गैर-भाजपा शासित राज्यों को पेट्रोल-डीजल पर मूल्य वद्र्धित कर (वैट) घटाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नसीहत पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। विपक्षी दलों ने कहा कि पेट्रोल एवं डीजल पर केंद्रीय उत्पाद कर के माध्यम से केंद्र सरकार ने 26 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं। कोविड-19 महामारी की रोकथाम पर बुधवार को आयोजित बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्य ईंधन पर वैट में कमी करने के लिए राजी नहीं हैं जिससे आम लोगों पर दबाव बढ़ गया है। कुछ दलों ने कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए आयोजित बैठक के दौरान डीजल-पेट्रोल पर वैट का जिक्र करने के लिए प्रधानमंत्री की आलोचना की। जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार है वहां पेट्रोल एवं डीजल के दामों में कमी लाने के लिए कथित तौर पर कोई प्रयास नहीं करने के लिए केंद्र के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। शिवसेना की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने सोशल मीडिया ट्विटर पर कहा, 'कोविड-19 महामारी की रोकथाम के उपाय करने के लिए बैठक बुलाई गई थी मगर प्रधानमंत्री ने इसमें भी राजनीतिक मुद्दा उठा दिया। केंद्र सरकार ने ईंधन पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क के मद में 26 लाख करोड़ रुपये अर्जित किए हैं। जब पेट्रोल-डीजल के दाम काफी निचले स्तर पर थे तब भी इनके दाम 18 बार बढ़ाए गए। जीएसटी में राज्यों के हिस्से का अब तक भुगतान नहीं हो पाया है। राज्यों को दिया जाने वाला मुआवजा प्रावधान भी समाप्त कर दिया गया है और इतना होने के बाद भी केंद्र सरकार राज्यों को ही दोष दे रही है।' कांगे्रस के नेता पवन खेड़ा ने कहा कि प्रधानमंत्री को स्वयं विचार करना चाहिए कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क के रूप में कितनी रकम बटोरी है। खेड़ा ने कहा, 'मोदी ने पेट्रोल एवं डीजल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क के माध्यम से 26 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं। क्या उन्होंने राज्यों को इसका एक हिस्सा भी दिया है? केंद्र सरकार ने राज्यों को जीएसटी में उनका हिस्सा समय पर नहीं दिया और अब वह राज्यों को वैट घटाने की नसीहत दे रही है। पहले केंद्र को उत्पाद शुल्क में कमी करनी चाहिए और उसके बाद राज्यों को वैट घटाने के लिए कहना चाहिए।' हरियाणा के पूर्व सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है वहां पेट्रोल-डीजल पर सर्वाधिक वैट वसूला जा रहा है। हुड्डा ने कहा, 'अंतरराष्ट्रीय बाजार में उथल-पुथल होने से तेल के दाम बढ़ते हैं तो सरकार यहां भी दाम बढ़ा देती है मगर वैश्विक स्तर पर दाम कम होने का फायदा बिल्कुल नहीं देती।' कई विपक्ष शासित राज्य ईंधन के बढ़ते दाम पर केंद्र के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। वे लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि यूक्रेन युद्ध से तेल के दाम बढऩे के केंद्र का तर्क पूरी तरह खोखला है। इस महीने के शुरू में तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता के टी रामा राव ने कहा था कि भाजपा रूस-यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध का हवाला देकर ईंधन की बढ़ती कीमतों पर देश को गुमराह कर रही है। रामा राव ने दावा किया, 'अमेरिका, कनाडा जैसे देशों में पेट्रोल के दाम भारत से कहीं कम हैं। संकटग्रस्त श्रीलंका में भी पेट्रोल के दाम में बेतहाशा वृद्धि नहीं हुई है।' उन्होंने कहा कि 2014 से पहले पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 9.48 रुपये था। जब भाजपा सरकार सत्ता में आई तो यह बढ़कर 32.98 रुपये हो गया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि तेल के दाम में बेतहाशा वृद्धि चौंकाने वाला है। हालांकि प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि उनका इरादा किसी की आलोचना करना नहीं था मगर उनकी टिप्पणी विपक्ष शासित राज्यों को रास नहीं आई। प्रधानमंत्री ने उन राज्यों का नाम लिया था जिनमें गैर-भाजपा दलों की सरकार हैं। प्रधानमंत्री ने बैठक में कहा, 'महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और झारखंड जैसे राज्य ईंधन पर वैट घटाने के लिए तैयार नहीं हुए। पेट्रोल-डीजल के ऊंचे दाम आम लोगों को कठिनाई हो रही है।'
