अग्रणी एक्सचेंज नैशनल स्टॉक एक्सचेंज ने कहा है कि बाजार नियामक की तरफ से क्लाइंट के फंडों को लेकर किए गए सिलसिलेवार बदलाव ने शेयर बाजार में पारदर्शिता में इजाफा किया है और जोखिम प्रबंधन में सुधार किया है। 2 मई से बाजार नियामक सेबी ने ब्रोकरों को एक क्लाइंट के कोलेटरल फंड का इस्तेमाल दूसरे क्लाइंट के मार्जिन की फंडिंग में करने से रोक दिया है। इस मामले में ब्रोकरों को क्लाइंट के स्तर पर कोलेटरल की सूचना देनी होगी और इसमें नाकाम होने पर उन पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है। सितंबर 2020 में नियामक ने पावर ऑफ अटॉर्नी की पुरानी व्यवस्था को कथित तौर पर मार्जिन प्लेज व री-प्लेज मेकेनिज्म से बदल दिया। ब्रोकरों की तरफ से क्लाइंट के फंडों का दुरुपयोग किए जाने के बाद यह कदम उठाया गया। अक्टूबर 2021 में सेबी ने एक्सचेंजों, क्लियरिंग कॉरपोरेशन व ब्रोकरों को टी प्लस 1 के आधार पर क्लाइंटों के नकदी कोलेटरल का खुलासा करने का निर्देश दिया। एनएसई क्लियरिंग के प्रबंध निदेशक विक्रम कोठारी ने कहा, कोलेटरल पर नियामकीय दिशानिर्देश पारदर्शिता और निवेशकों के कोलेटरल का पता लगाने के इरादे से तैयार किया गया है, जो वैयक्तिक कोलेटरल को अलग-अलग करता है और सभी निवेशकों को सुरक्षा देता है। साथ ही लाभ में सुधार और कोलेटरल की त्वरित वापसी भी मुहैया कराता है। अभी एनएसई क्लियरिंग करीब 5 करोड़ निवेशकों के कोलेटरल खाते अपने पास बनाए हुए है, जिसकी पहचान विभिन्न ब्रोकरों के तहत होती है। यह क्लाइंटों की प्रतिभूतियों व नकद कोलेटरल की सुरक्षा वैयक्तिक आधार पर करने में सक्षम बनाता है। एक्सचेंज के अधिकारियोंं ने कहा कि उन्होंंने ब्रोकरों की निगरानी और किसी तरह के दुरुपयोग के शुरुआती संकेत की जानकारी हासिल कनरे के लिए सिलसिलेवार कदम उठाए हैं।
