'शराब संबंधी मसले हल हों, वरना व्यापार सौदे एकतरफा होंगे' | इंदिवजल धस्माना / April 20, 2022 | | | | |
बीएस बातचीत
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन एल्कोहलिक बेवरेज कंपनीज (सीआईएबीसी) के महानिदेशक विनोद गिरि ने भारतीय उद्योग का प्रतिनिधित्व किया है, जिसने ऑस्ट्रेलिया के साथ अंतरिम व्यापार सौदे के लिए वाइन और स्प्रिट के संबंध में प्रमुख मसले सामने रखे हैं। एक ओर वाइन पर समझौता किया जा चुका है, वहीं दूसरी ओर शराब पर अब भी मसलों का समाधान किया जाना बाकी है। गिरि ने इंदिवजल धस्माना के साथ बातचीत में कहा कि ऑस्ट्रेलियाई पक्ष ने गैर-शुल्क बाधाओं पर भारत की चिंताओं को माना है। संपादित अंश :
ऑस्ट्रेलिया के साथ अंतरिम व्यापार सौदे में वाइन की प्रति 750 मिलीलीटर बोतल के लिए मूल्य स्तर पांच डॉलर है। यह भारतीय कंपनियों को किस प्रकार सुरक्षा प्रदान करेगा?
इसका मतलब यह है कि इस सौदे में शुल्क कटौती केवल ऐसी वाइन पर लागू होती है, जिसका आयात सीआईएफ (लागत, बीमा और ढुलाई) आधार पर न्यूनतम पांच डॉलर प्रति 750 मिलीलीटर बोतल पर किया जाता है। यहां, शुल्क 150 प्रतिशत से सीधे 100 प्रतिशत पर आ जाएगा और उसके बाद 10 वर्षों में 50 प्रतिशत पर। यह मानते हुए कि भारत के पास महंगी - प्रति 750 मिलीलीटर 15 डॉलर से ज्यादा वाली वाइन से प्रतिस्पर्धा करने वाली वाइन नहीं है, इस श्रेणी में शुल्क कटौती 25 प्रतिशत और ज्यादा होगी। पहले, यह 150 प्रतिशत से घटकर 75 प्रतिशत होगी और 10 साल में घटकर 25 प्रतिशत हो जाएगी। अलबत्ता यह कटौती वाइन पर लागू नहीं होती है, जो पांच डॉलर सीआईएफ से कम पर आयात की जाती है। इसलिए, उस पर 150 प्रतिशत शुल्क लगता रहेगा।
पांच डॉलर मौजूदा विनिमय दर पर करीब 375 रुपये बैठता है। अगर हम 150 प्रतिशत आयात शुल्क भी लगाते हैं, तो वाइन 937.5 रुपये प्रति बोतल पर आयात की जा सकती है। यह भारतीय वाइन उद्योग को ऐसे क्षेत्र मेंं कैसे सुरक्षित रखेगा, जहां देश में हमारी दमदार मौजूदगी है?
आपको अब भी स्थानीय कर और शुल्क जोडऩे होंगे। आम तौर पर सामान्य नियम यह है कि यह आज के कर ढांचे में सीआईएफ मूल्य से छह से सात गुना अधिक हो। तो, दिल्ली जैसे बाजार में उपभोक्ता मूल्य 2,400 से 2,500 रुपये प्रति बोतल होगा। इन वाइन को शुल्क कटौती का लाभ नहीं मिलेगा। ज्यादातर भारतीय वाइन, चाहे वह सुला हो या फ्रैटेली, प्रति बोतल पांच डॉलर से कम हैं। उनके केवल 10 प्रतिशत उत्पाद ही इस कीमत से ऊपर हैं।
ऐसा लगता है कि स्प्रिट पर सौदा अटक गया है। गड़बड़ क्या है और उन्हें कैसे हल किया जा रहा है?
ऑस्ट्रेलियाई आयात नियमों में कुछ विनियामकीय बाधाएं हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बाधा है परिपक्वता का नियम। उदाहरण के लिए इस नियम के तहत प्रत्येक व्हिस्की को लकड़ी के ढांचे में दो साल परिपक्व किया जाना चाहिए। हमने उन्हें बताया कि इससे हमारे लिए कई सारी दिक्कतें पैदा होंगी। उदाहरण के लिए तस्मानिया, जो ऑस्ट्रेलिया का एक प्रमुख स्प्रिट उत्पादक क्षेत्र है, की तुलना में भारत में परिपक्वता की दर तीन से पांच गुना तेज है। यहां ज्यादा गर्म वातावरण होने की वजह से ऐसा है। जब स्प्रिट परिपक्व होती है, तो वाष्पीकरण की वजह से नुकसान होता है। भारत के वातावरण में वाष्पीकरण के कारण होने वाला नुकसान प्रति वर्ष 10 प्रतिशत रहता है। इसका मतलब यह है कि अगर आप दो साल परिपक्व करते हैं, तो व्हिस्की का 20 प्रतिशत वाष्पीकरण होगा। इसका मतलब है कि आपकी लागत इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है।
क्या आपको अंतिम सौदे के समय स्प्रिट की परिपक्वता का मसला हल होता दिख रहा है?
हमने विचार-विमर्श के दौरान और अंतरिम सौदे में भी माना है कि यह एक ऐसा मामला है, जिसे हल करने की जरूरत है। ऑस्ट्रेलिया में चुनाव होने जा रहे हैं। यह ऑस्ट्रेलियाई सीमा शुल्क अधिनियम का हिस्सा है। नई संसद के आने के बाद ही इस अधिनियम में कोई संशोधन हो सकता है।
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