भारत के बैंकों की वृहद गाथा का संक्षिप्त ब्योरा | बैंकिंग साख | | तमाल बंद्योपाध्याय / April 25, 2022 | | | | |
दिसंबर तिमाही में सरकारी बैंकों ने मिलाकर उच्चतम लाभ कमाया। सभी सूचीबद्ध कंपनियों का रिकॉर्ड शुद्ध मुनाफा 44,733 करोड़ रुपये रहा। मार्च तिमाही बैंकिंग जगत के लिए और भी अच्छी रहने के आसार हैं।
आइए देखते हैं कि विभिन्न मानकों पर बैंकों का प्रदर्शन कैसा रहा। सबसे पहले विशुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) की बात करें। यह वह अंतर है जो बैंक अपने जमाकर्ताओं को चुकाता है और जो वह कर्जदारों से हासिल करता है। इससे मुनाफा सामने आता है। इसका आकार बैंक की परिसंपत्तियों से तय होता है। अगर कोई बैंक ज्यादा खुदरा ऋण देता है तो उसका शुद्ध ब्याज मार्जिन ऐसे बैंक से अधिक होगा जो कॉर्पोरेट ऋण पर केंद्रित रहता है। यानी केवल एनआईएम यह नहीं बताता कि बैंक की हालत कितनी अच्छी या बुरी है, इसके लिए अन्य संकेतकों की जरूरत होती है।
निजी बैंकों में बंधन बैंक का एनआईएम 7.8 फीसदी के साथ अधिकतम था। आईडीएफसी बैंक 5.9 फीसदी और कैथलिक सीरियन बैंक 5.46 फीसदी उसके बाद थे। चार बैंकों का एनआईएम 4 फीसदी से अधिक रहा: कोटक महिंद्रा बैंक (4.62 फीसदी), आरबीएल बैंक (4.34 फीसदी), एचडीएफसी बैंक और इंडसइंड बैंक (दोनों 4.1 फीसदी)। आईसीआईसीआई बैंक का एनआईएम 3.96 फीसदी है जो सितंबर 2021 के 4 फीसदी से कम है। सरकारी बैंकों में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का एनआईएम 3.77 फीसदी के साथ अधिकतम है। देश के सबसे बड़ेबैंक भारतीय स्टेट बैंक का एनआईएम 3.15 फीसदी है। कम से कम पांच और बैंकों का एनआईएम 3 फीसदी या अधिक है। ये हैं पंजाब ऐंड सिंध बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया।
वैश्विक मानकों के मुताबिक अधिकांश भारतीय बैंकों का एनआईएम अच्छा है और इसकी वजह है जमा की कम लागत। कर्जदारों से उच्च ब्याज दर वसूल कर इसे बढ़ाया जा सकता है। आमतौर पर असुरक्षित ऋण पर ब्याज दर अधिक होती है। ऐसे ऋण देने वाले बैंकों का एनआईएम अधिक होता है लेकिन एक बार ऐसा कर्ज फंस जाने पर वसूली आसान नहीं होती।
किसी बैंक में जमा के आधार पर ही मुद्रा की लागत तय होती है। भारी जमा और खुदरा सावधि जमा की लागत अधिक होती है। चालू खाते पर कोई ब्याज नहीं मिलता जबकि बचत खातों पर आमतौर पर सावधि जमा से कम ब्याज मिलता है। यकीनन नये बैंक जमाकर्ताओं को लुभाने के लिए अधिक ब्याज देते हैं। यानी किसी बैंक में जितने ज्यादा चालू खाते और बचत खाते (सीएएसए) होंगे, जमा की लागत उतनी ही कम होगी। यही मानक है।
