भारत में कंपनी संचालन में खामियां | |
जैमिनी भगवती / 05 03, 2022 | | | | |
बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने सूचीबद्ध कंपनियों को एक निश्चित समय सीमा के भीतर दो अलग-अलग व्यक्ति को अध्यक्ष (चेयरमैन) और प्रबंध निदेशक (एमडी) के पदों पर नियुक्त करने के निर्देश दिए थे। यह समय सीमा 1 अप्रैल, 2022 थी। देश के समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के अनुसार बाजार नियामक की इस शर्त का पालन करने के लिए करीब 150 बड़ी कंपनियों को अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के पद को अलग करना पड़ता। इन कंपनियों में रिलायंस इंडस्ट्रीज, अदाणी पोट्र्स और बजाज फिनसर्व जैसी कंपनियां शामिल थीं।
सेबी ने 15 फरवरी को सूचीबद्ध कंपनियों के लिए दो अलग-अलग व्यक्ति को अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बनाए जाने का निर्देश वापस ले लिया और इसका निर्णय कंपनियों पर छोड़ दिया। सेबी के इस बदले रुख से उन कंपनियों को आसानी हुई जिनमें अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक का पद एक ही व्यक्ति के हाथ में था। इस आलेख में इस नियामकीय आत्मसमर्पण और नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में 2013 से 2017 के बीच चल रही धांधली के बाद उत्पन्न परिस्थितियों एवं परिणामों की समीक्षा की गई है।
'कंपनी संचालन के वित्तीय पक्षों' पर लंदन स्टॉक एक्सचेंज, लेखा पेशेवरों एवं अन्य लोगों ने 1991 में विलियम कैडबरी समिति की स्थापना की थी। समिति ने दो प्रमुख सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट 1992 में सौंप दी थी। इनमें अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के पद अलग करने और अधिकार प्राप्त अंकेक्षण समितियों की स्थापना का जिक्र था। भारतीय निगमित संचालन समितियों ने भी ऐसी ही सिफारिश की थी। उदाहरण के तौर पर कोटक समिति नेे अक्टूबर 2017 में सेबी को सौंपी अपनी रिपोर्ट के 20वें पृष्ठ में कहा था कि सूचीबद्ध कंपनियों में अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के पद अलग किए जाने चाहिए। हालांकि समिति ने क हा था कि ऐसी कंपनियों में सार्वजनिक शेयरधारिता कम से कम 40 प्रतिशत होनी चाहिए।
आदर्श रूप में कंपनियों में द्वितीय पीढ़ी के बहुलांश मालिकों को पेशेवर प्रबंधकों को अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक की भूमिका संभालने की इजाजत देनी चाहिए। मगर कई कारणों से ऐसा नहीं होता है। यह तब भी नहीं होता है जब मालिक अपेक्षाकृत युवा होते हैं और अपनी कंपनी के प्रबंधन को वरीयता देते हैं। हालांकि जब बहुलांश मालिक किसी सूचीबद्ध कंपनी में अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक दोनों पद संभालता है तो खुदरा शेयरधारकों के हितों को उचित सम्मान नहीं मिल सकता है या उन्हें पूरी तरह दरकिनार किया जा सकता है। इतना कहना पर्याप्त होगा कि सेबी द्वारा अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के पद अलग-अलग करने का विकल्प सूचीबद्ध कंपनियों पर छोडऩा निगमित संचालन के लिहाज से एक प्रगतिशील सोच नहीं है।
अब जरा जानी-मानी कंपनी नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में प्रबंध निदेशक और इसके समान समझे जाने वाले निदेशक मंडल से जुड़े वास्तविक नाटकीय घटनाक्रम का जिक्र करते हैं। चित्रा रामकृष्ण ने अप्रैल 2013 में एनएसई की प्रबंध निदेशक का पदभार संभाला था। आनंद सुब्रमण्यन को मुख्य रणनीतिक अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था। यह आश्चर्यचकित करने वाली बात है कि एनएसई बोर्ड ने ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति पर चुप्पी साथ ली जिसके पास पर्याप्त योग्यता नहीं थी। अगले कुछ वर्षों के दौरान सुब्रमण्यन के वेतन में कई बार वृद्धि हुई और यह सालाना करीब 4 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। समाचार माध्यमों में आई खबरों के अनुसार प्रबंध निदेशक के कहने पर सुब्रमण्यन के वेतन में इजाफा किया गया था। मगर वेतन में असाधारण वृद्धि से निदेशक मंडल पूरी तरह वाकिफ था। अगर निदेशक मंडल की तरफ से औपचारिक अनुमति नहीं भी मिली होती तो चित्रा के कहने पर सुब्रमण्यन के वेतन में बार-बार वृद्धि की चर्चा एएसई के अंदर जरूर उठती और सभी के कानों में यह बात पहुंच जाती। वास्तव में सुब्रमण्यन और चित्रा के बारे में सेबी को एनएसई कर्मचारियों की तरफ से कई बेनाम शिकायते आईं। शायद एनएसई के कर्मचारियों में यह भावना घर कर गई थी कि इस पूरे मामले में एनएसई निदेशक मंडल के सदस्य भी संलिप्त हैं इसलिए उन तक शिकायत पहुंचाने का कोई औचित्य नहीं है।
