कोलो घोटाला: क्या सेबी से बेहतर कर सकेगी सीबीआई? | देवाशिष बसु / April 27, 2022 | | | | |
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की पूर्व मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) चित्रा रामकृष्णा और पूर्व समूह परिचालन अधिकारी (जीओओ) आनंद सुब्रमण्यन के खिलाफ एक्सचेंज में को-लोकेशन (कोलो) धोखाधड़ी मामले में गुरुवार को आरोप-पत्र दाखिल किया। इसमें दोनों को एनएसई की कारोबारी प्रणाली में कुछ ब्रोकरों को कथित तरजीही एवं अनुचित पहुंच मुहैया कराने का आरोपी बनाया गया है। यह भी आरोप लगाया गया है कि एनएसई के सांगठनिक ढांचे, लाभांश परिदृश्य, वित्तीय नतीजों, मानव संसाधन नीति, नियामक को जवाब और भविष्य की परियोजनाओं जैसी अहम सूचनाएं वर्ष 2013 से 2016 के बीच एक बाहरी ईमेल आईडी रिग्याजुरसमा एट दी रेट आउटलुक डॉट कॉम पर भेजी गईं। वर्ष 2013 में रामकृष्णा एनएसई की सीईओ बनीं और जल्द ही सुब्रमण्यन को उनके बाद दूसरे उच्च पद पर बैठा दिया गया। गौरतलब है कि फरवरी 2022 में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के एक आदेश में बताया गया था कि कैसे विश्व के सबसे बड़े डेरिवेटिव एक्सचेंज को हिमालयन योगी के आशीर्वाद से चलाया जा रहा था, जो ऊपर बताई गई ईमेल आईडी के जरिये बातचीत कर रहा था।
इस मामले से परिचित लोगों को लगता है कि सीबीआई सेबी द्वारा किए गए कार्य की नकल करने की कोशिश कर रही है। सेबी ने कोलो धोखाधड़ी की जांच की थी, कारण बताओ नोटिस (एससीएन) जारी किए थे और चार साल से अधिक समय बाद अंतिम आदेश जारी किए थे। लेकिन सेबी ने केवल मामूली फटकार लगाकर घोटाले के मुख्य किरदारों को छोड़ दिया। कारण बताओ नोटिस में मुख्य रूप से आरोप मार्च 2013 तक प्रबंध निदेशक और सीईओ रहे रवि नारायण, अप्रैल 2013 से दिसंबर 2016 तक इस पद पर रहीं रामकृष्णा और सुब्रमण्यन पर लगे। सेबी ने कहा कि उनकी ढिलाई और कर्तव्य की उपेक्षा की वजह से ब्रोकरेज कंपनी ओपीजी सिक्योरिटीज दिनोदिन चुनिंदा सर्वर तक तरजीही पहुंच हासिल करती रही।
इसने एनएसई के 'विसंगत जवाब' और कमजोर प्रक्रिया, नीतियों और दस्तावेजों पर भी पूरक कारण बताओ नोटिस जारी किया है। फिर भी सेबी निश्चित व्यक्तियों की जिम्मेदारी तय करने या उन ब्रोकरों द्वारा हासिल किए गए अवैध लाभ की मात्रा तय करने में नाकाम रहा, जिन्होंने तरजीही पहुंच हासिल की थी। सेबी के पास नीतिगत शक्तियों के मामले में बहुत से हथियार हैं। लेकिन यह लगभग पूरी तरह उन फॉरेंसिक ऑडिट पर निर्भर रहा, जो उसने एनएसई से करवाने को कही थीं। स्वाभाविक तौर पर कारण बताओ नोटिस में इस बारे में कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं कि एनएसई के कोलो में गड़बडिय़ों के लिए कौन जिम्मेदार था। सेबी ने एनएसई के अधिकारियों, ब्रोकरों और अन्य से पूछताछ की। इसके बाद एक्सचेंज पर कड़ा नियंत्रण रखने वाले नारायण और रामकृष्णा समेत एनएसई के शीर्ष अधिकाारियों के अधूरे एवं गोलमोल जवाबों की एक शृंखला दर्ज की। आम तौर पर सेबी के सवालों के उनके जवाब थे-'याद नहीं कर सकते' या 'विभाग के प्रमुखों को यह पता होगा या 'उन्होंने अनुपालन सुनिश्चित किया होगा'।
रामकृष्णा ने खुद को तकनीक विशेषज्ञ के रूप में पेश किया था, लेकिन पूछताछ में तकनीक प्रमुखों की सभी जिम्मेदारियों से किनारा कर लिया। जालसाजी के जरिये तरजीही पहुंच के बारे में सवालों को 'परिचालन या तकनीकी' मुद्दे बताकर किनारा कर लिया, जिनके बारे में वह कुछ नहीं जानतीं।
