कम मूल्यांकन की तलाश | संपादकीय / April 28, 2022 | | | | |
सरकारी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने अपनी प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) के लिए प्रस्तुत किए जाने वाले शेयरों की तादाद में उल्लेखनीय कमी की है। फरवरी में दाखिल किए गए रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी या पेशकश दस्तावेज) में करीब 5 फीसदी शेयरों की बिक्री का लक्ष्य तय किया गया था और अनुमान था कि बाजार कंपनी के शेयरों की एंबेडेड वैल्यू (ईवी) का 2.5 से 3 गुना मूल्यांकन करेगा। ईवी बीमा कंपनियों के कारोबार के मूल्यांकन का मानक है। अब सरकार ने तय किया है कि वह 3.5 फीसदी शेयरों (22.1 करोड़) का विनिवेश करेगा और इसका मूल्यांकन ईवी का 1.1 गुना होगा। इसके लिए प्रति शेयर 902-949 रुपये का मूल्य दायरा तय किया गया है।
एंकर निवेशक 2 मई को 9.88 करोड़ शेयरों के अपने कोटे के लिए बोली लगा सकेंगे जबकि इश्यू 4 से 9 मई के बीच खुलेगा। सूचीबद्धता के लिए 17 मई की तारीख निर्धारित है। कर्मचारियों के लिए 15.8 लाख शेयर आरक्षित हैं और उन्हें प्रति शेयर 45 रुपये की रियायत दी जाएगी। पॉलिसी धारकों को प्रति शेयर 60 रुपये की छूट दी जाएगी।
परिणामस्वरूप फरवरी के 65,000 करोड़ से 95,000 करोड़ रुपये के अनुमान की तुलना में इश्यू से अब 21,000 करोड़ रुपये प्राप्त होने का अनुमान है। इसके बावजूद यह भारतीय प्राथमिक बाजार में सबसे बड़ी राशि होगी और इससे 2022-23 के विनिवेश लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी।
इश्यू के आकार में कमी इसलिए करनी पड़ी कि यूक्रेन युद्ध के कारण रुझान बिगडऩे लगे। डीआरएचपी तभी काम आएगा जब 12 मई तक शेयर पेशकश की जाए वरना वह खारिज हो जाएगा। बहरहाल, मूल्यांकन में तीव्र कटौती चकित करने वाली है। सूचीबद्ध बीमा कंपनियों मसलन एचडीएफसी लाइफ, एसबीआई लाइफ और आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस का मूल्यांकन ईवी के तीन गुना से अधिक हुआ। ऐसे में एलआईसी का मूल्यांकन अपेक्षाकृत कम रहा। यह खासतौर पर उल्लेखनीय है क्योंकि एलआईसी की प्रबंधनीय परिसंपत्तियां अन्य सभी बीमा कंपनियों के कुल कारोबार से तीन गुना से अधिक हैं। इतना ही नहीं परिभाषा के आधार पर ईवी का आकलन एलआईसी के नियंत्रण वाली प्राथमिक अचल संपत्ति के मूल्य को ध्यान में नहीं रखता। इसका अर्थ यह है कि 5.4 लाख करोड़ रुपये का मूल्यांकन बेहद कम करके आंका गया है। ऐसे में आईपीओ निवेशकों के लिए बहुत अधिक संभावनाएं छोड़ता है। इससे हासिल राशि सीधे सरकार के राजकोष में जाएगी।
कम से कम एक मायने में यह विषय परेशान करने वाली नजीर पेश करता है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अपनी उस अनिवार्य जरूरत को शिथिल करने पर राजी हो गया है जिसके तहत किसी आईपीओ में कम से कम 5 फीसदी शेयरों का विनिवेश करना जरूरी है। संभव है अन्य सरकारी उपक्रम भी ऐसी ही रियायत चाहें। किसी बीमाकर्ता के लिए मुनाफा इस बात में निहित होता है कि वह प्रीमियम का निवेश कैसे करती है। संग्रहीत प्रीमियम बहुत कम ब्याज वाला होता है तथा वह लंबी अवधि के लिए होता है। टर्म प्लान में तो वह ब्याज रहित होता है। एलआईसी के 24.8 फीसदी पोर्टफोलियो निवेश इक्विटी में हैं जबकि 6.6 फीसदी हिस्सा दीर्घावधि की बुनियादी योजनाओं में निवेश किया गया है। शेष राशि राज्य या केंद्र सरकार के डेट में है। एलआईसी ने मार्च से दिसंबर 2021 के बीच इक्विटी की बिक्री से 42,862 करोड़ रुपये प्राप्त किए और 2020-21 में उसने इससे 42,900 करोड़ रुपये जुटाए थे। खेद की बात है कि जब भी अन्य सरकारी कंपनियों ने आईपीओ जारी किए तब एलआईसी को बार-बार विवश किया गया कि वह सरकार की मदद करे। संभवत: इससे प्रतिफल में कमी आई होगी। एक सूचीबद्ध कंपनी के रूप में निवेशक एलआईसी के फाइनैंस तथा उसके निवेश संबंधी निर्णयों को लेकर और अधिक पारदर्शिता की आशा करेंगे।
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