कोटक महिंद्रा बैंक का सीएएसएस सबसे अधिक (59.9 फीसदी) है। जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक का (56.32 फीसदी) आईडीबीआई बैंक का (54.69 फीसदी), आईडीएफसी फस्र्ट बैंक (51.59 फीसदी), एचडीएफसी बैंक (47.1 फीसदी), बंधन बैंक (45.6 फीसदी), आईसीआईसीआई बैंक (45 फीसदी), ऐक्सिस बैंक 44 फीसदी तथा इंडसइंड बैंक में यह 42 फीसदी है। सरकारी बैंकों में बैंक ऑफ महाराष्ट्र का सीएएसए सबसे अधिक (55.05 फीसदी है), उसके बाद सेंट्रल बैंक (50.01 फीसदी) है। स्टेट बैंक का सीएएसए 45.74 फीसदी और पंजाब नैशनल बैंक का 45.65 फीसदी तथा बैंक ऑफ बड़ौदा का 44.28 फीसदी है। इंडियन ओवरसीज बैंक और इंडियन बैंक का सीएएसए कम से कम 40 प्रतिशत है। एनआईएम की तरह सीएएसएस भी वास्तविक कहानी नहीं बताता।
बैंक की स्थिति का एक और संकेतक प्रॉविजनिंग कवरेज अनुपात है। यानी फंसे कर्ज के निपटान के लिए कितना पैसा अलग किया गया है। आईडीबीआई बैंक का प्रॉविजनिंग कवरेज अनुपात 97.10 फीसदी के साथ सर्वाधिक है। सीएसबी का 82.95 फीसदी, जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक का 81.57 फीसदी, आईसीआईसीआई बैंक का 79.9 फीसदी, येस बैंक का 79.3 फीसदी, करुर वैश्य बैंक का 78.8 फीसदी, आरबीएल बैंक का 78.6 फीसदी और धनलक्ष्मी बैंक का 77.5 फीसदी है।
सरकारी बैंकों में बैंक ऑफ महाराष्ट्र 93.77 फीसदी के साथ प्रॉविजनिंग कवरेज अनुपात के मामले में सर्वोच्च है, इंडियन ओवरसीज बैंक का 92.33 फीसदी और यूको बैंक का 91.3 फीसदी है। स्टेट बैंक का प्रॉविजनिंग कवरेज अनुपात 88.32 फीसदी था। बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन बैंक और सेंट्रल बैंक में यह कम से कम 85 फीसदी है।
आईडीबीआई का फंसा हुआ कर्ज सबसे अधिक 20.56 फीसदी है। येस बैंक का 14.65 फीसदी और बंधन बैंक का 10.81 फीसदी है। दो अन्य निजी बैंक जिनका फंसा कर्ज अधिक है वे हैं जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक (8.93 फीसदी) और करुर वैश्य बैंक (6.97 फीसदी) है। प्रॉविजनिंग के बाद आईडीबीआई का शुद्ध फंसा कर्ज केवल 1.7 फीसदी है जबकि येस बैंक और बंधन बैंक में यह क्रमश: 5.29 फीसदी और 3.01 फीसदी है। अन्य सरकारी बैंकों में सेंट्रल बैंक का फंसा कर्ज सर्वाधिक 15.16 फीसदी था। पंजाब ऐंड सिंध बैंक में यह 14.44 फीसदी, पंजाब नैशनल बैंक में 12.88 फीसदी, यूनियन बैंक में 11.62 फीसदी, बैंक ऑफ इंडिया में 10.46 फीसदी और इंडियन ओवरसीज बैंक में 10.4 फीसदी था। पूंजी पर्याप्तता अनुपात भी बैंकों की आर्थिक स्थिति का एक अच्छा संकेतक है और इस मोर्चे पर अधिकांश बैंक अच्छी स्थिति में हैं। अगर बैंक में ऊपर वर्णित मानक सही हों तो इसका मतलब वह परिसंपत्ति पर अच्छा प्रतिफल देता है और निवेशक उसे पसंद करते हैं।
ये आंकड़े दिसंबर तिमाही के हैं। मार्च में अधिकांश बैंकों का प्रदर्शन और सुधरा। अब तक सब ठीक लग रहा है। हमें यह देखने के लिए कुछ वर्ष इंतजार करना होगा कि कितने पुनर्गठित ऋण फंसते हैं और क्या कुछ बैंक ऋण वृद्धि के प्रति नये लगाव के चलते मुश्किल में आते हैं।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक एवं जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठ परामर्शदाता हैं)
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