हिमाचल में प्रतिभा की ताजपोशी और अगले चुनाव में कांग्रेस की संभावना | सियासी हलचल | | आदिति फडणीस / April 30, 2022 | | | | |
यह तथ्य है कि भारतीय राजनीति में विधवा स्त्रियां अपने पति के काम का श्रेय लेने की बेहतर स्थिति में होती हैं। कई बार तो अपने बेटों से भी अधिक। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मु यमंत्री और बाद में केंद्रीय मंत्री रहे वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह के मामले में भी यह बात सही साबित हुई और गत सप्ताह उन्हें हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। राज्य में जल्दी ही चुनाव होने वाले हैं और पार्टी को वहां काफी आशाएं हैं।
निश्चित रूप से हिमाचल प्रदेश में सिंह को सभी जानते हैं और उनकी पत्नी भी राजनीति में नयी नहीं हैं। वह 2004 में मंडी से लोकसभा का चुनाव जीत चुकी हैं और हाल ही में यानी 2021 में अपने पति के निधन के बाद हुए उपचुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की।
वीरभद्र सिंह को काम करने वाला मु यमंत्री माना जाता था। उनके ही कार्यकाल में हिमाचल प्रदेश का पूर्ण विद्युतीकरण हुआ था। प्रदेश के सबसे आखिरी गांव स्पीति के किब्बर में 1988 में ही बिजली पहुंच गई थी। यह गांव दुनिया के उन सबसे ऊंचे गांवों में से एक है जहां सड़क है। अपने राजनीतिक करियर के दौरान सिंह ने उस राजनीति के आकर्षण से बचने का प्रयास किया जो अक्सर हिमाचल प्रदेश के राजनेताओं को घेर लेता है: वह है ऊपरी हिमाचल बनाम निचले हिमाचल की राजनीति। ऐसा इसलिए कि दोनों क्षेत्रों की आवश्यकताएं एकदम अलग हैं। ऐसे बहुत कम राजनेता हैं जिन्हें कांगड़ा क्षेत्र (निचले हिमाचल प्रदेश का हृदय जहां विधानसभा की 16 सीट हैं) और शिमला (ऊपरी हिमाचल प्रदेश का केंद्र जहां से विधानसभा में केवल आठ सदस्य जाते हैं लेकिन जिसे ज्यादा अधिकार हासिल हैं)। परंतु अगर सिंह ने ऊपरी हिमाचल तक फोर लेन सड़क बनवायी तो उन्होंने निचले हिमाचल में छह लेन वाली सड़क का निर्माण भी कराया। हिमाचल प्रदेश में साक्षरता की दर भी शेष भारत की तुलना में अच्छी है। वह केवल केरल से पीछे है। परंतु बतौर मु यमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान सिंह ने यह सुनिश्चित किया कि ऐसा कोई गांव न रहे जहां प्राथमिक विद्यालय न हो।
अगर उनकी आलोचना हुई भी तो उनकी काम करने की निरंकुश शैली के कारण । वह रामपुर-बुशहर राजघराने के आखिरी राजा थे और 2017 में कांग्रेस के आखिरी मु यमंत्री थे जब कांग्रेस विधानसभा चुनावों में पराजित हो गई थी।
दूसरी ओर वह पांच बार मु यमंत्री, केंद्र सरकार में दो बार राज्यमंत्री तथा एक ऐसे राजनेता रहे जो पहली बार सन 1962 में सांसद बना था। सिंह और कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच के रिश्तों का तनाव कांग्रेस में किसी से छिपा नहीं रहा लेकिन आखिरकार सबकुछ माफ कर दिया गया और भुला दिया गया। सन 2019 के आम चुनाव में सिंह का प्रचार करते हुए गांधी ने ऊना में एक सार्वजनिक रैली में कहा था, 'वीरभद्र सिंह मेरे शिक्षक और राजनीति में मेरे गुरु हैं। मैं उनका आदर करता हूं। मैं नरेंद्र मोदी की तरह नहीं हूं जिन्होंने अपने राजनीतिक गुरु लालकृष्ण आडवाणी को पुरस्कार स्वरूप अपमानित ही किया है।'
प्रतिभा सिंह को अपने पति की विरासत मिलेगी, हालांकि इसके नकारात्मक पहलू अपेक्षाकृत हल्के हो सकते हैं। वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के कुछ लोकप्रिय और जाने पहचाने चेहरों को पार्टी छोडऩे से नहीं रोक पाए बल्कि इन नेताओं ने उनके कारण ही पार्टी छोड़ी। ये सभी नेता कांगड़ा से थे। विजय सिंह मनकोटिया और सुखराम ऐसे ही दो नाम हैं। हकीकत तो यह है कि सन 1998 में अगर कांग्रेस ने सुखराम की शर्त मान ली होती तो भारतीय जनता पार्टी के प्रेम कुमार धूमल हिमाचल प्रदेश में सरकार नहीं बना पाते। सुखराम ने शर्त रखी थी कि वीरभद्र सिंह के अलावा किसी भी नेता को मु यमंत्री बना दिया जाए। वीरभद्र की ज्यादातर चुनौतियां स्वयं उनकी ही खड़ी की हुई थीं, लेकिन उनकी पत्नी के सामने अलग विरोधी होंगे। कुलदीप राठौर लंबे समय तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं, अब उन्हें हटा दिया गया है और इस बात की संभावना बहुत कम है कि वे बहुत दोस्ताना रिश्ते रखेंगे। कांग्रेस विधायक दल के नेता मुकेश अग्निहोत्री वह व्यक्ति हैं जिन्होंने विधानसभा में पार्टी की कमान संभाले रखी है और वह आशा कर रहे थे कि प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व उन्हें मिलेगा। करिश्माई पूर्व पीसीसी प्रमुख सुखविंदर सिंह सुक्खू शायद एक बेहतर चयन हो सकते थे। पार्टी की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि उनकी चुनाव के लिए प्रत्याशियों का चयन करने वाली समिति में महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
इसका अर्थ यह हुआ कि अगर उनके चुने हुए प्रत्याशी पर्याप्त तादाद में जीतते हैं तो प्रदेश में सरकार का मुखिया बनने का उनका दावा मजबूत रहेगा। पूर्व विदेश मंत्री और राज्य सभा में सदन के उपनेता आनंद शर्मा जिन्हें वीरभद्र सिंह के कारण अपनी छाप छोडऩे का मौका नहीं मिल सका, अब वे भी अपनी काबिलियत दिखा सकते हैं।
क्या कांग्रेस हिमाचल प्रदेश में वापस सत्ता में आ सकती है? नवंबर 2021 में विधानसभा के सभी उपचुनावों में करारी हार के बाद प्रदेश में भाजपा के मु यमंत्री जयराम ठाकुर ने महंगाई को हार की वजह बताया था। अब आम आदमी पार्टी ने भी प्रदेश में खुद को स्थापित करना शुरू किया है। शायद पहली बार राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा। हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव दिलचस्प होंगे।
|