करीब 7.5 प्रतिशत की दर से आर्थिक वृद्धि पर्याप्त नहीं | |
श्रम-रोजगार | महेश व्यास / 04 29, 2022 | | | | |
वर्ष 2020-21 की कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था और इसके श्रम बल को बड़ा झटका लगा है। हालांकि अब दोनों में सुधार दिख रहा है लेकिन इसमें पूरी समानता नहीं है। अर्थव्यवस्था और श्रम बल की बात करना दो अलग-अलग चीजें हैं। हैरानी की बात यह है कि इसी तरीके से हम आमतौर पर भारत में दोनों पहलुओं को देखते और समझते हैं। अर्थव्यवस्था को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और इसके घटकों के संदर्भ में समझा जाता है। श्रम को ऊपरी तौर पर जीडीपी से अलग समझा जाता है। हाल तक श्रम से जुड़े आंकड़ों की कमी मुश्किलें बढ़ा रही थी। लेकिन अब जीडीपी और रोजगार में वृद्धि साथ-साथ देखी जा सकती है।
वास्तविक जीडीपी में 2020-21 में 6.6 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है और 2021-22 में इसमें 8.95 प्रतिशत की तेजी आई है। सकल घरेलू उत्पाद (2011-12 के कीमतों के संदर्भ में) 2021-22 में 147.7 लाख करोड़ रुपये के दायरे में था जो महामारी से पहले 2019-20 में 145.2 लाख करोड़ रुपये था। इसीलिए महामारी की व्यापक स्तर पर शुरुआत होने से पहले वर्ष 2021-22 में वास्तविक जीडीपी, स्थिर कीमतों में लगभग 1.7 प्रतिशत अधिक थी। इसके विपरीत 2021-22 में रोजगार, 40.18 करोड़ के स्तर पर था जो महामारी से पहले के वर्ष 2019-20 में 40.89 करोड़ के रोजगार स्तर की तुलना में 1.7 प्रतिशत कम था। अब अर्थव्यवस्था और श्रमिकों की तादाद बिल्कुल विपरीत दिशाओं में है। आशावादी कह सकते हैं कि श्रम के उपयोग के लिहाज से अर्थव्यवस्था अधिक सक्षम हो गई है। लेकिन रोजगार का दायरा कम हुआ है और बेरोजगारों की संख्या 2019-20 में 3.29 करोड़ से बढ़कर 2021-22 में 3.33 करोड़ हो गई। लेकिन यह रोजगार में गिरावट के अनुरूप नहीं बढ़ी है। दूसरी तरफ रोजगार के मौके में 71 लाख की कमी आई लेकिन बेरोजगारों की संख्या में महज 4 लाख की बढ़ोतरी हुई। महामारी के बाद अपनी नौकरी खोने वाले शेष 67 लाख कामगारों ने रोजगार के अवसरों की उपलब्धता की कमी के कारण निराशा में नौकरी ढूंढना ही छोड़ दिया। श्रम बल के दायरे में 1.5 प्रतिशत तक की कमी आई लेकिन यह 2019-20 के 44.18 करोड़ से 2021-22 में 43.52 हो गया।
वास्तविक जीडीपी वृद्धि और रोजगार वृद्धि में अंतर वर्ष 2022-23 में जारी रह सकता है, हालांकि यह अंतर कम हो सकता है। पेशेवर तरीके से पूर्वानुमान लगाने वालों के बीच इस बात को लेकर आम सहमति (औसत मूल्य) यह है कि वास्तविक जीडीपी वृद्धि, वर्ष 2021-22 में दर्ज लगभग नौ प्रतिशत की वृद्धि के मुकाबले 7.5 प्रतिशत तक रहेगी।
ऐसे में सवाल यह है कि अर्थव्यवस्था के नई ऊंचाइयों पर पहुंचने पर श्रम क्षेत्र की स्थिति क्या हो सकती है? भारत में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि और रोजगार वृद्धि के बीच संबंध मजबूत नहीं रहे हैं। वर्ष 1993-94 से 2011-12 की अवधि में रोजगार में फीसदी बदलाव में वृद्धि 0.18 और 0.2 के बीच रहने का अनुमान लगाया गया है।