रामकृष्णा ने एनएसई की एमडी और सीईओ के रूप में तीन साल कुछ अधिक अवधि में 44 करोड़ रुपये की कमाई की। ऐसे में जिम्मेदारियों से किनारा करने को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने दिसंबर 2016 में इस्तीफा देने से पहले आठ महीनों के दौरान अपने पद पर रहते हुए करीब 18 करोड़ रुपये की कमाई की। उनका वेतन वर्ष 2016 में उनके पिछले वर्ष के पैकेज करीब 9 करोड़ रुपये से दोगुना हो गया, जबकि उस समय उनके खिलाफ जांच चल रही थी। जब रामकृष्णा ने एनएसई से इस्तीफा दिया, उस समय उनके वेतन-भत्ते करीब 23 करोड़ रुपये थे। इसमें परिवर्तनशील वेतन एवं सुविधा एवं लाभ भी शामिल हैं। हालांकि उनके मुताबिक वह एनएसई की सभी खामियों के लिए जिम्मेदार नहीं थीं। नारायण ने भी यही रुख अख्तियार किया। दूसरे शब्दों में एनएसई के शीर्ष अधिकारियों के पक्ष में ज्यादा चीजें थीं और खिलाफ कुछ नहीं था। अगर आप बड़े एवं प्रभावशाली हैं तो प्रतिभूति बाजार में पकड़े जाने की कीमत मामूली है और इसे अदालत में आसानी से चुनौती दी जा सकती है।
क्या सीबीआई वह कर पाएगी, जिससे सेबी बचा है? हालांकि सेबी के पास छानबीन, गिरफ्तारी और परिसंपत्तियों को जब्त करने की अत्यधिक शक्तियां हैं, लेकिन यह इन शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करता है। इसने धोखाधड़ी के आरोप भी नहीं लगाए गए हैं। सेबी ने बार-बार एनएसई के वरिष्ठ अधिकारियों से पूछा कि क्या उनकी कोलो नीतियों में उचित एवं समान पहुंच के बारे में विचार किया गया। सेबी जिम्मेदारी तय करने पर ध्यान नहीं देता है, इसलिए उसे गोलमोल जवाब मिले। फिर ये गोलमोल जवाब सेबी के कमजोर आदेशों का आधार बने, जिन्हें तुरंत ही एनएसई और उसके पूर्व अधिकारियों के आक्रामक वकीलों ने चुनौती दी।
अगर सीबीआई सच्चाई बाहर लाना चाहती है तो इसे बिना भय या पक्षपात के अपना लंबा जाल बिछाना चाहिए। इसे एनएसई और सेबी के पूर्व प्रमुखों और पिछले कुछ वर्षों के एनएसई बोर्ड के सदस्यों के साथ लंबी चर्चा करनी चाहिए, जिनकी कोलो घोटाले और में भूमिका रही है या उन्होंने कानूनी या तकनीकी मुद्दों के द्वारा जांच का गला घोंट दिया। कानूनविदों के मुताबिक रामकृष्णा एक्सचेंज के बाहर के अज्ञात व्यक्तियों के इशारों पर काम कर रही थीं। यह सेबी के प्रावधानों के तहत घोटाला है, लेकिन नियामक ने उन पर पर घोटाले का आरोप नहीं लगाया और इसलिए उन्हें खुला रास्ता दे दिया। असल बात यह है कि अनुचित कारोबारी तरीकों और एनएसई में सर्वत्र कुप्रशासन ने पूरे देश और साथ ही सभी सूचीबद्ध कंपनियों, निवेशकों और बिचौलियों के साथ धोखाधड़ी की।
यह प्रतिभूति बाजार का अब तक का सबसे बड़ा मुद्दा है, जिसका हमें सामना करना पड़ा है। यह ऐसा मुद्दा है, जिसमें संवेदनशील और प्रणालीगत रूप से अहम संस्थान और शीर्ष नियामक का अनैतिक तत्त्वों ने केवल बेजा फायदा ही नहीं उठाया बल्कि अपनी निजी जागीर के रूप में इस्तेमाल किया। इसे दुरुस्त करने का एकमात्र तरीका यह है कि इस घोटाले के सभी मुख्य किरदारों और उनकी मदद करने वाले सभी लोगों की जिम्मेदारी तय की जाए। क्या सीबीआई वह कर पाएगी, जो सेबी नहीं कर पाया?
(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक हैं। )
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