क्या रिलायंस जियो दूरसंचार क्षेत्र में उथलपुथल मचाने का सिलसिला जारी रखेगी? कंपनी अपनी कारोबारी शुरुआत के छह वर्ष बाद प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश की तैयारी कर रही है। क्या दूरसंचार उद्योग में अभी भी हालात रिलायंस बनाम अन्य के ही हैं? और क्या भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा जियो को खुली छूट देने के विरुद्ध उद्योग जगत का गुस्सा कम हुआ है? इन सवालों का सटीक जवाब मुश्किल है लेकिन बीते कुछ वर्षों के वित्तीय और ग्राहक संबंधी आंकड़ों से कुछ संकेत निकलते हैं। जियो के उभार के अलावा समूचे उद्योग में फोन और इंटरनेट के इस्तेमाल की अवधि बढ़ी है। इंटरनेट के मामले में देश के शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच की दूरी भी कम हुई है। प्रति माह प्रति उपभोक्ता औसत राजस्व (एआरपीयू) में सालाना स्तर पर गिरावट आ रही थी लेकिन दरों में इजाफा किए जाने के बाद हालात बदले हैं। उद्योग जगत की शिकायत रही कि जियो की आक्रामक रूप से कम कीमतों ने अन्य कंपनियों को दरें बढ़ाने से रोके रखा। क्षेत्र के सामने दूसरा जोखिम था दो कंपनियों के दबदबे का जिससे प्रतिस्पर्धा पर बहुत बुरा असर पड़ता। फिलहाल वह जोखिम दूर हो गया है क्योंकि सरकार ने गत वर्ष एक पैकेज दिया। लेकिन यह उद्योग बीते कई वर्षों से दो कंपनियों की ओर बढ़ रहा है। जरूरी नहीं कि वह भी जियो के कारण ही हुआ हो। ट्राई का प्रदर्शन बताता है कि दिसंबर 2015 में समाप्त तिमाही में 12 दूरसंचार कंपनियां थीं जिनमें सरकारी बीएसएनएल और एमटीएनएल भी थीं। उस वक्त रिलायंस जियो की वाणिज्यिक शुरुआत नहीं हुई थी। भारती एयरटेल वायरलेस क्षेत्र में 24.07 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर थी। उसके बाद वोडाफोन (19.15 फीसदी) और आइडिया (17.01) फीसदी का हिस्सा था। तब दोनों कंपनियों का विलय नहीं हुआ था। अन्य निजी कंपनियों में टाटा टेलीकॉम, टेलीनॉर, एयरसेल, रिलायंस कम्युनिकेशंस, सिस्टेमा और वीडियोकॉन शामिल थीं। लैंडलाइन में बीएसएनएल 59.31 फीसदी के साथ शीर्ष पर थी। भारती एयरटेल 14.10 फीसदी के दूसरे स्थान पर थी। इस उद्योग का कुल एआरपीयू अभी 123 रुपये प्रति उपभोक्ता प्रति माह से ऊपर जा रहा था। वायरलेस ब्रॉडबैंड के आंकड़े भी बढ़ रहे थे। भारती एयरटेल 13.65 करोड़ उपभोक्ताओं और 23.07 फीसदी हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर थी। सकल राजस्व और समायोजित सकल राजस्व भी दिसंबर 2015 तिमाही में बढ़ते हुए क्रमश: 65,347 करोड़ रुपये तथा 46,087 करोड़ रुपये हो गया। दिसंबर 2017 में समाप्त तिमाही में वायरलेस कारोबारियों का मासिक एआरपीयू 80 रुपये से कुछ अधिक था जो दिसंबर 2015 के 123 रुपये से काफी कम था। सकल राजस्व और औसत राजस्व भी एक वर्ष पहले से क्रमश: 8 फीसदी और 16 फीसदी घटा। परंतु इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की तादाद बढ़कर 44.59 करोड़ हो गई थी। जियो ने 2016 में