मेटावर्स के विकास में शेष विश्व से पीछे है भारत | तकनीकी तंत्र | | देवांशु दत्ता / April 26, 2022 | | | | |
लोगों ने अभी मेटावर्स की अवधारणा को समझना शुरू ही किया है। वादा तो यही किया गया है कि मेटावर्स हमें ऐसा माहौल मुहैया कराएगा जहां हम कोई भी मनचाहा काम कर सकेंगे। इसका इस्तेमाल करने वाले अवतारों का इस्तेमाल कर सकेंगे और आभासी वास्तविकता वाले हेलमेट या चश्मे (निश्चित रूप से अन्य विकल्प भी सामने आएंगे) लगाकर इसका प्रयोग कर सकेंगे।
सिटीबैंक का अनुमान है कि सन 2030 तक मेटावर्स 8 लाख करोड़ डॉलर से 13 लाख करोड़ डॉलर के बीच का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) जुटाएगा और उस समय तक इसके 5 अरब उपयोगकर्ता होंगे। सन 2020 में वैश्विक जीडीपी 85 लाख करोड़ डॉलर था और वैश्विक अर्थव्यवस्था में सालाना 3 फीसदी की दर से विकसित होने का अनुमान है। दुनिया की आबादी 8 अरब है और यह एक फीसदी की दर से बढ़ रही है।
ऐसे में अगर सिटी का अनुमान हकीकत के करीब है। मेटावर्स 2030 तक वैश्विक जीडीपी के 7 और 12 फीसदी के बीच रह सकता है। इतना ही नहीं तब दुनिया की करीब 51 फीसदी आबादी मेटावर्स की निवासी या वहां नियमित आने जाने वाली होगी।
इन अनुमानों के हकीकत में बदलने के लिए क्या कुछ करना होगा और भारत किस स्थिति में है? मेटावर्स तब तक कारगर नहीं होगा जब तक कि उसे अबाध माहौल उपलब्ध न हो। यानी बहुत तीव्र गति से काम करने वाले मोबाइल नेटवर्क, ढेर सारा डेटा और उसे चलाने के लिए उपकरण। सिटी बैंक मानता है कि इसके लिए जरूरी तकनीकी क्षमता और बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं हैं। यहां तक कि सर्वश्रेष्ठ 5जी नेटवर्क भी वह नहीं दे सकता है जिसका वादा मेटावर्स करता है। चर्चा यह है कि इसके लिए हमें 6जी की आवश्यकता होगी। परंतु जरूरी दूरसंचार अधोसंरचना को जल्द शुरू करने के काम को हल्के में लिया गया है। 6जी को जल्दी विकसित करने और उसका प्रसार करने पर भी यही बात लागू होती है जबकि मेटावर्स के शीघ्र विस्तार के लिए वह आवश्यक है। भारत समेत कई देश ऐसे हैं जहां वाणिज्यिक 5जी भी शुरू नहीं हुआ है। भारत में अभी 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी होनी शेष है। यानी 5जी के वाणिज्यिक प्रसार में अभी काफी वक्त है।
मेटावर्स कोई इकलौता पारिस्थितिकी नहीं होगा। बल्कि विभिन्न सेवा प्रदाताओं द्वारा अलग-अलग मेटावर्स तैयार किए जाएंगे। उपयोगकर्ताओं को मेटा-आभासी पासपोर्ट की आवश्यकता होगी ताकि वे एक मेटावर्स से दूसरे में जा सकें। विभिन्न मेटावर्स के बीच परस्पर संचालन तथा अनुकूलता के लिए भी यह आवश्यक होगा। किसी भी तरह की वाणिज्यिक गतिविधि के लिए धनराशि या टोकन की आवश्यकता होगी। ये सभी लेनदेन ब्लॉकचेन के माध्यम से विभिन्न क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल करके किए जाते हैं।
भारत में इसके संभावित उपभोक्ता बहुत बड़ी तादाद में हैं। प्रति व्यक्ति आधार पर देखें तो दुनिया में सबसे अधिक डेटा की खपत भारत में होती है। यहां मेटावर्स का इस्तेमाल करने की इच्छा भी अधिक होगी। एक देश के रूप में हमें पलायनवाद पसंद है और मेटावर्स ने इस पलायन को आभासी हकीकत में बदल दिया है। औसत भारतीय कीमतों को लेकर बहुत सचेत रहता है क्योंकि उनके पास बहुत अधिक पैसे नहीं होते। यदि तेज 5जी और 6जी सेवाएं शुरू हो जातीं और डेटा शुल्क समुचित होता तो भारत में मेटावर्स की आबादी अच्छी खासी होती।
हमारे यहां कल्पनाशील और कुशल डेवलपर भी अच्छी खासी तादद में हैं। देसी थीम वाले मेटावर्स के लिए भी काफी संभावनाएं हैं। फिर चाहे मंदिर हों, क्रिकेट स्टेडियम, अवतारों के साथ कंसर्ट हों या देसी थीम वाले सीजीआई गेम, सभी में संभावनाएं हैं। परंतु भारत में नियामकीय व्यवस्था भी है जो क्रिप्टोकरेंसी से घबराती है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अनुपालन की हास्यास्पद रूप से जटिल व्यवस्था भी समस्या है। यदि भारत के लोग ब्लॉकचेन आधारित विकेंद्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल नहीं कर सकते या उन्हें कानूनी रूप से रुपये में नहीं बदल सकते तो भारत इसके साथ सुसंगत नहीं है। देसी मेटावर्स को अन्य विदेशी मेटावर्स के साथ परस्पर संचालित नहीं किया जा सकेगा। भारतीयों के लिए भी वैश्विक मेटावर्स का इस्तेमाल करना भी मुश्किल होगा क्योंकि उनमें क्रिप्टो आधारित भुगतान व्यवस्था है।
फिलहाल जो व्यवस्था है उसमें पेड ऑनलाइन सेवा का संचालन करने वाले व्यक्ति को हर प्रतिभागी के लिए जीएसटी प्रमाणन प्रस्तुत करना होता है और 18 फीसदी कर पहले ही चुकाना होता है और इनपुट क्रेडिट की प्रतीक्षा करनी होती है। यदि मेटावर्स सेवा प्रदाताओं को हर लेनदेन पर जीएसटी प्रमाणन प्रस्तुत करना पड़ा तो उनका सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कौशल पूरी तरह भुगतान संबंधी हल तलाशने में लगाना पड़ेगा। इतना ही नहीं अगर सरकार स्टार्टअप से 18 फीसदी जीएसटी पहले ही लेने लगे तो ज्यादातर कारोबार तो शुरू ही नहीं हो सकेंगे। आखिर बात यह कि डेटा लीक होने से भी बहुत मुश्किल खड़ी हो सकती है। भारत में तो डेटा संरक्षण का कानून भी नहीं है।
यह कहना मुश्किल है कि मेटावर्स के लिए जरूरी तकनीक और अधोसंरचना अनुमानित तेजी से विकसित होंगे या नहीं लेकिन जहां तक इस क्षेत्र में विकास की वैश्विक गति से तुलना की बात है तो भारत काफी पीछे रह सकता है। दूरसंचार बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में हम दुनिया से दो वर्ष पीछे हैं। क्रिप्टोकरेंसी नीति को लेकर हमारी दिशा सही नहीं है और कर अनुपालन निहायत दिक्कतदेह है।
|