पाकिस्तान का शरीफ परिवार और उसकी नापाक दौलत | सियासी हलचल | | आदिति फडणीस / April 15, 2022 | | | | |
पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ कहां से ताकत प्राप्त करते हैं? निस्संदेह अपने राजनीतिक कौशल से। आखिरकार वह तीन बार पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अपने बड़े भाई नवाज शरीफ के निर्वासन के बाद बीते कई वर्षों से पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएल एन) को संभाल रहे हैं। नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के आरोपों में 10 वर्ष की जेल और पनामा पेपर्स की जांच के बाद 1.06 करोड़ डॉलर जुर्माने की सजा सुनायी गई। यह जुर्माना इसलिए किया गया कि जांच से पता चला कि उनकी तीन संतानों मरियम, हसन और हुसैन का रिश्ता विदेशी कंपनियों से है जिनके पास लंदन में चार लक्जरी अपार्टमेंट हैं। यह तो बहुत छोटा हिस्सा हुआ। शरीफ के परिवार की राजनीतिक शक्ति के मूल में धन ही है। उनके पास बहुत पैसा है।
सन 1998 में नवाज शरीफ के परिवार के कारोबारी हितों के बारे में एक किताब आई जिसका शीर्षक था, 'हू ओन्स पाकिस्तान'। यह किताब शहीद उर रहमान नामक प्रतिष्ठित पाकिस्तानी पत्रकार द्वारा लिखी गई जो तीन दशक से अधिक समय से आर्थिक मामलों और अर्थव्यवस्था पर रिपोर्टिंग कर रहे थे। याद रहे कि सन 1990 के दशक में नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान में निजीकरण की लहर चली थी और आर्थिक उदारीकरण के नाम पर कई नीतियों को बदला गया था। रहमान का कहना था कि उनमें से अधिकांश कदम विभिन्न औद्योगिक घरानों को मजबूत बनाने के लिए उठाए गए थे जिनमें शरीफ का परिवार भी शामिल था।
पीएमएल-एन सरकार ने निजीकरण के लिए 115 इकाइयों को चिह्नित किया था। इनमें से 67 का 1997 तक निजीकरण कर दिया गया था। वह कहते हैं कि इत्तफाक समूह की कंपनियां जो दरअसल नवाज शरीफ की हैं, उन्हें इन कदमों से सबसे अधिक फायदा हुआ। कास्ट आयरन का काम करने वाली कंपनी इत्तफाक फाउंड्री की स्थापना सन 1939 में मियां मोहम्मद शरीफ और उनके छह भाइयों ने की थी। मियां नवाज के पिता थे। उनका परिवार कश्मीरी प्रवासियों का परिवार था जो 19वीं सदी के आखिरी दिनों में पंजाब में बस गया था। विभाजन के समय परिवार अमृतसर से लाहौर जा बसा। शरीफ ने वहां लोहे का कारोबार शुरू किया। पहले यह काम छोटे पैमाने पर किया गया लेकिन धीरे-धीरे इसमें इजाफा हुआ। इस बीच पाकिस्तान के कुलीनों को भी यह अहसास हो गया कि इन 'लोहारों' की तकदीर मेहरबान है। सन 1972 में जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार ने निजी क्षेत्र के ढेर सारे उपक्रमों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जिसमें शरीफ परिवार के कारोबार भी शामिल थे। इसके बाद वे अपना कारोबार पश्चिम एशिया ले गए लेकिन जब इत्तफाक के कारोबार में गिरावट आ रही थी (रहमान के मुताबिक 1998 में इत्तफाक समूह के संस्थापकों के 119 वारिस अदालतों में विरासत और संपत्ति के बंटवारे को लेकर आपस में जूझ रहे थे) तब नवाज शरीफ और शाहबाज शरीफ ने खामोशी से काम करके अपने कारोबार को बढ़ाया। स्टील कारोबार जारी रहा लेकिन परिवार ने ब्रिटेन, सऊदी अरब, दुबई और जाहिर है पाकिस्तान में संपत्ति भी खरीदी। कृषि से जुड़े हुए कारोबार भी किए गए। मसलन शाहबाज का बेटा हम्जा जो अब पंजाब का मुख्यमंत्री है, उसे पाकिस्तान का 'पोल्ट्री किंग' कहा जाता है।
दी नैशनल अकाउंटबिलिटी ब्यूरो (एनएबी) एक राजनीतिक दृष्टि से लचीली संस्था है लेकिन सन 2020 में जब इमरान खान ने उसे शरीफ परिवार की जांच का दायित्व सौंपा तो उसने लाहौर उच्च न्यायालय में आरोप लगाया कि सन 1990 में अकेले शाहबाज शरीफ ने 21 लाख पाकिस्तानी रुपये की संपत्ति घोषित की थी जो 2018 तक यानी 28 वर्षों में बढ़कर 732 करोड़ पाकिस्तानी रुपये हो गई। एनएबी के हलफनामा में कहा गया है कि शाहबाज परिवार (उनकी दो पत्नियां और उनके बच्चे) ने शरीफ ग्रुप ऑफ कंपनीज की छतरी तले 13 नई बनी कंपनियों में 277 करोड़ पाकिस्तानी रुपये निवेश किए हैं। एनएबी के मुताबिक उन्हें इस राशि का स्रोत नहीं पता। ये बेनामी कंपनियां शरीफ परिवार के नौकर-चाकरों के नाम पर रखी गयीं और इनके माध्यम से करीब 240 करोड़ पाकिस्तानी रुपये के काले धन को सफेद किया गया।
पाकिस्तानी पत्रकारों द्वारा कुछ वर्ष पहले लगाये गए स्वतंत्र अनुमानों के मुताबिक शरीफ के तकरीबन 40 सदस्यों वाले विस्तारित परिवार के पास लगभग 4,000 करोड़ रुपये का कारोबारी साम्राज्य है। नवाज शरीफ की व्यक्तिगत परिसंपत्तियां ही करीब 500 से 1,000 करोड़ रुपये के बीच हैं। शरीफ परिवार के पास सऊदी परिसंपत्तियां भी हैं जो तब बनी थीं जब नवाज शरीफ को निर्वासित किया गया था। इसमें राजधानी में करीब 700 करोड़ पाकिस्तानी रुपये की एक स्टील मिल शामिल है। हालांकि सऊदी में परिवार की संपत्तियों को बेच दिया गया है। रमजान एनर्जी कराची स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध है लेकिन वह संपूर्ण कंपनी नहीं है। यह एक बायोगैस पावर प्लांट है। गुलशन कारपेट्स एक कंपनी है जिसका स्वामित्व कथित रूप से नवाज शरीफ की बेटी मरियम के पास था लेकिन जांच करने पर यह किसी और के नाम पर निकली (ऐसी बातें अक्सर सुनने को मिलती हैं)। जबकि पूरे विस्तारित शरीफ परिवार द्वारा चुकाया गया आयकर कभी सालाना दो करोड़ पाकिस्तानी रुपये का स्तर पार नहीं कर पाया। बीते कई वर्षों के हलफनामे तो यही दिखाते हैं।
आश्चर्य नहीं कि इमरान खान का पाकिस्तान में परिवार का शासन समाप्त करने का अभियान इस कदर सफल और लोकप्रिय रहा। इमरान प्रधानमंत्री पद से भले ही हट गए हों लेकिन वह और उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ पर अभी भी नजर रखनी होगी।
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