1992 में हर्षद मेहता कांड के दौरान सार्वजनिक एवं निजी वित्तीय क्षेत्र के संस्थानों के कई अध्यक्षों एवं वरिष्ठ प्रबंधकों के काले कारनामे सामने आने बाद एनएसई की स्थापना हुई थी। एनएसई में हो रही अनियमितताओं की पृष्ठभूमि में 2013 में सुब्रमण्यन की नियुक्ति के बाद एनएसई के निदेशक मंडल को चित्रा को यह संकेत देने में तीन वर्षों का समय लग गया कि उन्हें बर्खास्त किया जाएगा। इसके बाद बाद चित्रा ने परिस्थितियां भांपते हुए 29 नवंबर, 2016 को स्वयं ही इस्तीफा दे दिया। यह वाकई हैरान करने वाली बात है कि एनएसई के निदेशक मंडल के सदस्यों और इसके वरिष्ठ प्रबंधन ने इस बात की जरूरत नहीं समझी कि चित्रा के इस्तीफा देने के बाद 2016 से 2021 के अंत तक पिछले पांच वर्षों के दौरान व्यापक आंतरिक जांच सार्वजनिक की जाए। इसका एक स्पष्टीकरण यह हो सकता है कि एनएसई निदेशकमंडल के सदस्यों एवं प्रबंधन को लगा कि चित्रा की काली करतूतों पर पर्दा डालने से एनएसई की सार्वजनिक सूचीबद्धता की प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं आएगी।
एनएसई की तत्कालीन अध्यक्ष को 'द इकनॉमिक टाइम्स' के 6 जुलाई, 2016 को छपे संस्करण में यह कहते हुए उद्धृत किया था कि 'एनएसई की सूचीबद्धता के लिए एक विश्वसनीय योजना तैयार कर ली गई है।' जनवरी 2017 तक यह खबर भी आई थी कि एनएसई आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के लिए सेबी को आवेदन सौंप सकता है। न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज मार्च 2006 में सूचीबद्ध हुआ था और विकसित देशों के अधिकार क्षेत्रों में आने वाले कुछ और स्टॉक एक्सचेंज हाल के समय में सूचीबद्ध हुए हैं। इस लिहाज से सूचीबद्ध होने तक चित्रा और सुब्रमण्यन के बारे में कोई नकारात्मक खबर बाहर जाने से रोकना एनएसई के प्रबंधन को उचित निर्णय लग रहा था।
स्टॉक एक्सचेंज मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशंस (एमआईआई) होते हैं और इनमें निगरानी विभाग प्रबंधन एवं निदेशक मंडल के सदस्यों से पर्याप्त दूरी बरतते हैं। इन विभागों से आशा की जाती है कि वे संदेहास्पद गतिविधियों पर नजर रखें। विमल जालान समिति ने 'एमआईआई के मालिकाना नियंत्रण एवं संचालन समीक्षा' पर नवंबर 2010 में सेबी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वह 'एमआईआई की सूचीबद्धता के पक्ष में नहीं है'।
ऐसा प्रतीत होता है कि एनएसई में निजी निवेशक इस एक्सचेंज की सूचीबद्धता के पक्ष में हैं क्योंकि इससे उनके लिए आसानी से बाहर निकलना मुमकिन हो जाएगा। हालांकि एनएसई की सूचीबद्धता का यही एकमात्र कारण नहीं होना चाहिए क्योंकि इसकी स्थापना प्रतिस्पद्र्धा सृजित करने के लिए हुई है, न कि बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) की नकल करने के लिए। इन सभी बातों पर विचार करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि अगर एनएसई एक गैर-सूचीबद्ध कंपनी के रूप में काम करेगी तो भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में निगमित संचालन में सुधार करना और भारतीय वित्तीय बाजारों में इससे भी अधिक सुधार का उद्देश्य अधिक आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। एनएसई के प्रबंधन में शामिल लोगों का वेतन भी सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों के अनुरूप होना चाहिए।
(लेखक भारत के राजदूत और विश्व बैंक में ट्रेजरी फाइनैंस विशेषज्ञ रह चुके हैं।)
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