क्या भारतीय रिजर्व बैंक जून में बढ़ाएगा नीतिगत दरें? | बैंकिंग साख | | तमाल बंद्योपाध्याय / April 18, 2022 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने हाल ही में मुख्य नीतिगत दरें अपरिवर्तित रखीं। मई 2020 के बाद 11वीं बार दरें अपरिवर्तित रखी गई हैं। एमपीसी ने उदार रवैया भी बरकरार रखा है। हालांकि आरबीआई ने महंगाई दर का अनुमान बढ़ा दिया है जबकि चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान कम कर दिया है। वित्त वर्ष 2023 के लिए महंगाई का अनुमान 120 आधार अंक बढ़ाकर 4.5 प्रतिशत से 5.7 प्रतिशत कर दिया गया है। दूसरी तरफ आर्थिक वृद्धि का अनुमान 60 आधार अंक घटाकर 7.8 प्रतिशत की जगह 7.2 प्रतिशत कर दिया गया है।
एमपीसी की इस बैठक से मिल रहे संकेत काफी अलग दिख रहे हैं। पहली बात तो रिवर्स रीपो रेट की उपयोगिता पहले कम कर दी गई थी मगर अब इसे निष्प्रभावी बना दिया गया है। बाजार से नकदी कम करने के लिए इसकी जगह एक नई व्यवस्था लागू की जा रही है। आरबीआई वित्तीय प्रणाली से अतिरिक्त नकदी खींचने के लिए स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (एसडीएफ) की व्यवस्था शुरू कर रहा है। एसडीएफ दर 3.75 प्रतिशत रखी गई है। यह रिवर्स रीपो रेट से 40 आधार अंक अधिक और रीपो रेट से 25 आधार अंक कम रखी गई है। सरल शब्दों में कहें तो दर बढ़ाए बिना ही दर बढ़ गई हैं। यह एक पहेली की तरह लगती है।
दरअसल एसडीएफ दर अब नकदी समायोजन व्यवस्था का मुख्य आधार होगी। इस दर के आने के बाद रीपो और रिवर्स रीपो रेट में अंतर कोविड-19 महामारी से पूर्व के स्तर पर पहुंच गया है और रिवर्स रीपो रेट में कोई बदालाव भी नहीं हुआ है। अब इन दोनों दरों के बीच अंतर 50 आधार अंक तक सीमित रह गया है। इससे अल्प अवधि की दरें बढ़ जाएंगी। बाजार में अल्प उधारी दर (ओवरनाइट कॉल मनी) 3.75 प्रतिशत से 4.25 प्रतिशत के बीच रहने की उम्मीद है।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। एमपीसी ने अपना रवैया उदार जरूर बनाए रखा है मगर भविष्य के लिए व्यक्त अनुमान पर गौर करें तो यह कुछ और ही इशारा करते हैं। मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा गया है कि सर्व सम्मति से उदार रवैया रखने पर सहमति बनी है, मगर साथ ही आने वाले समय में आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के साथ ही महंगाई नियंत्रण में रखने के लिए उपायों पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा सकता है। केंद्रीय बैंक के आकलन या उसके कदम पर कोई सवाल तो नहीं उठा सकता मगर इतना तो तय है कि उसका रुख बदल चुका है। आरबीआई ने आधिकारिक रूप में यह भले ही स्वीकार नहीं किया है मगर वह हालात सामान्य बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद संवाददाताओं से बातचीत में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्र ने कहा कि अति उदार रवैया अब समाप्त किया जा रहा है और वास्तविक दरों की तरफ बढऩे का सिलसिला शुरू हो गया है। क्या उम्मीद की जा सकती है कि आरबीआई अपनी नीति और स्पष्ट करेगा?
यह उदार रुख समाप्त होने की शुरुआत क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मौद्रिक नीति को लेकर भारतीय केंद्रीय बैंक के रुख में एक बड़ा बदलाव आया है। अब आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देने के बजाय महंगाई नियंत्रित करना केंद्रीय बैंक के लिए पहली प्राथमिकता बन गई है।
मुझे इस बात को लेकर हैरानी होती है कि आरबीआई ने रिवर्स रीपो रेट में इजाफा करने के बजाय इसे निष्प्रभावी क्यों बना दिया? शायद आरबीआई बाजार को यह जताना चाहता है कि आगे धीरे-धीरे कदम बढ़ाया जाएगा जल्दबाजी नहीं की जाएगी। आखिरकार आरबीआई को सरकार के भारी भरकम उधारी कार्यक्रम का भी प्रबंधन करना है। मगर बाजार को आरबीआई की बातें पसंद नहीं आईं। 10 वर्ष की अवधि के सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल 7 प्रतिशत का स्तर पार कर 7.12 प्रतिशत हो गया। इससे पहले मई 2019 में जब रीपो रेट 6 प्रतिशत थी प्रतिफल उक्त स्तर तक पहुंचा था।
बाजार को लगता है कि आने वाले महीनों में कई बार नीतिगत दरें बढ़ाई जाएंगी और वर्ष के अंत तक रीपो रेट 5 प्रतिशत हो जाएगी। आरबीआई की मौद्रिक नीति रिपोर्ट में थोक मूल्य आधारित महंगाई 6 प्रतिशत के स्तर पर बनी रहने का जिक्र किया गया है। इसके अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध से कच्चे तेल एवं अन्य जिंसों के साथ ही खाद्य महंगाई भी बढ़ रही है। रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2024 में महंगाई के ऊंचे स्तर पर बनी रहने का भी अंदेशा जताया गया है।
इन सभी बातों की पृष्ठभूमि में आने वाले महीनों में आरबीआई की क्या रणनीति हो सकती है? कई लोगों का मानना है कि जून में प्रस्तावित एमपीसी की बैठक में आरबीआई का रुख तटस्थ (दरें बढ़ाने एवं घटाने दोनों विकल्प मौजूद) रहेगा और रीपो रेट में वृद्धि शुरू हो जाएगी। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने स्पष्ट किया है कि भविष्य में नीतिगत कदम दुनिया में तेजी से बदलती परिस्थितियों के अनुसार उठाए जाएंगे।
इतना तो तय है कि भारत में नीतिगत दरें बढ़ाने का समय आ गया है मगर दर वृद्धि की रफ्तार एवं इसकी मात्रा के बारे में फिलहाल कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। क्या ऐसा हो सकता है कि उदार नीति पर विराम लगाते हुए आरबीआई दरों में वृद्धि शुरू कर दे मगर अपना रवैया तटस्थ नहीं करे ? यह संभव है। पात्र ने सकारात्मक वास्तविक दरों की तरफ बढऩे की बात कही थी। तकनीकी तौर पर सकारात्मक वास्तविक दर की स्थिति बनी रहने तक रुख उदार रहेगा मगर दरें तब भी बढ़ाई जा सकेंगी।
अब नजरें इस बात पर होंगी कि क्या आरबीआई उदार रवैये पर विराम लगाते हुए दरों में इजाफा शुरू करेगा या नहीं मगर दरों में औपचारिक वृद्धि अब बहुत दूर नहीं है। यह एक वास्तविकता है और भारतीय केंद्रीय बैंक इससे इनकार नहीं कर रहा है।
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