प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि यदि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) अपने नियमों में ढील दे तो भारत दुनिया को अनाज की आपूर्ति कर सकता है। इसके मद्देनजर व्यापार विशेषज्ञों और बाजार पर नजर रखने वालों का कहना है कि ऐसा होने पर 2013 और 2015 में की गई प्रतिबद्घताओं का उल्लंघन हो सकता है। साथ ही यदि उच्च बाजार दरों की वजह से आगामी महीनों में सरकारी खरीद कम रहती है तो सरकार के गेहूं भंडार में कमी आने का जोखिम उत्पन्न हो सकता है। पहले से ही व्यापार सूत्रों का कहना है कि 2022-23 में गेहूं का उत्पादन भी 11.1 करोड़ टन के अनुमान से कम रह सकता है जिसकी वजह उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में अचानक से तापमान में तेज वृद्घि है। अब तक भारत ने मानवीय आवश्यकताओं को छोड़कर शायद ही कभी केंद्रीय पूल से अनाजों का निर्यात किया है। इसके अलावा सरकारी भंडारों से गेहूं और चावल दोनों के निर्यात का मतलब अतिरिक्त खर्च हो सकता है क्योंकि अनाजों की आर्थिक लागत जिसमें खरीद और भंडारण का खर्च शामिल है, मौजूदा वैश्विक दर से काफी अधिक है। यह स्थिति चावल के मामले में और ज्यादा है। बहरहाल, रूस-यूक्रेन संकट के बाद भारतीय गेहूं की औसत एफओबी कीमत जरूर 2022-23 के लिए अनुमानित आर्थिक लागत के करीब पहुंच गई है। 2021-22 में यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (यूएसडीए) के मुताबिक देश में गेहूं की खपत करीब 9.7 करोड़ टन हुई जबकि आधिकारिक उत्पादन का आंकड़ा 10.7 करोड़ टन का था। इस प्रकार करीब 1 करोड़ टन का अधिशेष रहा था। चावल के मामले में खपत का अनुमान 10.3 करोड़ टन था जबकि उत्पादन 11.8 करोड़ टन था। इस प्रकार चावल का अधिशेष करीब 1.5 कराड़ टन रहा। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक स्टॉक के मोर्चे पर 1 अप्रैल, 2022 को केंद्रीय पूल में अनुमानित तौर पर 5.131 करोड़ टन खाद्यान्न का भंडार था। इसमें से गेहूं का भंडार 1.89 करोड़ टन था जो 2019 के बाद से सबसे कम है। वहीं, चावल का भंडार करीब 3.23 करोड़ टन था जो पिछले वर्ष की समान अवधि में रहे 2.911 करोड़ टन से अधिक है। दोनों वर्षों के चावल भंडार में मिलों के पास पड़े धान को शामिल नहीं किया गया है। यदि उसे भी जोड़ लिया जाए तो 1 अप्रैल, 2022 को चावल का कुल भंडार बढ़कर 6.612 करोड़ टन पर पहुंच जाएगा जो उससे पिछले वर्ष 6.017 करोड़ टन रहा था। अनाज का भंडार विशेष तौर पर चावल का भंडार आवश्यकता से कहीं अधिक है। हर साल 1 अप्रैल को देश में 1.35 करोड़ टन चावल और 74.6 लाख टन गेहूं का बफर और रणनीतिक भंडार निर्धारित किया जाता है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के सामाजिक विज्ञान स्कूल में आर्थिक अध्ययन और नियोजन केंद्र में प्रोफेसर डॉ बिश्वजीत धर ने कहा, 'भारत ने 2013 और उसके बाद दोबारा से 2015 में भी वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक अनाज भंडारों का निर्यात नहीं करने की औपचारिक प्रतिबद्घता जताई है। हम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लागू होने के बाद पहले ही न्यूनतम सब्सिडी स्तरों को पार कर चुके हैं लेकिन अब तक शांति नियमों के कारण से बचे हुए हैं। इस नियम में कहा गया है कि जब तक कि कोई स्थायी समाधान नहीं मिल जाता है तब तक कोई भी देश गरीबों के भोजन के लिए सार्वजनिक भंडारण पर प्रश्न नहीं खड़ा करेगा। लेकिन यदि अब केंद्रीय पूल से अनाजों के निर्यात का कोई भी प्रयास होता है तो भारत उच्च नैतिक आधार को गंवा सकता है।' धर ने कहा कि पहले ही डब्ल्यूटीओ में शामिल बड़े अनाज उत्पादक देशों में अफवाहें हैं कि भारत बढ़े हुए निर्यातों की आड़ में चुपचाप अपने सार्वजनिक अनाज भंडारों की बिक्री कर रहा है। व्यापार से जुड़े कुछ सूत्रों का कहना है कि भले ही अप्रत्यक्ष रूप से निजी व्यापारी खुले बाजार चैनल से खरीद कर सकते हैं और गेहूं और चावल का निर्यात कर सकता है। ऐसा दरों में बड़े अंतर के कारण संभव है। इसके कारण से भी कुछ देशों में बेचैनी है।
