मार्च में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह 1.42 लाख करोड़ रुपये के साथ अब तक के उच्चतम स्तर पर रहा। जुलाई 2021 के बाद से ही यह संग्रह 1.1 लाख करोड़ रुपये से ऊपर रहा है और इस वर्ष मार्च में यह गत वर्ष की समान अवधि की तुलना में 15 फीसदी अधिक रहा। उच्च राजस्व संग्रह केंद्र और राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति सुधारने में मदद करेगा जो महामारी के कारण मची उथलपुथल के चलते गत दो वर्षों से दबाव में है। ऐसा लग रहा है कि आर्थिक गतिविधियों में सुधार और बेहतर अनुपालन से कर संग्रह में सुधार आ रहा है। बहरहाल, संग्रह का स्तर अभी भी अनुमान से कम है और यह सरकारी वित्त पर दबाव डालना जारी रखेगा। राज्यों की वित्तीय स्थिति आगे और दबाव में आ सकती है क्योंकि जून के बाद से उन्हें कम कर संग्रह की क्षतिपूर्ति नहीं की जाएगी क्योंकि जीएसटी को लागू हुए पांच वर्ष बीत चुके हैं। इस संदर्भ में जीएसटी परिषद ने 2021 में एक मंत्री समूह बनाया था जिसे राजस्व बढ़ाने के सुझाव देने थे, कर ढांचे को तार्किक बनाना था और तंत्र की अन्य विसंगतियों को दूर करना था। पैनल अपनी अनुशंसाओं को अंतिम रूप दे रहा है जिन्हें परिषद की अगली बैठक में प्रस्तुत किया जा सकता है। इन अनुशंसाओं और इनके संभावित असर को लेकर स्पष्टता तब आएगी जब उन्हें परिषद के समक्ष पेश किया जाएगा लेकिन मीडिया में आ रही खबरें उत्साह बढ़ाने वाली नहीं हैं। समाचारों में आ रही रिपोर्ट के मुताबिक परिषद 5 फीसदी स्लैब समाप्त करने पर विचार करेगी और व्यापक खपत वाली कुछ वस्तुओं को 3 फीसदी के स्लैब में तथा बाकियों को 8 फीसदी के स्लैब में डालेगी। परिषद रियायती सूची में शामिल कुछ वस्तुओं को कर दायरे में लाने पर भी विचार करेगी। अनुमानों के मुताबिक 5 फीसदी के स्लैब में एक फीसदी का इजाफा करने से सालाना 50,000 करोड़ रुपये का राजस्व मिल सकता है। इन अनुशंसाओं से जहां अल्पावधि में राजस्व की स्थिति में सुधार हो सकता है, वहीं इसकी पूरी दिशा उत्साह बढ़ाने वाली नहीं है। आम खपत वाली वस्तुओं को 3 फीसदी के स्लैब में डालकर परिषद एक और स्लैब निर्मित कर देगी जबकि आवश्यकता स्लैब की तादाद कम करने की है। फिलहाल सोने के आभूषण तथा ऐसी अन्य वस्तुओं पर तीन फीसदी कर लगता है। इस रुख में कई दिक्कतें हैं। कर ढांचे को सहज बनाने के बजाय इससे जटिलताएं बढ़ सकती हैं। ज्यादा स्लैब होने से लॉबीइंग के अवसर बढ़ेंगे। कारोबारी कर दरों में कमी चाहेंगे। इसके अलावा व्यवस्था की क्षमता भी प्रभावित होगी। ज्यादा स्लैब होने से इनपुट क्रेडिट की गणना जटिल होगी जिससे राजस्व संग्रह प्रभावित होगा। ऐसे में जीएसटी सुधारों में तीन व्यापक पहलुओं पर ध्यान देना होगा। पहला, परिषद को जल्द से जल्द राजस्व निरपेक्ष स्तर प्राप्त करने के बारे में सोचना चाहिए। दूसरा, स्लैब की तादाद कम होनी चाहिए। मसलन 12 और 18 प्रतिशत के स्लैब का विलय करके 15-16 फीसदी की एक स्लैब बनायी जा सकती है। इसके अलावा 5 फीसदी के स्लैब को बढ़ाया जा सकता है तथा उच्चतम दर को कम करके कर ढांचे को अधिक स्थिर बनाया जा सकता है। तीसरा, परिषद को कर प्रशासन में सुधार को लेकर निरंतर प्रयास करना चाहिए। रिटर्न दाखिल करने और क्रेडिट का दावा करने की प्रक्रिया सुगम होनी चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति के लिए यह अहम है कि जीएसटी व्यवस्था अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन करे। जीएसटी के पांच वर्ष पूरा होने के अवसर पर कुछ ढांचागत कमियों को दूर किया जा सकता है और सुधार पेश किए जा सकते हैं।
