 40-50 फीसदी प्रवासी कामगार अपने गृह राज्यों को लौट गए हैं। इससे श्रमिकों की किल्लत पैदा हो गई है। इसके अलावा सुस्त मांग और साप्ताहिक बिजली कटौती से उद्योग वांछित क्षमता से कम पर चल रहा है।
आम तौर पर सूरत में रोजाना 4 से 4.5 करोड़ मीटर कपड़े का उत्पादन होता है, लेकिन अब रोजाना 3 करोड़ मीटर कपड़ा ही बन पा रहा है। बेकावाला ने कहा, 'इस साल बहुत से कामगार लंबी छुट्टियों पर घर लौट गए हैं। इसके अलावा साप्ताहिक बिजली कटौती और क्रमिक अवकाश के कारण हमारे औद्योगिक क्षेत्र के कामगार शहरी सीमा के भीतर स्थित इकाइयों में चले गए हैं, जहां लगातार बिजली की आपूर्ति हो रही है और इसलिए उन्हें लगातार आमदनी भी हो रही है।' उन्होंने कहा कि इस वजह से उनकी इकाई के 250 पावर लूम में से दिन में केवल 130 से 140 चलते हैं और रात में भी कम चलते हैं।
उद्योग के सूत्रों का अनुमान है कि कपड़ा बुनाई इकाइयों में 4 से 5 लाख प्रवासी कामगार कार्यरत हैं। इसके अलावा कपड़ा प्रोसेसिंग इकाइयों में अन्य 3-4 लाख और थोक बाजारों में कपड़ा कारोबारियों के यहां 2 लाख कामगार काम कर रहे हैं। सूरत में 450 कपड़ा प्रोसेसिंग इकाइयां, 6 लाख कताई एवं बुनाई पावरलूम और 700 से अधिक कपड़ा बाजार हैं। इन बाजारों में तैयार माल को पैक करने और भेजने से संबंधित कार्य से करीब पांच लाख कामगार जुड़े हुए हैं।
हालाकि हीरा उद्योग मुख्य रूप से शहर में ही स्थित है, जहां निजी कंपनी टॉरेंट बिजली वितरण करती है। पावरलूम और प्रोसेसिंग इकाइयों सहित ज्यादातर कपड़ा इकाइयां शहर के बाहर स्थित हैं, जहां सरकारी दक्षिण गुजरात विज कंपनी लिमिटेड (डीजीवीसीएल) बिजली की आपूर्ति करती है।
कोयले की कमी और बिजली संकट के असर से इनकार करते हुए डीजीवीसीएल के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बिजली कटौती मॉनसून से पहले नियमित सालाना मरम्मत के तहत की जा रही है। उन्होंने कहा, 'इसका बिजली संकट से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसा हर साल गर्मियों में यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि मॉनसून के दौरान दुर्घटनाएं कम की जा सकें।'
सााउथ गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (एसजीसीसीआई) के अध्यक्ष आशिष गुजराती ने कहा कि इसके बावजूद डीजीवीसीएल की साप्ताहिक बिजली कटौती से उत्पादन में कम से कम 10 फीसदी गिरावट आई है। गुजराती ने कहा, 'कपड़ा उद्योग के लिए उत्पादन में 10 फीसदी कमी भारी है क्योंकि इसमें निश्चित ऊपरी लागत हैं। कोयला और बिजली संकट करीब दो साल और बने रहने के आसार हैं। इसलिए हमने नीति निर्माताओं और सरकार से नवीकरणीय ऊर्जा में समाधान खोजने का आग्रह किया है। गुजरात में उद्योग करीब 6-7 फीसदी की दर से बढ़ रहा है, इसलिए बिजली की मांग भी इसी रफ्तार से बढ़ रही है।' उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि हालांकि कपड़ा प्रोसेसिंग क्षेत्र साप्ताहिक बिजली कटौती से इतना अधिक प्रभावित नहीं हुआ है, लेकिन कोयले की कीमतें और उपलब्धता का मूल्य शृंखला पर असर पड़ा है।
साउथ गुजरात टेक्सटाइल प्रोसेसर्स एसोसिएशन (एसजीटीपीए) के अध्यक्ष जीतू वखारिया ने कहा कि ये इकाइयां अपने बॉयलर के लिए मुख्य रूप से आयातित कोयले पर निर्भर हैं। लेकिन आयातित कोयले के दाम लगभग दोगुने हो गए हैं। इससे इनपुट लागत 25 फीसदी से 40 फीसदी बढ़ गई है।
वखारिया ने कहा, 'कपड़ा प्रोसेसिंग में उत्पादन साप्ताहिक बिजली कटौतियों से बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है क्योंकि साप्ताहिक अवकाश का इस्तेमाल मशीनों और बॉयलर की मरम्मत के लिए किया जाता है। हालांकि आयातित कोयले की कीमतों और उपलब्धता के लिहाज से असर पड़ा है। डाई और रसायन, खास तौर पर सोडियम हाइड्रोजन सल्फेट और अन्य डिस्चार्जिंग एजेेंट जैसे अन्य इनपुट की लागत में 30 से 150 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।'
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