केंद्र सरकार का उर्वरक सब्सिडी खर्च यूरोप में युद्ध के कारण जिंस और तेल की लगातार ऊंची कीमतों से चालू वित्त वर्ष में 2.10 से 2.3 लाख करोड़ रुपये तक रह सकता है। बिज़नेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी मिली है। यह किसी वर्ष में काफी बड़े अंतर के साथ उर्वरक सब्सिडी पर अब तक का सबसे अधिक खर्च होगा। देश में वित्त वर्ष 2023 का बजट अनुमान 1.05 लाख करोड़ रुपये ही है। इसके अलावा कैबिनेट यूरिया आधारित उर्वरकों के लिए सब्सिडी मौजूदा 67,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1.20 लाख करोड़ रुपये करने पर विचार कर सकता है। एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, 'कैबिनेट अगले दो सप्ताह में इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।' हालांकि वित्त वर्ष अभी शुरू ही हुआ है, लेकिन 2022 के केंद्रीय बजट के अनुमान अब सार्थक नहीं रह गए हैं क्योंकि ये यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले पेश किए गए थे। अधिकारियों ने बजट अनुमानों को संशोधित नहीं किया है। उनका कहना है कि जहां जरूरत पड़ेगी, वहां आगामी पूरक अनुदान मांग में अतिरिक्त राशि मुहैया कराई जाएगी। ऊपर जिस अधिकारी का हवाला दिया गया है, उन्होंने कहा, 'जिंसों की कीमतों में कुछ समय और उतार-चढ़ाव रहने के आसार हैं। उवर्रक सब्सिडी 2 लाख करोड़ रुपये को पार कर सकती है और यह 2.30 लाख करोड़ रुपये तक रह सकती है।' रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद गैस की ऊंची कीमतों के कारण यूरिया उत्पादन की लागत बढ़ गई है। अहम कच्चे माल और कुछ तैयार उत्पादों की किल्लत के कारण गैर-यूरिया उर्वरकों की कीमतों पर भी बुरा असर पड़ा है। रेटिंग एजेंसी इक्रा के मुताबिक पूल की गई गैस कीमतों में 1 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू की बढ़ोतरी से यूरिया क्षेत्र के लिए सब्सिडी की जरूरत करीब 4,500 से 5,000 करोड़ रुपये बढ़ सकती है। मोटे अनुमानों के पता चलता है कि वित्त वर्ष 2022 और वित्त वर्ष 2023 के बीच पूल की गर्ईं गैस कीमतों में आपूर्ति किल्लत के कारण करीब 75 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। यूरिया उत्पादन में कच्चे माल की लागत में गैस की कीमत का हिस्सा 70 फीसदी से अधिक है। भारत अपनी सालाना यूरिया जरूरत के करीब 30 फीसदी हिस्से का आयात करता है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अपने निदेशक नितेश जैन के हवाले से हाल में एक रिपोर्ट में कहा, 'सब्सिडी बकाया में 85 फीसदी से ज्यादा हिस्सा यूरिया का रह सकता है। इसकी वजह यह है कि पूल की हुई गैस कीमतें यानी उर्वरक संयंत्रों के बिलों के लिए जिस घरेलू गैस और आयातित एलएनजी के मिश्रण की कीमतों पर विचार किया जाता है, वह पिछले वित्त वर्ष में 75 फीसदी से अधिक बढ़ गया है और यह रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस वित्त वर्ष की ज्यादातर अवधि में भी ऊंचा ही रहने के आसार हैं।' हालांकि गैर-यूरिया उर्वरकों के लिए कंपनियों ने हाल में खुदरा बाजार में कीमतें बढ़ा दी हैं, लेकिन यह उनकी ऊंची उत्पादन लागत की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं है। ये उर्वरक पोषण आधारित सब्सिडी योजना में शामिल हैं। उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि इस बार मॉनसून सामान्य रहने के अनुमान और रबी फसलों के सीजन में अच्छी कीमत मिलने से आगामी खरीफ सीजन में उर्वरक मांग तगड़ी रहने के आसार हैं। भारत अपनी पोटेशियम क्लोराइड उर्वरक जरूरतों के लगभग पूरे हिस्से का आयात करता है, जबकि डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की सालाना खपत में आयात का हिस्सा करीब आधा है। नाइट्रोजन-फॉस्फोरस पोटाशियम उर्वरकों के मामले में देश अपनी सालाना जरूरत का करीब 80 फीसदी उत्पादित करता है, जबकि यूरिया के मामले में एक तिहाई मांग आयात से पूरी होती है।
