मॉनसून का बाजार प्रतिफल पर कितना असर | सचिन मामबटा / मुंबई April 20, 2022 | | | | |
सामान्य मॉनसून के लिए मौसम विभाग की भविष्यवाणी सामान्य तौर पर बाजार के लिए अच्छी खबर समझी जाती है। लेकिन इसका दीर्घावधि प्रतिफल के संदर्भ में प्रभाव सीमित देखा गया है।
पिछले आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि कमजोर मॉनसून वाले कई वर्षों में भी अच्छा प्रतिफल देखने को मिला, जबकि सामान्य या अत्यधिक बारिश वाले वर्ष में खराब प्रतिफल दर्ज किया गया।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने गुरुवार को कहा कि उसे बारिश दीर्घावधि औसत के 99 प्रतिशत के दायरे में रहने की संभावना है। इसे लेकर अक्सर अप्रैल में अनुमान जारी किया जाता है।
ये अनुमान सामान्य तौर पर वास्तविक मॉनसून के मुकाबले कम अस्थिर रहे हैं। वर्ष 2019, 2020 और 2021 में या तो सामान्य मॉनसून या अतिरिक्त बारिश दर्ज की गई। यह संबद्घ वर्षों के लिए अनुमानों के अनुरूप है। पूर्ववर्ती दो वर्षों 2017 और 2018 में बारिश दीर्घावधि औसत के 95 प्रतिशत और 91 प्रतिशत थी। 96 प्रतिशत से नीचे बारिश को सामान्य से कम समझा जाता है। इन दो वर्षों में भी सामान्य बारिश की संभावना जताई गई थी।
दोनों वर्षों में सकारात्मक प्रतिफल दर्ज किया गया। बीएसई सेंसेक्स वर्ष 2018 में 5.9 प्रतिशत तक चढ़ा था। यह 2017 में 27.9 प्रतिशत तक मजबूत हुआ था। यह प्रतिफल सामाय बारिश के मुकाबले कम वर्षों में दर्ज किया गया। वर्ष 2004 में भी बारिश दीर्घावधि औसत के 87 प्रतिशत पर थी और शेयर बाजार 13.1 प्रतिशत चढ़ा था। यह 2009 में दीर्घावधि औसत के 78 प्रतिशत पर था। बाजार 81 प्रतिशत चढ़ा और 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से तेजी से सुधरा।
इन विपरीत उतार-चढ़ाव ने अन्य वर्षों में भी बड़ा योगदान दिया। वर्ष 2014 में कमजोर मॉनसून (सामान्य के 88 प्रतिशत) को नजरअंदाज कर दिया गया, क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार 30 साल में पहली बहुमत वाली सरकार बनी थी। उस वर्ष सेंसेक्स सुधारों को बढ़ावा दिए जाने की उम्मीद में 29.9 प्रतिशत चढ़ा था। 2016 में सामान्य मॉनसून (दीर्घावधि औसत के 97 प्रतिशत) के बावजूद बाजार प्रतिफल सिर्फ 1.95 प्रतिशत दर्ज किया गया था। उस वर्ष सरकार ने नोटबंदी की घोषणा की थी, जिससे आर्थिक वृद्घि की रफ्तार प्रभावित हुई थी।
भूराजनीतिक तनाव को इस साल विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा निकासी का मुख्य कारक माना जा रहा है। भारत जैसे देशों के लिए तेल कीमतों में वृद्घि के बीच यूक्रेन पर रूस के हमले से निवेशकों की दिलचस्पी प्रभावित हुई है, क्योंकि ये देश कच्चे तेल की जरूरत परूी करने के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर करते हैं। केंद्रीय बैंकों ने वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में तरलता घटाने के प्रयास में ब्याज दरें बढ़ाई हैं। इससे भारत जैसे कुछ उभरते बाजारों से पूंजी की निकासी दर्ज की जा सकती है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक वित्त वर्ष 2022 में 1.4 लाख करोड़ रुपये के शुद्घ बिकवाल रहे थे। वहीं घरेलू खरीदारी से बाजारों को मदद मिली।
मॉर्गन स्टैनली में इक्विटी विश्लेषक शीला राठी और इक्विटी रणनीतिकारों रिधम देसाई तथा नयंत पारेख द्वारा तैयार 5 अप्रैल 2022 की इंडिया इक्विटी स्ट्रेटेजी प्लेबुक रिपोर्ट के अनुसार विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और चुनाव परिणाम मौजूदा सरकार के पक्ष में हैं, वहीं ऊंची तेल कीमतें और अमेरिकी मंदी भविष्य में अन्य जोखिमों में शामिल होंगे।
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