मुंबई के बिजली उपभोक्ताओं को मिलेगी राहत | देव चटर्जी / मुंबई May 06, 2022 | | | | |
बिजली आपूर्ति को लेकर मुंबई की चिंता अब खत्म होने वाली है। इस साल के अंत तक एक नई पारेषण लाइन महानगर को राष्ट्रीय ग्रिड से जोडऩे वाली है।
खारघर से विक्रोली तक पारेषण लाइन पर 1,900 करोड़ रुपये लागत आ रही है, जो इस साल के अंत तक बनकर तैयार हो जाएगी। वहीं आरे से कुदुस तक की पारेषण परियोजना में 7,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा और यह वित्त वर्ष 2026 तक तैयार हो जाएगी। राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि इसके साथ ही महानगर को राष्ट्रीय ग्रिड से जोडऩे वाली अतिरिक्त लाइन मिलेगी, जिससे उच्च गुणवत्ता वाली, सस्ती बिजली तक पहुंच मिल सकेगी।
महाराष्ट्र सरकार के अधिकारियों ने कहा, 'दोनों परियोजनाओं के लिए जमीन का अधिग्रहण हो गया है और विस्तृत डिजाइन और इंजीनियरिंग का काम पूरा हो चुका है। राइट टु वे (आरओडब्ल्यू) के लिए आवश्यक मंजूरी मिल गई है और परियोजना का काम पूरा होने के अंतिम अवस्था में है।'
अधिकारी ने कहा कि दोनों परियोजनाओं से मुंबई को 2,000 मेगावॉट अतिरिक्त बिजली की आपूर्ति हो सकेगी, जो गर्मी की वजह से मांग 30 प्रतिशत बढऩे से बिजली संकट के दौर से गुजर रहा है। अधिकारी ने कहा कि 2 परियोजनाओं में से खारघर विक्रोली परियोजना से 1,000 मेगावॉट बिजली इस साल के अंत तक आनी शुरू हो जाएगी और आपूर्ति के अंतर की तात्कालिक मांग पूरी की जा सकेगी।
पिछले सप्ताह मुंबई की बिजली की मांग बढ़कर 3,750 मेगावॉट हो गई थी और राज्य सरकार के अधिकारियों को चल रही गर्म हवाओं के कारण मांग 4,200 मेगावॉट तक पहुंचने की संभावना है।
दिलचस्प है कि 7,000 करोड़ रुपये की आरे और कुदुस परियोजना उच्चतम न्यायालय में याचिका में फंसी हैं। मुंबई में बिजली की आपूर्ति करने वाली टाटा पावर ने पिछले सप्ताह राज्य सरकार की योजना के खिलाफ न्यायालय का रुख किया था, जिसमें सरकार ने अदाणी इलेक्ट्रिसिटी (पहले रिलायंस एनर्जी) को परियोजना आवंटित करने की योजना बनाई थी।
2013 में महाराष्ट्र्र बिजली नियामक आयोग ने आरे कुदुस परियोजना को हरी झंडी दी थी। लेकिन यह परियोजना 2018 तक अटकी रही, जब राज्य के भीतर पारेषण परियोजनाओं को देखने वाली नोडल एजेंसी राज्य पारेषण इकाई (एसटीयू) ने परियोजना की संभावनाओं में बदलाव किया था। मुंबई उपनगरीय बिजली वितरण का कारोबार अनिल अंबानी समूह से लेने के बाद अदाणी इलेक्ट्रिसिटी ने आरईएल को आवंटित परियोजना बहाल की और पिछले साल मार्च में एमईआरसी से लाइसेंस हासिल किया।
बहरहाल टाटा पावर ने एमईआरसी के प्रस्ताव का विरोध किया, जिसमें यह कहते हुए लाइसेंस को मंजूरी दी गई कि परियोजना का आवंटन प्रतिस्पर्धी बोली से होगा। एमईआरसी ने टाटा पावर का अनुरोध रद्द कर दिया। उसके बाद टाटा पावर बिजली अपीली न्यायाधिकरण (एपीटीईएल) चली गई, जिसने इस साल फरवरी में एमईआरसी के फैसले को बरकरार रखा। टाटा पावर ने एपीटीईएल के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय चली गई औऱ यह मामला अभी न्यायालय के विचाराधीन है।
जून 2010 में एमईआरसी ने एक समिति नियुक्त की, जिसे मुंबई में ग्रिड फेल होने की वजहों का पता लगाना था और इस तरह की घटना रोकने के लिए कदमों का सुझाव देना था।
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