'अगर पश्चिम अशक्त होता है तो अगला नंबर रूस और चीन का हो सकता है।' यह एक चीनी टीकाकार की टिप्पणी है। दरअसल रूस के 630 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार में से करीब 300 अरब डॉलर की राशि फ्रीज किए जाने पर स्तब्धता का माहौल है। इतना ही नहीं रूसी केंद्रीय बैंक समेत अधिकांश रूसी बैंकों को स्विफ्ट इंटर बैंकिंग मैसेजिंग सर्विस से बाहर कर दिया गया है, जबकि अधिकांश अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग लेनदेन उसी के जरिये होते हैं। रूस को जिस तेजी से वैश्विक अर्थव्यवस्था खासतौर पर वैश्विक वित्तीय तंत्र से अलग-थलग किया जा रहा है, उसने चीन के नीति निर्माताओं को हिला दिया है। यूक्रेन युद्ध ने वे तमाम जोखिम सामने ला दिये हैं जो चीन के आगे हैं क्योंकि अमेरिकी डॉलर के दबदबे वाले वैश्विक वित्तीय तंत्र का कोई विकल्प नहीं है। चीन के पास एक लाख करोड़ डॉलर की अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिभूति हैं और उसका 50 फीसदी से अधिक विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में है। यह स्थिति जोखिम भरी है क्योंकि माना जा रहा है अमेरिका वैश्विक वित्तीय व्यवस्था को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। ऐसे में चीन की मुद्रा युआन के अंतरराष्ट्रीयकरण तथा एक वैकल्पिक इंटर बैंक मैसेजिंग सेवा की मांग नए सिरे से उठ रही है। सन 2015 में चीन ने स्विफ्ट का मुकाबला करने के लिए सीमापार अंतरबैंक भुगतान प्रणाली (सीआईपीएस) की स्थापना की थी लेकिन इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई। सीआईपीएस की रोजाना की मैसेजिंग बमुश्किल 14,000 पहुंची जबकि स्विफ्ट रोज चार करोड़ संदेशों का प्रबंधन करता है। सीआईपीएस ने समझौता किया और स्वयं को स्विफ्ट के साथ जोड़ लिया ताकि वह एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय इंटर बैंक नेटवर्क का हिस्सा बन सके। हाल ही में चीन के केंद्रीय बैंक ने पेइचिंग में स्विफ्ट के साथ एक संयुक्त उपक्रम की स्थापना की जिसमें सीआईपीएस प्रमुख अंशधारक है। नए उपक्रम को फाइनैंशियल गेटवे इन्फॉर्मेशन सर्विसेज का नाम दिया गया है और इसका लक्ष्य है युआन के अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना तथा चीन की डिजिटल मुद्रा ई-युआन पर आधारित सीमा पार भुगतान प्रणाली का विकास करना। बैंक ऑफ चाइना के पूर्व वाइस-प्रेसिडेंट वांग यॉन्गली ने इस संयुक्त उपक्रम की महत्ता समझाते हुए कहा, 'हम स्विफ्ट की मदद से सीआईपीएस को उसकी सदस्य इकाइयों तक बढ़ा सकते हैं ताकि वैश्विक स्तर पर युआन के निपटारे की व्यवस्था की जा सके। उसके पश्चात अगर स्विफ्ट किसी स्थिति में चीन से रिश्ते समाप्त भी कर लेता है तो वैकल्पिक मैसेजिंग सेवा की स्थापना करना कठिन नहीं होगा।' हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि स्विफ्ट अपनी प्रतिद्वंद्वी सेवा शुरू करने में चीन की सहायता भला क्यों करेगा। वास्तव में मैसेजिंग सर्विस समस्या नहीं है। समस्या है चीनी मुद्रा की अपरिवर्तनीयता। चीन की सरकार नहीं चाहती कि वह अपनी मुद्रा की पूर्ण परिवर्तनीयता को अपनाए क्योंकि उसे अस्थिरता का डर है। वह पूंजी प्रवाह पर अपना नियंत्रण खोना नहीं चाहती। चीन के अर्थशास्त्री मानते हैं कि सॉवरिन डिजिटल मुद्रा यानी ई-युआन में बिना अस्थिरता के परिवर्तनीयता की पेशकश करने की क्षमता है। वांग यॉन्गली इस बारे में कहते हैं, 'ई-युआन सीमापार भुगतान को सस्ता और किफायती बनाएगी। इस लिहाज से देखें तो यह मौजूदा कॉरेस्पॉन्डेंट बैंकिंग और सीआईपीएस से बेहतर है।' स्पष्ट है कि वैकल्पिक मैसेजिंग प्रणाली की स्थापना का