'गति शक्ति' में दम, क्या समस्याएं कर पाएगी कम | |
इंद्रजित गुप्ता / 04 30, 2022 | | | | |
'गति शक्ति' योजना क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली कुछ परियोजनाओं में एक मानी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष अक्टूबर में इस योजना की शुरुआत की थी। भारत में बड़े आकार की ढांचागत परियोजनाओं का नियोजन एवं क्रियान्वयन सदैव चुनौतीपूर्ण रहा है। परियोजनाओं में विलंब होने से समय एवं धन दोनों की हानि होती है। 'गति शक्ति' परियोजना का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि इस ऌऌऌपहल से ढांचागत क्षेत्र में कई समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
सरल शब्दों में कहें तो 'गति शक्ति' परियोजना भौगोलिक क्षेत्र का आकलन करने के लिए विभिन्न मंत्रालय एवं एजेंसियों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर भू-अंतरिक्ष तकनीक का इस्तेमाल करती है। उपलब्ध तथ्यों का सूक्ष्मता से अध्ययन कर यह नियोजन एवं क्रियान्वयन इकाइयों को एक ठोस सलाह एवं प्रस्ताव देती है। 'गति शक्ति' परियोजना विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय बढ़ाने के साथ बाधाएं दूर करती हैं। हाल में प्रकाशित एक खबर में दावा किया गया है कि इस परियोजना की शुरुआत के पहले छह महीनों में 131 महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं में ढांचागत कमियों का पता चला है और उन्हें दूर करने के लिए विभिन्न मंत्रालयों का ध्यान आकृष्ट किया गया है।
हालांकि ऐसे लोग ाी हैं जिन्हें नहीं लगता कि 'गति शक्ति' अभियान एक क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखता है। ऐसे लोगों का कहना है कि सूचना आधारित यह परियोजना ढांचागत विकास की राह में पेश आने वाली चुनौतियां दूर करने में कुछ हद तक ही योगदान दे सकती है। उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि अधिकारी सूचनाओं के आदान-प्रदान में सक्रियता नहीं दिखाएंगे और पारदर्शिता लाने और नई पहल करने के प्रयास में बाधा पहुंचाएंगे। गति शक्ति पोर्टल में उद्योग जगत, खासकर परिवहन एवं ढांचागत खंड, के लोगों ने काफी दिलचस्पी दिखाई है। पिछले महीने प्रधानमंत्री ने निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों से गति शक्ति मिशन के तहत उपलब्ध कराई जा रही सूचनाओं का लाभ उठाने का आह्वान किया। मगर यह स्पष्ट नहीं है कि निजी क्षेत्र गति शक्ति परियोजना से उत्साहित होकर ढांचागत परिायेजनाओं में निवेश करने के लिए प्रेरित होगा या नहीं। वर्तमान में यह कहा नहीं जा सकता कि निजी-सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी) प्रारूप के तहत सरकार की तरफ से किया गया भारी निवेश रंग लाएगा या नहीं। प्रश्न यह है कि क्या गति शक्ति अपने वायदे पर ारा उतर पाएगी? या इसका भी हाल कुछ उन परियोजनाओं की तरह होगा जिनका उद्देश्य तो नेक था मगर अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाए?
इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए हमेें फिलहाल प्रतीक्षा करना होगी। हालांकि इस परियेाजना के संभावित लाभ तो दि ा रहे हैं। नए मार्गों और इनमें आने वाले वन क्षेत्र और परिवहन के अन्य साधनों को एक दूसरे से जोडऩे की जरूरत पर विचार करने में छह महीने की वजह कुछ ही ह ते लगेंगे। गति शक्ति परियोजना की मदद से वस्तुओं का परिवहन तेजी से हो सकता है जिससे वास्तविक अर्थव्यवस्था में अधिक क्षमता सृजित होगी और उत्पादकता बढ़ेगी। देश में मुंबई के जेएनपीटी पोर्ट से उत्तर प्रदेश में दादरी तक विशेष मालवहन गलियारा इसका एक विचारणीय उदाहरण है। उस समय सभी बड़ी रेल परियोजनाओं के लिए रेलवे के पास एक 'ई-दृष्टि' पोर्टल हुआ करता था। गति शक्ति परियोजना ई-दृष्टि का ही नया रूप है। मगर क्रियान्वयन की दिक्कत पहले की तरह ही बरकरार है। रेलवे अधिकृत सूचीबद्ध कंपनी कॉनकॉर इस मालवहन गलियारे के दोनों तरफ परिसंपत्तियों का निर्माण कर रही है। मगर क्षेत्रीय आर्थिक केंद्र कांडला तक कोई उपयुक्त परिवहन संपर्क नहीं होने की वजह से इनमें ज्यादातर परिसंपत्तियों का इस्तेमाल नहीं हो पाया है। इससे कॉनकॉर को अपने निवेश पर कोई लाभ नहीं मिल रहा है। गति शक्ति पोर्टल समर्पित मालवहन गलियारा परियोजना को सबसे कम दूरी वाले मार्ग के बजाय कुछ वैकल्पिक मार्ग मुहैया करा सकता है जिससे पूर्वी हिस्से में वन या खनन क्षेत्र इसके आड़े नहीं आएगा। असल बात यह है कि नियोजन प्रक्रिया में कई मंत्रालय एवं एजेंसियां लगे होते हैं और इनमें प्रत्येक के काम करने का एक अपना तरीका होता है। उदाहरण के लिए कोई नया बंदरगाह तैयार करते वक्त रेल एवं सड़क संपर्क पर पर्याप्त विचार किए बन जाता है। गति शक्ति में इन खामियों को दूर करने का प्रयास किया गया है। इस अभियान में विभिन्न मंत्रालयों को एक मंच पर लाकर खामियों की पहचान की जाती है और इसके बाद प्रत्येक मंत्रालय के लिए कार्य को अंजाम देने एवं परिणाम सुनिश्चित करने का उत्तरदायित्व तय किया जाता है।
कागज पर यह सभी चीजें तत्काल जरूरी लग सकती हैं मगर ये सरकार के मौजूदा कामकाज के तरीकों और सूचनाओं के आधार पर निर्णय लेने की क्षमता के लिए बड़ी चुनौती खड़ी करती हैं। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परियोजना के साथ भी यही समस्या थी। जीएसटी व्यवस्था के प्रभावी होने के बाद भी एक लंबे समय तक सरकार इस प्रणाली से मिलने आंकड़ों का बुद्धिमता से इस्तेमाल करने में अक्षम थी। इस समय कम से कम 18 मंत्रालय-इस्पात, रेलवे, बंदरगाह, अक्षय ऊर्जा आदि-हैं जो ढांचागत क्षेत्र से जुड़े हैं। उ मीद तो यही की जा रही है कि गति शक्ति अभियान से विभिन्न मंत्रालयों के बीच आपसी समन्वय बढ़ेगा और अति महत्त्वपूर्ण ढांचागत परियोजनाओं को तो जरूर लाभ मिलेगा। पूरी प्रक्रिया की समीक्षा के लिए कैबिनेट सचिव स्वयं अहम मंत्रालयों के अधिकार प्राप्त सचिव समूहों की बैठक की अध्यक्षता करते हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) भी पैनी नजर बनाए रखता है।
मगर देखने वाली बात यह होगी कि क्या मंत्रालय सभी महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं, खासकर जो निर्धारित समय से पीछे चल रही हैं, से संबंधित सूचनाएं गति शक्ति मंच पर साझा करने के लिए पहल करते हैं या नहीं। वित्त मंत्रालय ने जोर दिया है कि सभी बड़ी परियोजनाएं गति शक्ति मंच से होकर गुजरेंगी और उसके बाद उन्हें धन मुहैया कराया जाएगा। समन्वय समिति द्वारा समस्याओं की पहचान किए जाने के बाद इस पर कदम उठाने का विशेष अधिकार वित्त मंत्रालय को होगा। गति शक्ति की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह एक उपयुक्त डिजिटल परियोजना निगरानी प्रणाली साबित होगी या एक और अधूरी सरकारी योजना बन कर रह जाएगी।
(लेखक फाउंडिंग यूल के सह-संस्थापक हैं)
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