वाणिज्यिक शुरुआत की और इसकी वजह से मची उथलपुथल भी सामने आ गई। उस वक्त बाजार की शीर्ष कारोबारी भारती एयरटेल और वोडाफोन का उपभोक्ता आधार पिछली तिमाही की तुलना में एक अंक में बढ़ा जबकि जियो के ग्राहकों में 15.49 फीसदी बढ़ोतरी हुई। जियो की बाजार हिस्सेदारी 13.45 फीसदी थी जबकि भारती एयरटेल की 24.6 फीसदी तथा वोडाफोन की 17.8 फीसदी। दिसंबर 20177 तक जियो वायरलेस इंटरनेट के बाजार में 37.7 फीसदी हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर पहुंच चुकी थी। दिसंबर 2018 में इंटरनेट उपभोक्ताओं की तादाद बढ़कर 60.4 करोड़ हो गई। वायरलेस एआरपीयू घटकर 70 रुपये तक आ गया था जो पिछले साल की समान अवधि से 11.78 रुपये कम था। इस्तेमाल की अवधि बढ़ी थी लेकिन सकल राजस्व और एजीआर क्रमश: 3.43 प्रतिशत और 6.44 प्रतिशत कम हुए थे। बाजार हिस्सेदारी की बात करें तो विलय के बाद बनी वोडाफोन आइडिया 34.98 फीसदी के साथ शीर्ष पर थी जबकि भारती 28.74 फीसदी और जियो 23.38 फीसदी की हिस्सेदार थी। दिसंबर 2019 में जियो 31.65 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर थी। वोडा आइडिया 28.4 और भारती एयरटेल 28.28 फीसदी के साथ क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर थीं। अधिकांश अन्य निजी कारोबारी पहले ही बाहर हो चुके थे। दिसंबर 2020 के आंकड़े बताते हैं कि वायरलेस एआरपीयू बढऩे लगा था और वह 101.65 रुपये हो गया था। इसमें सालाना 29.24 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सकल राजस्व और एजीआर में भी क्रमश: 12.27 प्रतिशत और 16.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। जियो ने अब तक खुद को शीर्ष दूरसंचार कंपनी के रूप में स्थापित कर लिया था और उसके पास 35.43 फीसदी बाजार हिस्सेदारी थी। भारती एयरटेल 29.36 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर थी। उसने वोडा आइडिया को पीछे छोड़ा था जिसके पास केवल 24.64 फीसदी हिस्सेदारी बची। शहरी और ग्रामीण वायरलेस की दूरी भी घटी और उनकी हिस्सेदारी क्रमश: 53.64 प्रतिशत और 44.65 प्रतिशत हो गई। दिसंबर के उपभोक्ता आंकड़े पिछले वर्ष के रुझान को दर्शाते हैं। जियो की वायरलेस बाजार हिस्सेदारी गत वर्ष के 35.43 फीसदी से बढ़कर 36 फीसदी हो गयी। भारती एयरटेल की हिस्सेदारी पिछले वर्ष के 29.36 प्रतिशत से बढ़कर 30.81 प्रतिशत जबकि वोडा आइडिया की हिस्सेदारी थोड़ी घटकर 24.64 प्रतिशत से 23 प्रतिशत रह गई। ट्राई की ताजा तिमाही रिपोर्ट सितंबर 2021 तिमाही की है जिसके मुताबिक इंटरनेट उपभोक्ताओं की तादाद बढ़कर 79.48 करोड़ हो चुकी है। वायरलेस एआरपीयू सालाना आधार पर दो अंकों में बढ़ा और 108.16 रुपये पहुंच गया हालांकि यह दिसंबर 2015 के 123 रुपये के स्तर से फिर भी कम है। दूरसंचार उद्योग को जियो के पहले के एआरपीयू स्तर पर आने में अभी भी कुछ और तिमाहियां लग सकती हैं। दूरसंचार कंपनियों को आगे बढ़ते हुए गुणवत्तापूर्ण सेवाओं पर पूरा ध्यान देना चाहिए।