संबंध ई-युआन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में बढ़ावा देने से है। चीन ने वस्तु एवं सेवा व्यापार में युआन को बढ़ावा देकर काफी सफलता पाई है। सन 2019 में उसका 13.4 फीसदी वस्तु व्यापार और 23.8 फीसदी सेवा व्यापार युआन में हुआ। चीन के नीति निर्माता इस बात से अवगत हैं कि यह पहल केवल लंबी अवधि में लाभदायक हो सकती है और यह तात्कालिक संकट से निपटने में मददगार नहीं होगी। पेइचिंग विश्वविद्यालय के लॉ स्कूल के वाइस डीन गुओ ली सुझाते हैं कि चीन को अपनी कमजोरी को उस हद तक कम करना चाहिए जिससे रूस जैसी स्थिति से बचा जा सके। वह कहते हैं कि अल्पावधि में शायद प्रतिबंध से जुड़े कारोबार संभालने के लिए विशेष बैंकों की आवश्यकता हो। मध्यम अवधि में सीआईपीएस और डिजिटल युआन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वह कहते हैं कि दीर्घावधि में चीन को अमेरिका केंद्रित वित्तीय व्यवस्था ध्वस्त करने पर काम करना चाहिए। चीन की डिजिटल युआन अभी भी प्रारंभिक चरण में है। जानकारी के मुताबिक फिलहाल 2.08 करोड़ लोगों के पास आभासी वॉलेट है जहां डिजिटल मुद्रा रखी जा सकती है। ई-युआन के जरिये होने वाला लेनदेन 34.5 अरब युआन या करीब 5 अरब डॉलर है जो काफी कम है। ऐसे में अभी लंबा सफर तय करना है। देखना होगा कि ये कदम कितने व्यावहारिक होंगे। इन पर नए सिरे से जोर इसलिए दिया जा रहा है ताकि अमेरिका के साथ टकराव की स्थिति में चीन पर वित्तीय प्रतिबंधों का खतरा कम हो। एक अन्य चीनी टीकाकार शी यिनहॉन्ग कहते हैं, 'इस बात पर आम सहमति है कि स्विफ्ट की अनुपस्थिति में सीआईपीएस से समस्या हल नहीं होगी और चीन, रूस की मदद करके प्रतिबंधों का जोखिम नहीं मोल ले सकता।' चीन ने अपने वित्तीय तंत्र में अपेक्षित आत्मनिर्भरता हासिल करने का प्रयास किया है जिससे देश निरंतर विदेशी पूंजी आकर्षित करने में कामयाब रहा है। सन 2021 में महामारी के बावजूद चीन में 182 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया। इससे भी अहम बात यह है कि नया-नया उदारीकृत हुआ और 16 लाख करोड़ डॉलर अनुमानित मूल्य वाला चीनी बॉन्ड बाजार भी भारी पूंजी आकर्षित कर रहा है। इंटर बैंक बाजार में अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा धारित बॉन्ड 600 अरब डॉलर की राशि पार कर चुके हैं जो पिछले वर्ष से 23 फीसदी अधिक है। चीन के बॉन्ड्स को अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड सूचकांकों में शामिल कर लिया गया है जिससे इसमें इजाफा ही होगा। चीन हाल ही में एफटीएसई रसेल वल्र्ड गवर्नमेंट बॉन्ड इंडेक्स में शामिल हुआ है और उसने बड़ी तादाद में फंड आकर्षित किए हैं। व्यापार और तकनीक में अमेरिका से संबद्धता समाप्त की जा सकती है लेकिन वित्तीय क्षेत्र में जुड़ाव मजबूत हो रहा है। बड़ी अमेरिकी वित्तीय फर्म चीन के वित्तीय बाजार पर दांव लगा रही हैं। शायद चीन के नीति निर्माताओं को यकीन है कि अगर अमेरिकी कंपनियों का ज्यादा दांव चीन पर लगा रहा तो वे अमेरिकी प्रशासन पर दबाव बनाएंगी ताकि चीन को अलग-थलग न किया जा सके। यूक्रेन संकट ने चीन की असुरक्षा बढ़ाई है। वहीं चीन के कई बड़े शहरों में कोविड की नई लहर ने आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया है। दुनिया के सबसे बड़े कंटेनर पोर्ट तथा चीन के सबसे अहम विनिर्माण एवं वाणिज्यिक केंद्र शांघाई में लंबे लॉकडाउन का असर वृद्धि पर पड़ेगा। ऐसा लगता नहीं कि वर्ष के लिए 5.5 फीसदी की जीडीपी वृद्धि का लक्ष्य हासिल हो पाएगा। इसका गंभीर राजनीतिक प्रभाव देखने को मिल सकता है क्योंकि चीन में इसी वर्ष अहम 20वीं पार्टी कांग्रेस का आयोजन भी होना है।