रोजगार के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण (सीपीएचएस) के अनुमानों से 2017-18 और 2021-22 के बीच रोजगार में फीसदी बदलाव वृद्धि बहुत अस्थिर है। ऐसा इसलिए है कि इस अवधि में लॉकडाउन के कारक पर भी गौर करना होगा। इस अवधि के दौरान औसत प्रतिशत बदलाव 0.23 तक रहा। पहले के इन आंकड़ों पर गौर करते हुए हम यह मान सकते हैं कि जीडीपी वृद्धि के रोजगार में फीसदी बदलाव 0.2 है। इसका अर्थ यह है कि अगर अर्थव्यवस्था 2022-23 में 7.5 प्रतिशत तक बढ़ जाती है तब रोजगार में 1.5 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है। रोजगार 2021-22 के 40.18 करोड़ से बढ़कर 2022-23 में 40.78 करोड़ हो सकता है। वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि से 2022-23 में 60 करोड़ अतिरिक्त नौकरियों के मौके तैयार हो सकते हैं।
जनसंख्या की प्रकृति को देखते हुए हम यह उम्मीद करते हैं कि वर्ष 2022-23 में कामकाजी उम्र वाली आबादी में लगभग 2.5 करोड़ की वृद्धि और होगी। अगर हम श्रम बल की भागीदारी दर को 2021-22 के 40.1 प्रतिशत के स्तर पर भी स्थिर रखते हैं तब 2022-23 में श्रम बल में लगभग 1.05 करोड़ का विस्तार हो सकता है। वर्ष 2022-23 में अतिरिक्त नौकरियों की मांग लगभग 1.05 करोड़ होने की संभावना है। यह 7.5 प्रतिशत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के मुकाबले रोजगार में 60 लाख के अनुमानित विस्तार से 75 प्रतिशत अधिक है।
इसका मतलब यह है कि वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 7.5 प्रतिशत की अपेक्षित वृद्धि से बेरोजगारों की वर्तमान संख्या में 49 लाख और जुड़ जाएंगे। वर्ष 2021-22 में बेरोजगारों की संख्या 3.33 करोड़ थी जो अब बढ़कर 3.82 हो सकती है। इसका अर्थ यह है कि 2022-23 में बेरोजगारी दर 8.6 प्रतिशत थी।
बेरोजगारी में अनुमानित वृद्धि और बेरोजगारी दर काफी अधिक है। किसी भी वर्ष में 3.82 करोड़ बेरोजगारों की संख्या सबसे अधिक होगी। यह 2020-21 के महामारी वर्ष की तुलना में भी अधिक होगी। इसी तरह किसी भी वर्ष के लिहाज से देखें तो रिकॉर्ड की गई बेरोजगारी की दर सबसे अधिक होगी। रोजगार दर 2022-23 में 37 प्रतिशत से घटकर 36.7 प्रतिशत तक रह सकती है।
8.9 प्रतिशत की वृद्धि के बलबूते वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि आकर्षक है क्योंकि इसमें गिरावट के बाद 8.9 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी। हालांकि इस वृद्धि से परेशानी यह है कि यह अतिरिक्त श्रम बल के लिए रोजगार के मौके तैयार नहीं करता जो साल भर में तैयार होती है। अब ऐसे में रोजगार वृद्धि में फीसदी बदलाव के दायरे को बढ़ाने की जरूरत है। इस बात पर ध्यान दिया जा सकता है कि 2022-23 की 40.78 करोड़ नौकरियों की तुलना में यह अब भी 2019-20 के 40.8 के आंकड़े से लगभग 11 लाख कम है।
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