तेल चढ़ा तो बढ़ेगा चालू खाते का घाटा | असित रंजन मिश्र / नई दिल्ली April 15, 2022 | | | | |
एसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने एक रिपोर्ट में कहा है कि यदि वैश्विक कच्चे तेल की कीमत 150 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच जाती है तो भारत का चालू खाते का घाटा (सीएडी) 2022 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5 फीसदी से ऊपर जा सकता है। इससे पूंजी के पलायन का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
एजेंसी ने रिपोर्ट में कहा, 'हमने यह गणना की है कि यदि इस साल वैश्विक तेल कीमत 150 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच जाती है तो 2022 का चालू खाता बैलेंस कितना होगा। ऐसी स्थिति में भारत, फिलिपींस और थाईलैंड में 2022 का चालू खाते का घाटा 5 फीसदी से अधिक होगा। ऐसा होने पर इन देशों पर पूंजी पलायन का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। तेल कीमतों में इजाफा होने पर अन्य ऊर्जा उत्पादों की कीमतों में भी उसी तरह से वृद्घि होगी।'
उच्च आयात बिल की वजह से दिसंबर तिमाही में भारत का सीएडी बढ़कर जीडीपी के 2.7 फीसदी पर पहुंच गया जो सितंबर तिमाही में 1.3 फीसदी रहा था। पिछले महीने बोफा सिक्योरिटीज ने कहा था कि तेल, कोयला, धातु और खाद्य तेल जैसी जिंसों की कीमतों में तेज इजाफा होने से कैलेंडर वर्ष 2022 में भारत का सीएडी बढ़कर जीडीपी के 2.6 फीसदी पर पहुंच सकता है।
अमेरिकी फेड की नीति में कड़ाई होने से एशिया के उभरते बाजारों से पूंजी के निकलने की संभावना बढ़ गई है जिससे क्षेत्रीय मुद्राओं पर असर पड़ेगा। अमेरिकी मुद्रास्फीति की प्रकृति के संबंध में फेड के हालिया आकलन में उसकी नीतिगत ब्याज दर में तेजी से वृद्घि होने का अनुमान जताया गया है। इसने मार्च में नीतिगत दर में 25 आधार अंकों का इजाफा किया और आक्रामक नीति का अनुसरण करने के संकेत दिए। एसऐंडपी ने अब 2022 में कुल सात बार दरों में वृद्घि का अनुमान जताया है जिसमें 50 आधार अंक की वृद्घि शामिल है। इसके बाद चार से पांच बार वृद्घि 2023 में होंगी।
पहले के टेपर टैंट्रम मामले को समानांतर रखते हुए एसऐंडपी ने कहा कि 2012 में भारत और इंडोनेशिया को जीडीपी के 3-4 फीसदी का चालू खाते का घाटा हुआ था जिसके कारण इन पर बेतरतीब तरीके से पूंजी देश से बाहर जाने का जोखिम बढ़ गया और मई 2013 में इसका सामना करना पड़ा। उसने कहा, '2013 के बाद से उभरते बाजारों में विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्तता में सुधार हुआ है और उभरते एशिया में यह पर्याप्त है। 2013 के उलट एशिया के उभरते बाजारों में मुद्रा का मूल्य नहीं बढ़ाया गया है। केवल चीन में ही वास्तविक प्रभावी विनिमय दर फरवरी के अंत में इसके दो साल के औसत के मुकाबले बहुत अधिक मजबूत थी।'
रेटिंग एजेंसी ने कहा कि एक ओर जहां हाल के वर्षों में वित्तीय संकेतकों में कमजोरी आई है, वहीं भारत जैसे देशों में सामान्यतया कुल ऋण में विदेशी मुद्रा ऋण की हिस्सेदारी कम होने से उभरते एशिया से पूंजी के बाहर जाने की संभावना कम हो जाती है।
उसने कहा, 'हाल के वर्षों में राजकोषीय रुझान पक्ष में नहीं रहे हैं। जैसे ही सरकारों ने अपने राजकोषीय समर्थन को बढ़ाया वैसे ही महामारी ने सरकार के राजस्वों को धक्का पहुंचाया जिससे घाटा बढ़ गया। उभरते एशियाई बाजारों में से खासकर भारत और फिलीपींस में राजकोषीय घाटा अधिक है। सामान्य सरकारी ऋण चीन, भारत और मलेशिया में अधिक है।'
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