बिजली आपूर्ति में बाधा | संपादकीय / April 14, 2022 | | | | |
देश के कई हिस्सों में समय से पहले गर्मियों की दस्तक और महामारी के कारण हुई उथलपुथल से सुधार की वर्तमान प्रक्रिया ने एक बार फिर देश के बिजली क्षेत्र की दिक्कतों को उजागर कर दिया है। कई राज्यों में बिजली की कमी देखने को मिल रही है। केंद्र सरकार ने इस सप्ताह हालात को संभालने के लिए जरूरी कदम उठाए। उसने कोयला लिंकेज के अधिकतम इस्तेमाल की इजाजत दी क्योंकि दूरदराज इलाकों तक कोयला ढोने की तुलना में बिजली पहुंचाना अधिक आसान है। सरकार ने बिजली उत्पादकों से कहा कि कोयले का पर्याप्त भंडार सुनिश्चित करने के लिए कोयला मंगाएं ताकि 10 फीसदी मिश्रण किया जा सके और अबाध बिजली हासिल की जा सके। ये शुरुआती कदम हैं जिनकी मदद से नुकसान को सीमित करने का प्रयास है। ये कदम खराब नियोजन के साथ-साथ यह भी दर्शाते हैं कि हमारा तंत्र मांग का समुचित अनुमान लगा पाने में नाकाम रहा। आने वाले सप्ताहों और महीनों में बिजली की हालत और खराब होने वाली है क्योंकि खबरों के मुताबिक बिजली कंपनियों के पास गर्मियों के पहले कोयले का भंडार नौ वर्षों के न्यूनतम स्तर पर है। फिलहाल समस्या परिवहन की नजर आ रही है। जैसा कि इस समाचार पत्र ने भी कहा था, मालवाहक वैगनों की उपलब्धता कोयले की आपूर्ति को प्रभावित कर रही है। कोल इंडिया के मुताबिक उसने 1.11 करोड़ टन अतिरिक्त कोयले की पेशकश की थी लेकिन उसमें से केवल 57 फीसदी ही लिया गया। यदि आपूर्ति की बाधा को जल्दी दूर नहीं किया गया तो मॉनसून के दौरान बिजली संकट और गहरा हो सकता है क्योंकि उस वक्त आमतौर पर कोयले की आपूर्ति प्रभावित होती है।
आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के बिजली की कमी से प्रभावित होने की आशंका है। भारत इस समय बिजली संकट झेल नहीं सकता क्योंकि इससे आर्थिक सुधार की प्रक्रिया प्रभावित होगी। बिजली की कमी अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में उत्पादन को प्रभावित करेगी लेकिन यह संकट छोटे और मझोले उपक्रमों को अधिक प्रभावित करेगा। कम आपूर्ति के कारण बिजली महंगी होगी और ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत मार्जिन पर और अधिक असर डालेंगे। ऐसे में बिजली मंत्रालय के लिए यह आवश्यक है कि वह संबंधित विभागों के साथ तालमेल स्थापित करके कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करे। मांग और आपूर्ति की तात्कालिक समस्या के अलावा अन्य लंबित मामलों को भी निपटाना होगा ताकि इस क्षेत्र को दीर्घावधि में स्थायित्व प्रदान किया जा सके। ताजा आंकड़ों के मुताबिक बिजली उत्पादक कंपनियों पर वितरण कंपनियों का बकाया बढ़कर 1.25 लाख करोड़ रुपये हो चुका है। अप्रैल 2020 में यह राशि 1.05 लाख करोड़ रुपये थी। कुछ राज्यों के घाटे में भारी इजाफा हुआ है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में यह 760 प्रतिशत बढ़ा है जबकि गुजरात और बिहार में इस अवधि में यह 200 फीसदी बढ़ा है। यह अच्छी स्थिति नहीं है।
भुगतान में देरी बिजली उत्पादकों के नकदी प्रवाह को प्रभावित कर सकती है जिससे दिक्कतें और बढ़ेंगी। बिजली उत्पादक कंपनियां बढ़े हुए वित्तीय बोझ की अतिरिक्तलागत को बिजली खरीदारों पर डालना चाहती हैं। इससे अंतिम उपभोक्ता के लिए कीमतें और बढ़ेंगी। केंद्र सरकार ने वितरण क्षेत्र में सुधार के प्रयास किए लेकिन बीते वर्षों में तमाम योजनाओं के बावजूद कोई खास प्रगति नहीं हुई। राज्यों और उनकी वितरण कंपनियों द्वारा बिजली की सही कीमत तय नहीं कर पाना असल समस्या है। कुछ राज्यों द्वारा नि:शुल्क बिजली की पेशकश के साथ हालात वास्तव में और बिगड़ सकते हैं। ऐसे में बिजली कीमत के मसले को हल करना होगा और राज्यों पर दबाव बनाया जाना चाहिए कि वे सब्सिडी को पारदर्शी ढंग से अपनाएं। पारदर्शी मूल्य निर्धारण और समय पर भुगतान करने से उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने की प्रेरणा मिलेगी और अबाध बिजली आपूर्ति तय हो सकेगी।
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